Wednesday, 28 March 2012

सभी हिन्दू पुत्रो के लिए सन्देश -



जब जब मै देश में हो रही हिंदुत्व की और देश की दुर्दशा की बात करता हु ,तब लोग सवाल करते है
.."हम कर भी क्या सकते है?"

उन लोगो को ये एक छोटा सा उत्तर है -

प्रकृति ने पुरुष का निर्माण करते समय उसे ऐसी बोहत सारी शक्तिया दी थी जो की स्त्री के पास नहीं थी,
उन शक्तियों को और उन शतियो के प्रयोग को ही "पुरुषार्थ" कहा गया है!

माँ भवानी के चरणों में नमन करो,दीप और धुप जलाओ ,रक्तचंदन का तिलक करो और फीर आईने के सामने खड़े रहकर अपने आप से पूछो - की आप "क्या नहीं कर सकते?"

जवाब मिल जायेगा !
संसार के सभी धर्मो के पुरुषो में हिन्दू पुरुष सर्वश्रेष्ठ है क्यूंकि -
उसने उसे जन्म देने वाली माँ को भगवान् माना है और उसकी दुर्गा रूप में पूजा की है!
और यही एक कारण है की हजारो साल बीत गए , कितने ही लुटेरे (इस्लामी ,अंग्रेज) आये और चले गए ,हिन्दू सभ्यता आज भी वही की वाही खड़ी है.....एक अभेद्य पर्वत की तरह!
और वो दिन दूर नहीं जब ये हिन्दू सभ्यता सम्पूर्ण धरातल पर राज करेगी!!!

जय हो मैय्या की!हर हर महादेव !!

जयति अखंड हिन्दू राष्ट्रं!

क्या आप सेकुलर है ?



तो आईये जरा इन प्रश्नों के उत्तर दीजिये -

१] विश्व में ५२ मुस्लिम देश है, एक मुस्लिम देश ऐसा बताये जहा हज यात्रा पर सब्सिडी दी जाती है!

२] एक मुस्लिम राष्ट्र ऐसा बताये जहा हिन्दुओ को विशेष अधिकार दिए जाते है, जैसे की भारत में मुस्लिमो को !

३] केवल एक देश ऐसा बताये जहा ८५ % बहुसंख्य १५ % अल्पसंख्यानको के भोग के लिए चुसे जाते है !

४] एक मुस्लिम राष्ट्र ऐसा बताये जहा गैर-मुस्लिम राष्ट्राध्यक्ष बना हो !

५] एक ऐसा मुल्ला या मुलावी बताये जिसने आतंकवाद के विरुद्ध फतवा निकला हो!

६] महाराष्ट्र,बिहार,केरल, पांडिचेरी (जहा हिन्दू बहुसंख्य है) जैसे राज्यों ने मुस्लिम मुख्यमंत्रियों को कभी चुना है.. ...क्या आप जम्मू-कश्मीर (जहा मुस्लिम बहुसंख्य है) में हिन्दू मुख्यमंत्री की कल्पना कर सकते है?

७] भारत - पकिस्तान के बटवारे के समय पकिस्तान में २४ % हिन्दू थे जो की आज १.५ % भी नहीं रहे! क्या कोई बता सकता है की गायब हुए हिन्दुओ के साथ क्या हुआ? क्या हिन्दुओ के लिए भी कोई मानवाधिकार है ???

८] इसके बिलकुल विपरीत भारत में मुस्लिमो की संख्या १९५१ में १० % से बढ़कर १५ % हो गयी है !
और हिन्दू ८७.५ % से ८५ % पर है!
क्या फीरभी आप हिन्दुओ को कट्टरपंथी कहेगे !

९] जब हिन्दुओ ने मुसलमानों को अपने जमीन का ३० % हिस्सा गुनगुनाते हुए दे दिया....तब उन्हें अपने ही भूमि पर अयोध्या और मथुरा जैसे पवित्र स्थलों के लिए क्यों भीक माँगना पड रहा है?

१०] गाँधी ने सरकारी खर्च से सोमनाथ मदीर बनवाने के लिए विरोध किया था. तो फीर जनवरी १९४८ में दिल्ली की मस्जीद का जिर्नोध्धार करवाने के लिए उन्होंने क्योँ सरदार पटेल पर दबाव डाला ?

११] गांधी ने " खिलाफत आन्दोलन "(जिसे देश की आजादी से कोई लेना देना नहीं था) को समर्थन दिया था, इसके बदले में उन्होंने क्या पाया ?

