Thursday, 18 December 2014


पेशावर में घटी ह्रदय विदारक घटना पर विरोध स्वरुप कुछ पंक्तियाँ।
दूध पिलाते थे नागों को
भारत पर चढ़ जाने को
आतंकी पैदा करते थे
दहशत को फ़ैलाने को

पाकिस्तान तेरी करनी
फल बच्चों ने भोगा है
दोहरे चेहरे वाले जालिम
उतरा तेरा चोगा है

इसी बेल को पाल पास कर
तूने कितना बड़ा किया
हर आतंकी को अपनाया
अपना अड्डा खड़ा किया

आज तुझे ही डस डाला
तेरे ही पाले साँपों ने
पैरों तले कुचल डाला
तेरे आतंकी बापों ने

देख जरा उस पीड़ा को
जो हर ह्रदय में उठती है
सूंघ जरा उस बदबू को
जो मरे शवों से उठती है

यूँ ही लोग मरे थे जब
तुमने मुम्बई दहलाया था
गोली की आवाजों से जब
अक्षरधाम गुंजाया था

संसद पर हमला हो या
कई बारों के बम के विस्फोट
अफज़ल गुरु कसाब भेजकर
कितनी गहरी दी है चोट

फिर भी तेरे दुःख में जालिम
तेरे साथ खड़े हैं हम
आतंकवाद से लड़ जाने को
खुलकर आज अड़े हैं हम

बात समझ आ पाई हो तो
अब ये दहशत बंद करो
भाड़े के आतंकी रोको
अब ये वहशत बंद करो

वरना एक दिन तुम डूबोगे
सारे मारे जाओगे
अपनी करनी के कारण तुम
जीवन भर पछताओगे.....




--मोहित गंगवार 

Wednesday, 8 January 2014

Friday, 3 January 2014

नदियों का पानी बोतल में, गंगा जलबिकता होटल मेंपानी पर सबका अधिकार, बंदकरो इसका व्यापार।हरा नीम और पीली हल्दी, बासमती और हाफुसआमधीरे-2 बिक जाएँगे जंगल झरने चारों धाम।अपना गौरव अपनी भाषा, एक वर्ष में बारहमासाहिन्दी की खाता है लेकिन अँग्रेजी मे करेतमासाये तो बस अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है...अपने रीति रिवाजों पर जिसको कोई अभिमाननहींजहां गायें कटती लाखों मे, वो मेरा हिंदुस्ताननहीं।उत्सव को बाजार बनाया, रिश्तों को व्यापारबनायादौलत के भूखे-प्यासों ने, बच्चों को औज़ारबनाया।सिंहासन पर कातिल बैठा, जो हक मांगेउसको लाठीक्रान्ति हो रही कम्प्युटर पर, किसे याद अबहल्दी घाटीये तो बस अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई


सैनिक की अंतिम इच्छा :साथी घर जाकर मत कहना, संकेतों में बतला देनायदि हाल मेरी माता पूछे, मुरझाया फूलदिखा देनायदि इतना कहने से न माने, जलता दीप बुझा देनायदि हाल मेरी बहना पूछे, मस्तक तिलकमिटा देनायदि इतना कहने से न माने, तो राखी तोडदिखा देनायदि हाल मेरी पत्नी पूछे, मांग सिंदूर मिटा देनायदि इतना कहने से न माने, तो चूड़ी तोडदिखा देना ।नमन है हर एक हिन्दुस्तानी सैनिक को


सैनिक की अंतिम इच्छा :साथी घर जाकर मत कहना, संकेतों में बतला देनायदि हाल मेरी माता पूछे, मुरझाया फूलदिखा देनायदि इतना कहने से न माने, जलता दीप बुझा देनायदि हाल मेरी बहना पूछे, मस्तक तिलकमिटा देनायदि इतना कहने से न माने, तो राखी तोडदिखा देनायदि हाल मेरी पत्नी पूछे, मांग सिंदूर मिटा देनायदि इतना कहने से न माने, तो चूड़ी तोडदिखा देना ।नमन है हर एक हिन्दुस्तानी सैनिक को


