Friday, 3 January 2014
(2min का समय निकाल कर इस पोस्टको अवश्य पढ़े)एक पिता का ख़त अपने 'फौजी' बेटे के नाम :अक्सर तेरे खतों को सीने से लगा देती हैमाँ तेरी.तुझे याद करके चुपके से आसू बहा देती हैमाँ तेरी. तेरे आने का आसरा देकर मेंअपनी बुढ़ी टांगो को समझाता हूँ.जब दर्द बहुत बढ जाता हैं अपनी टांगो को खुदही दबा देता हूँ.त्योहारों पर अक्सर तेरी कमी हमेशा मुझे खलही जाती हैं. सरहद पर जंग छिड़ी हैसुनकेअक्सर तेरी बहन सहम जाती हैं.खेत खलियानों में अब फसले भी कमही खिला करती हैं.गावं की सुनी सड़के आज भी तेरा इंतज़ारअक्सरकरती हैं.चाहे कुछ भी हो में तुझे कभी वापस गावंना बुलाउंगा. याद है तूने कहा था इस मिटटी मेंजनम लिया है मैंने.इस मिटटी में ही में अपनी जान लुटाऊंगा !जय हिंद वन्दे मातरम् जय भारत( शेयर जरुर करे)
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