१२] जब महाराष्ट्र,बिहार में मुस्लिम और ख्रिश्चन अल्पसंख्यांक है, तो फीर जम्मू-कश्मीर,नागालैंड,मिझोरम में हिन्दू अल्पसंख्यांक नहीं? हिन्दुओ को क्योँ अल्पसंख्यांक अधिकारों से वंचीत रखा जाता है ???

१३] जब हज यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है, तो अमरनाथ,कैलाश मानसरोवर यात्रा पर टैक्स क्यों लगाया जाता है?

१४] जब ख्रिश्चन और मुस्लिम विद्यालयों में कुरआन और बैबल पढाई जा सकती है, तो हिन्दू विद्यालयों में गीताजी क्योँ नहीं ?

१५] हिन्दुओ की समस्याए सामने आने के बजाय ,क्या आपको नहीं लगता की किसी का हिन्दू होना ही एक समस्या है????

१६] गोधरा के बाद छिड़े दंगो को एक हद से ज्यादा उठाया गया, बल्कि जहा ४ लाख हिन्दुओ का कश्मिरसे पूर्ण रूप से पतन हुआ उसके बारे में कोई बात करने को भी तयार नहीं.

१७ ] मंदिरो के पैसो को मुस्लमान और ख्रिश्चानो के उत्सवो में उडाया जाता है, यद्यपि मस्जीद और चर्च अपना पैसा अपने ढंग से खर्च करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र है!!

१८] अब्दूल रहमान अंतुले को मुंबई के सिध्धिविनायक मंदीर का ट्रस्टी बनाया गया, क्या कोई हिन्दू (जैसे की मुलायम सिंह यादव) किसी मदरसा या मस्जीद का ट्रस्टी बनकर दिखा सकता है?

१९] अगर हिन्दुओ को असहिष्णु कहा जाता है तो बताईये की कैसे मस्जीद और मदरसे दिनों दिन बढ़ते जा रहे है?
कैसे मुसलमानों को सड़क पर नमाज पढने दिया जाता है?
कैसे मुसलमानों को दिन में 5 बार लाउड स्पीकर पर ये कहने दिया जाता है की "अल्लाह के सिवाह दूसरा कोई भगवान् ही नहीं "

ये विचार किसी संघटना या राजनैतिक पार्टी के सदस्य के नहीं बल्कि एक सच्चे देशभक्त के है!
कृपया इसे शेयर करे !

जय हिंद !
जयति अखंड हिन्दू राष्ट्रं

प्रधानमंत्री जी, देश को जवाब चाहिए



देश की रक्षा तैयारियों के बारे में 12 मार्च को आर्मी चीफ जनरल वी. के. सिंह ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को जो चिट्ठी लिखी है, वह विस्फोटक और चिंतित करने वाला है। लीक हुई चिट्ठी में बहुत से मुद्दों को उठाया गया है। कुछ अहम मुद्दे निम्न हैं...

1. दुश्मन को शिकस्त देने के लिए टैंक के बेड़े के पास गोला-बारूद का भारी अभाव।
2. हवाई सुरक्षा के 97 फीसदी उपकरण पुराने पड़ चुके हैं और बेकार हो गए हैं, हवाई हमले से बचाने का भरोसा नहीं दे सकते।
3. पैदल सेना के पास पर्याप्त हथियारों का अभाव, रात में लडऩे की क्षमता की भारी कमी है।
4. आर्मी की एलीट स्पेशल फोर्स के पास के पास चिंताजनक रूप से जरूरी हथियारों की कमी है।
5. सेना की निगरानी क्षमता में बड़े स्तर पर खामियां मौजूद हैं।

हालांकि, इसके साथ मैं एक बात और कहना चाहता हूं। लोग आर्मी चीफ पर पिले पड़े हैं। कुछ सांसद तो उन्हें बर्खास्त करने तक की मांग तक कर रहे हैं। मेरा उनसे कहना है कि संदेशवाहक को गोली नहीं मारी जाती। ऐसा पहली बार हो रहा है कि रक्षा मामलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से चर्चा हो रही है। इसका श्रेय आर्मी चीफ को ही जाता है। नहीं तो अब तक तो इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर दबा दिया जाता था।

आम आदमी सरकारी भ्रष्टाचार से आजिज आ चुका है। उसकी सहनशक्ति दिन पर दिन कम हो रही है। और, समझ लीजिए कि जिस दिन हमारे सुरक्षा साजोसामान में भ्रष्टाचार का असर सबको दिखने लगेगा, लोगों का गुस्सा फूट पड़ेगा। तब उसे संभाल पाना संभव नहीं होगा। बहुत अच्छा होगा कि हमारे सांसद, जिनकी अपनी ही विश्वसनीयता गर्त में है, इस मौके का इस्तेमाल सिस्टम की सफाई में करें न कि साहस दिखाने वाले जनरल पर निशाने साधने में क्योंकि उनके निजी हितों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
आनन्द प्रिय राहुल
=== > संस्कृत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य < ===

