Friday, 3 January 2014
नदियों का पानी बोतल में, गंगा जलबिकता होटल मेंपानी पर सबका अधिकार, बंदकरो इसका व्यापार।हरा नीम और पीली हल्दी, बासमती और हाफुसआमधीरे-2 बिक जाएँगे जंगल झरने चारों धाम।अपना गौरव अपनी भाषा, एक वर्ष में बारहमासाहिन्दी की खाता है लेकिन अँग्रेजी मे करेतमासाये तो बस अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है...अपने रीति रिवाजों पर जिसको कोई अभिमाननहींजहां गायें कटती लाखों मे, वो मेरा हिंदुस्ताननहीं।उत्सव को बाजार बनाया, रिश्तों को व्यापारबनायादौलत के भूखे-प्यासों ने, बच्चों को औज़ारबनाया।सिंहासन पर कातिल बैठा, जो हक मांगेउसको लाठीक्रान्ति हो रही कम्प्युटर पर, किसे याद अबहल्दी घाटीये तो बस अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment