गंगा को प्रदूषित करते शहर
आबादी में छोटे एवं मंझोले शहरों की
श्रेणी में आने वाले छह शहर ऐसे हैं, जिनके नालों का गंदा पानी परोक्ष रूप
से गंगा में मिलकर उसे मैला करता है और उसे साफ करने के लिए सीवेज शोधन
संयंत्र (एसटीपी) लगाए जाने की कोई भावी योजना भी नहीं है। इनमें बबराला,
उझेनी एवं गुन्नौर (बदायूं), सोरों (एटा) और बिल्हौर (कानपुर) शामिल हैं।
गंगा की निगरानी कर रही उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की इकाई ने
इन्हें चिन्हित करते हुए इनमें एसटीपी के लिए कोई योजना न बनाए जाने पर
चिंता जताई है। दरअसल, हाल में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के गठन
के बाद गंगा नदी में पर्यावरण की दृष्टि से विकास की शर्त रखी गई है। बोर्ड
अब तक गंगा में सीधे गिर रहे सीवेज पर ही नज़र रखता था। बोर्ड की मुख्य
पर्यावरण अधिकारी डॉ। मधु भारद्वाज ने बताया कि छोटे एवं मंझोले शहरों के
पुनरुत्थान के लिए बनी यूआईडीएसएसएमटी के तहत फर्रुखाबाद, मिर्ज़ापुर,
मुगलसराय, गाज़ीपुर, सैदपुर, गढ़मुक्तेश्वर, बिजनौर, अनूपशहर एवं चुनार आदि
में गंगा में सीधे गिर रहे सीवेज प्रबंधन के लिए योजनाएं बनकर स्वीकृत
हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, बबराला (बदायूं) के दो नालों का दो मिलियन लीटर
गंदा पानी (एमएलडी) प्रतिदिन वरद्वमार नदी में सीधे गिरता है, जो आगे चलकर
गंगा में मिलती है। उझेनी (बदायूं) का आठ एमएलडी गंदा पानी गंगा से तीस
किमी दूर स्थित तालाब में गिरता है, जो आगे नालों में मिलता है। गुन्नौर
(बदायूं) के दो नालों का तीन एमएलडी गंदा पानी एक तालाब में गिरता है, जो
आगे चलकर वरद्वमार नदी से होता हुआ गंगा में मिलता है। सोरों (एटा) के तीन
नालों का चार एमएलडी गंदा पानी गंगा में सीधे नहीं गिरता, पर आगे चलकर
उसमें ही मिलता है। बिल्हौर (कानपुर) के नालों का तीन एमएलडी सीवेज ईशान
नदी में सीधे गिरता है। यह भी आगे चलकर गंगा में ही मिलता है।
- मोहित गंगवार