1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा।
संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1987

2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है)
संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी

3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति स्वस्थ और बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।
संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद)

4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी(Technology) रखती है।
संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी, नासा आदि

(नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं)
(असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं। दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्तकरने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।

5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है।
संदर्भ: यूएनओ

6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके।
परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।

7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है।
संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985

8. संस्कृत भाषा वर्तमान में "उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी" तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज "सरल किर्लियन फोटोग्राफी" भी नहीं है )

9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरतनाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है )

10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है।

ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है {भाग 2}


January 7, 2012 at 1:09am ·
     गताँक से आगे{पिछले भाग के लिये यहाँ  https://www.facebook.com/note.php?note_id=339924262684304 क्लिक्  करेँ} हिंदू गुम्बज के सम्‍बन्‍ध मे तर्क (क्रमांक 62 से 64) 62. ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। ऐसा गुम्बज किसी कब्र के लिये होना एक विसंगति है क्योंकि कब्रगाह एक शांतिपूर्ण स्थान होता है। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों के लिये गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है क्योंकि वे देवी-देवता आरती के समय बजने वाले घंटियों, नगाड़ों आदि के ध्वनि के उल्लास और मधुरता को कई गुणा अधिक कर देते हैं। 63. ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। इस्लाम के गुम्बज अनालंकृत होते हैं, दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित पाकिस्तानी दूतावास और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के गुम्बज उनके उदाहरण हैं। 64. ताजमहल दक्षिणमुखी भवन है। यदि ताज का सम्बंध इस्लाम से होता तो उसका मुख पश्चिम की ओर होता। कब्र दफनस्थल होता है न कि भवन ( क्रमांक 65 से 69 तक) 65. महल को कब्र का रूप देने की गलती के परिणामस्वरूप एक व्यापक भ्रामक स्थिति उत्पन्न हुई है। इस्लाम के आक्रमण स्वरूप, जिस किसी देश में वे गये वहाँ के, विजित भवनों में लाश दफन करके उन्हें कब्र का रूप दे दिया गया। अतः दिमाग से इस भ्रम को निकाल देना चाहिये कि वे विजित भवन कब्र के ऊपर बनाये गये हैं जैसे कि लाश दफ़न करने के बाद मिट्टी का टीला बना दिया जाता है। ताजमहल का प्रकरण भी इसी सच्चाई का उदाहरण है। (भले ही केवल तर्क करने के लिये) इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज़ की लाश दफ़नाई गई न कि लाश दफ़नाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया। 66. ताज एक सातमंजिला भवन है। शाहज़ादा औरंगज़ेब के शाहज़हां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन के चार मंजिल संगमरमर पत्थरों से बने हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृतीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर के इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बने दो और मंजिलें हैं जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिये क्योंकि सभी प्राचीन हिंदू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है। 67. नदी तट से भाग में संगमरमर के नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहज़हां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को जिन्हें कि शाहज़हां ने अतिगोपनीय बना दिया है भारत के पुरातत्व विभाग के द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों के दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिंदू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक एक दरवाजे बने हुये हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारा से चुनवा दिया गया है कि वे दीवाल जैसे प्रतीत हों। 