Thursday, 4 June 2015


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।


आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
🚩यह भारत देश हमारा है यह बात बतानी पड़ती है ..🚩
🚩यह हिंदुत्व का प्यारा है यह बात जतानी पड़ती है ..🚩
दुःख होता है जब गौ हत्या पर मौन यहाँ का हिन्दू है..
दिल रोता है जब गौ हत्या पे सरकार यहाँ की सोती है..
प्रतिबन्ध लगा दो गौ हत्या पे हृदय सभी का कहता है..
प्रतिबन्ध लगा दो गौ हत्या पे हृदय सभी का कहता है ...
कहने कहने से गौ हत्या पे प्रतिबंद लग नहीं पाया है ..
उठ हिन्दू वीर तुझे अब तेरी गौ माता ने बुलाया है..
उसके हत्यारों को तुझको अब समशान पोहचाना है ..
उस माँ के दूध का हर कतरा कतरा लौटना है..
बंद करो यह गौ हत्या बस यही हमारा नारा है..
दिख जाये गौ हत्यारो को की गौ पुत्रों ने उनको ललकारा है..
हुंकार भरो हिंदुओं सभी अब यही एकमात्र चारा है..
इस हिन्द भूमि पे हमने फिर से राम राज्ये लाना है..
हर घर में हो गौ माता अब वही युग दोहराना है..
जाग हिन्दू तुझको अब गौ रक्षा का फ़र्ज़ निभाना है..
कटती गौ माता पूछ रही क्या ये हिन्दुस्तान हमारा है ???
रोती और नम आँखों से उसने बस यही पुकारा है..
हो खून अगर तुम हिन्दू का गौ हत्यारों पर वार करो..
इन दुष्ठ पापियों का बस आज यही संघार करो...
गौ हत्यारों का वध कर गौ हत्या का बहिस्कार करो ..

गौ माता की यही पुकार बंद करो गौ अत्याचार..
गौ पुत्रों की यही पुकार उठ जाने दो अब हिन्दू तलवार...
गौ पुत्रों अब दो ललकार मच जाने दो हा हा कार ...
गौ रक्षक अब हो तैयार नहीं सहेंगे अब गौ माता पर वार..
गौ रक्षक की यही पुकार नहीं सहेंगे अब गौ पर वार ....
🙏 शिवेंद्र प्रताप सिंह ⛳🙏
वंदे गौ मातरम्
जय माँ भारती
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ,

तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया कुछ बोझ अपना बँट गयl
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
 हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरुद्ध,
 इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह, किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
 रोड़ा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए, सो गिर गए
रहे हर दम, उसी की
सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।
फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूँदकर पलकें सहज
 दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिश्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।
🙏🙏😊😊🙏🙏
निकल गयी तलवार म्यान से तो फिर विराम नही होगा |
 सारे जहाँ में हिन्दू तो होंगे पर इस्लाम नहीं होगा ।


हर बालक अंगद होगा हर बूढ़ा जामवंत होगा |
मुल्लों के छक्के छुड़ाने वाला हर युवा हनुमान होगा ।
 जो जय श्री राम नही कहेगा उसका नाम नही होगा |
 सारे जहाँ में हिन्दू तो होंगे पर इस्लाम नही होगा ।।




बढ़ा कारवां नही रुकेगा ईद नही बस होली होगी |
या तो गीता स्वीकारेंगे या खानी गोली होगी।

चारो दिशाओं में वेद गूजेंगे फिर अज़ान नही होगा |
मक्का मदीना वहीँ रहेगे पर इस्लाम नही होगा ।



हर हर महादेव गूँजेगा मक्का और मदीना से |
गीता गंगा नाम रखेंगी सलमा और सकीना से ।
 सिर्फ चलेगी रामजादो की कोई इमाम नहीं होगा |
अरब का रेगिस्तान तो होगा पर इस्लाम नही होगा ।।



 जय हिन्दू  !
जय हिंदुराष्ट्र. !
जय श्री राम!
💪💪🚩🚩💪💪
प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों
द्वारा किए आविष्कार व उनके द्वारा उजागर रहस्य –
💥महर्षि दधीचि -
महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। वे संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से महर्षि दधीचि बड़े पूजनीय हुए।

इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना
अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित
होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था।
उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर
को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर
देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मदेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा।
उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए अपनी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह
एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।
💥आचार्य कणाद -
कणाद परमाणुशास्त्र के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
💥भास्कराचार्य -
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया।
भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
💥आचार्य चरक -

‘चरकसंहिता’ जैसा महत्तवपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन
खोज की। आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर की।
💥भारद्वाज -
आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का
आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई
सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान
को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह
ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता
है।
💥कण्व -
वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ।
सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।
💥कपिल मुनि -
भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र चाहा। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं।
इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में
पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही।
वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो
ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना।
 इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने
कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया।
इससे कुपित होकर मुनि ने
राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक किया।
💥पतंजलि -
आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को
रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी
उपचार संभव है।
💥शौनक :
वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
💥महर्षि सुश्रुत -
ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक
(सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे
तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है।
माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत
मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने
की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
💥वशिष्ठ :
वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
💥विश्वामित्र :
ऋषि बनने से पहले
विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई।
 इसी कड़ी में माना जाता है
कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली
हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं।
विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग
होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का
चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
💥महर्षि अगस्त्य -

वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञकलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे।
 उनके तपोबल से जुड़ी
पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित
होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।
💥गर्गमुनि -
गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की
दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।
कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि- नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
💥बौद्धlयन -
भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की
त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धlयन ने खोजी। दो समकोण
समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का
उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धlयन ने आसान बनाया।


मोहित गंगवार