क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?अभी तो कटे तेरे सिर्फ पाँच जवान ,बढ़ने दे इसकी शहादत को अभी और ,ताकि रच सके इतिहास में एक और बयान ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?अभी तो बरस आज़ादी के होने दे कुछ औरजवान ,गर इस तरह से ही चलेगा ये देश ,तो बन जाएगा देख तू फिर से गुलाम ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?वो बँटवारा नहीं वो था ऐसा तूफ़ान ,जो जब-जब चलेगा नफरत की आँधी लिए ,तब-तब मिटेंगे यहाँ से रहीम और राम ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?अभी नेतायों ने पहना ही कहाँ वो कफ़न तमाम ,जिसमे लिपटी थीं आहें उन बेवायों की ,जिनके अपने शहीद हुए थे सीना तान ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?अभी यहीं पर पढ़नी है फिर से “गीता” और“कुरान” ,जब कुदरत कहेगी चल मेरे साथ चला चल ,तब घबराएगा फिर से ये पापी इंसान ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?कुछ तो सन्देश दे अपने देशवासियों के नाम ,कह दे कि या तो मेरी लाज बचा लो ,या फिर लुटने दो मेरी अस्मत तमाम ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?तुझे बचाने वाले अब बन गए हैं भक्षकखुले~ए~आम ,वोटों के लालच में देखो …….दुश्मन की करें चाकरी …..देकर उन्हें जीवन-दान ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?अभी भी लाखों देशभक्त करते हैं तेरा सम्मान ,तुझे बचाने खड़े हैं अब हम सब ,बजा बिगुल करके जंग का एलान ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?मर्दों पर होता नहीं तुझे यकीन अब…..ऐसा जान ,मैं हैरान होती हूँ जब-जब ये सोच ,तब-तब बना लेती हूँ एक “नारी सेना” …..लिखकर नए नाम ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?तेरे शहीदों का बदला लेगी अब ये “नारी सेना ”बनाम ,मर्दानगी अबमर्दों की क्योंकि जाती जा रही है ,इसलिए अब सीमा में घुस कर मारेगी येसेना …..उनके भी जवान ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?देख हम सब मिलकर कर रहे हैं ……अब जंगका एलान ,जिस मुल्क में पहले ही सब ख़तम हो चुका हो ,आ उसके षड्यंत्रों को भी अब करें नाकाम ।क्यूँ रोता है हिन्दुस्तान ?नफरत है मुझे इस “पाक” शब्द से …..ये तूजान ,पहले रेतेंगे हम उस “शब्द” को बेदर्दी से ,फ़िर मिटा देंगे उसके “इस” और “तान” ॥


(2min का समय निकाल कर इस पोस्टको अवश्य पढ़े)एक पिता का ख़त अपने 'फौजी' बेटे के नाम :अक्सर तेरे खतों को सीने से लगा देती हैमाँ तेरी.तुझे याद करके चुपके से आसू बहा देती हैमाँ तेरी. तेरे आने का आसरा देकर मेंअपनी बुढ़ी टांगो को समझाता हूँ.जब दर्द बहुत बढ जाता हैं अपनी टांगो को खुदही दबा देता हूँ.त्योहारों पर अक्सर तेरी कमी हमेशा मुझे खलही जाती हैं. सरहद पर जंग छिड़ी हैसुनकेअक्सर तेरी बहन सहम जाती हैं.खेत खलियानों में अब फसले भी कमही खिला करती हैं.गावं की सुनी सड़के आज भी तेरा इंतज़ारअक्सरकरती हैं.चाहे कुछ भी हो में तुझे कभी वापस गावंना बुलाउंगा. याद है तूने कहा था इस मिटटी मेंजनम लिया है मैंने.इस मिटटी में ही में अपनी जान लुटाऊंगा !जय हिंद वन्दे मातरम् जय भारत( शेयर जरुर करे)


फिर कोई पत्ता पेड़ से झड़ गया यारों
कौनसा फर्क किसी को पड़ गया यारों
नौकरानी को तनख्वाह कम क्या मिली
"अंकल सैम"हम से उखड़ गया यारों
इस बाजू पाकिस्तान क्या कम था?
जो
आज चीन उस बाजू से चढ़ गया यारों
वो अनाज जो किसान ने ही उगाया था
वो उसी की आस में भूखों मर गया यारों
जो भीतर रखा उसे सियासी चूहे खा गए
जो बाहर था वो बारिश में सड़ गया यारों
रोटी न दी,सरकार ने"रोटी की गारंटी" दी
पेट पिचक के तब तक सिकुड़ गया यारों
"देश की माँ"किस कदर परेशान हो गयी
जब "पप्पू"इम्तिहान में पिछड़ गया यारों
"टोपी वाला"भी अजब फितरत का निकला
जिसके कंधे पे बैठा,उसीसे लड़ गया यारों
गायों को कटने से बचाने की फुर्सत किसे?
मुल्क "गे" रक्षा के लिए झगड़ गया यारों
हुकूमत तो "दामाद"का सूट सजाती रही
यहाँ वतन का पायजामा उधड़ गया यारों
शहीदों की बरसी पे सन्नाटा पसरा रहा वहाँ
वतन"सनी लियोन" के शो में उमड़ गया यारों
सियासत के मेले में इस कदर भीड़-भाड़ थी
"आप" का लोकपाल उनसे बिछड़ गया यारों
"हाथ" ने थाम लिया कसके,चने का झाड़
"आप"सा कोई "झाड़ू" लेके चढ़ गया यारो
ज़िक्र "निर्भया" का जब भी कहीं भी हुआ
"सागर" शर्म से ज़मीं में गड़ गया यारों
मैं पुरानी बातों पे अभी भी अटका हूँ यहाँ
मुल्क सब छोड़, कब का आगे बढ़ गया यारों...।



- मोहित गंगवार। ।