Friday, 3 January 2014

फिर कोई पत्ता पेड़ से झड़ गया यारों
कौनसा फर्क किसी को पड़ गया यारों
नौकरानी को तनख्वाह कम क्या मिली
"अंकल सैम"हम से उखड़ गया यारों
इस बाजू पाकिस्तान क्या कम था?
जो
आज चीन उस बाजू से चढ़ गया यारों
वो अनाज जो किसान ने ही उगाया था
वो उसी की आस में भूखों मर गया यारों
जो भीतर रखा उसे सियासी चूहे खा गए
जो बाहर था वो बारिश में सड़ गया यारों
रोटी न दी,सरकार ने"रोटी की गारंटी" दी
पेट पिचक के तब तक सिकुड़ गया यारों
"देश की माँ"किस कदर परेशान हो गयी
जब "पप्पू"इम्तिहान में पिछड़ गया यारों
"टोपी वाला"भी अजब फितरत का निकला
जिसके कंधे पे बैठा,उसीसे लड़ गया यारों
गायों को कटने से बचाने की फुर्सत किसे?
मुल्क "गे" रक्षा के लिए झगड़ गया यारों
हुकूमत तो "दामाद"का सूट सजाती रही
यहाँ वतन का पायजामा उधड़ गया यारों
शहीदों की बरसी पे सन्नाटा पसरा रहा वहाँ
वतन"सनी लियोन" के शो में उमड़ गया यारों
सियासत के मेले में इस कदर भीड़-भाड़ थी
"आप" का लोकपाल उनसे बिछड़ गया यारों
"हाथ" ने थाम लिया कसके,चने का झाड़
"आप"सा कोई "झाड़ू" लेके चढ़ गया यारो
ज़िक्र "निर्भया" का जब भी कहीं भी हुआ
"सागर" शर्म से ज़मीं में गड़ गया यारों
मैं पुरानी बातों पे अभी भी अटका हूँ यहाँ
मुल्क सब छोड़, कब का आगे बढ़ गया यारों...।



- मोहित गंगवार। ।

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