68. स्पष्तः मूल रूप से शाहज़हां के द्वारा चुनवाये गये इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाये हुये दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झाँक कर देखा था। उसके भीतर एक वृहत कक्ष (huge hall) और वहाँ के दृश्य को‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ देख कर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत सा हो गया। वहाँ बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारे मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहाँ पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ताजमहल हिंदू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन कौन से साक्ष्य छुपे हुये हैं उसके के सातों मंजिलों को खोल कर उसकी साफ सफाई करने की नितांत आवश्यकता है। 69. अध्ययन से पता चलता है कि इन बंद कमरों के साथ ही साथ ताज के चौड़ी दीवारों के बीच में भी हिंदू चित्रों, मूर्तियों आदि छिपे हुये हैं। सन् 1959 से 1962 के अंतराल में श्री एस.आर. राव, जब वे आगरा पुरातत्व विभाग के सुपरिन्टेन्डेंट हुआ करते थे, का ध्यान ताजमहल के मध्यवर्तीय अष्टकोणीय कक्ष के दीवार में एक चौड़ी दरार पर गया। उस दरार का पूरी तरह से अध्ययन करने के लिये जब दीवार की एक परत उखाड़ी गई तो संगमरमर की दो या तीन प्रतिमाएँ वहाँ से निकल कर गिर पड़ीं। इस बात को खामोशी के साथ छुपा दिया गया और प्रतिमाओं को फिर से वहीं दफ़न कर दिया गया जहाँ शाहज़हां के आदेश से पहले दफ़न की गई थीं। इस बात की पुष्टि अनेक अन्य स्रोतों से हो चुकी है। जिन दिनों मैंने ताज के पूर्ववर्ती काल के विषय में खोजकार्य आरंभ किया उन्हीं दिनों मुझे इस बात की जानकारी मिली थी जो कि अब तक एक भूला बिसरा रहस्य बन कर रह गया है। ताज के मंदिर होने के प्रमाण में इससे अच्छा साक्ष्य और क्या हो सकता है? उन देव प्रतिमाओं को जो शाहज़हां के द्वारा ताज को हथियाये जाने से पहले उसमें प्रतिष्ठित थे ताज की दीवारें और चुनवाये हुये कमरे आज भी छुपाये हुये हैं। शाहज़हां के पूर्व के ताज के संदर्भ ( क्रमांक 70 से 106 ) 70. स्पष्टतः के केन्द्रीय भवन का इतिहास अत्यंत पेचीदा प्रतीत होता है। शायद महमूद गज़नी और उसके बाद के मुस्लिम प्रत्येक आक्रमणकारी ने लूट कर अपवित्र किया है परंतु हिंदुओं का इस पर पुनर्विजय के बाद पुनः भगवान शिव की प्रतिष्ठा करके इसकी पवित्रता को फिर से बरकरार कर दिया जाता था। शाहज़हां अंतिम मुसलमान था जिसने तेजोमहालय उर्फ ताजमहल के पवित्रता को भ्रष्ट किया। 71. विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं, "बाबर ने सन् 1630 आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई"। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। 72. बाबर की पुत्री गुलबदन 'हुमायूँनामा' नामक अपने ऐतिहासिक वृतांत में ताज का संदर्भ 'रहस्य महल' (Mystic House) के नाम से देती है। 73. बाबर स्वयं अपने संस्मरण में इब्राहिम लोधी के कब्जे में एक मध्यवर्ती अष्टकोणीय चारों कोणों में चार खम्भों वाली इमारत का जिक्र करता है जो कि ताज ही था। ये सारे संदर्भ ताज के शाहज़हां से कम से कम सौ साल पहले का होने का संकेत देते हैं। 74. ताजमहल की सीमाएँ चारों ओर कई सौ गज की दूरी में फैली हुई है। नदी के पार ताज से जुड़ी अन्य भवनों, स्नान के घाटों और नौका घाटों के अवशेष हैं। विक्टोरिया गार्डन के बाहरी हिस्से में एक लंबी, सर्पीली, लताच्छादित प्राचीन दीवार है जो कि एक लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय स्तंभ तक जाती है। इतने वस्तृत भूभाग को कब्रिस्तान का रूप दे दिया गया। 75. यदि ताज को विशेषतः मुमताज़ के दफ़नाने के लिये बनवाया गया होता तो वहाँ पर अन्य और भी कब्रों का जमघट नहीं होता। परंतु ताज प्रांगण में अनेक कब्रें विद्यमान हैं कम से कम उसके पूर्वी एवं दक्षिणी भागों के गुम्बजदार भवनों में। 76. दक्षिणी की ओर ताजगंज गेट के दूसरे किनारे के दो गुम्बजदार भवनों में रानी सरहंडी ब़ेगम, फतेहपुरी ब़ेगम और कु. सातुन्निसा को दफ़नाया गया है। इस प्रकार से एक साथ दफ़नाना तभी न्यायसंगत हो सकता है जबकि या तो रानी का दर्जा कम किया गया हो या कु. का दर्जा बढ़ाया गया हो। शाहज़हां ने अपने वंशानुगत स्वभाव के अनुसार ताज को एक साधारण मुस्लिम कब्रिस्तान के रूप में परिवर्तित कर के रख दिया क्योंकि उसने उसे अधिग्रहित किया था (ध्यान रहे बनवाया नहीं था)। 77. शाहज़हां ने मुमताज़ से निक़ाह के पहले और बाद में भी कई और औरतों से निक़ाह किया था, अतः मुमताज़ को कोई ह़क नहीँ था कि उसके लिये आश्चर्यजनक कब्र बनवाया जावे। 78. मुमताज़ का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उसमें ऐसा कोई विशेष योग्यता भी नहीं थी कि उसके लिये ताम-झाम वाला कब्र बनवाया जावे। 79. शाहज़हां तो केवल एक मौका ढूंढ रहा था कि कैसे अपने क्रूर सेना के साथ मंदिर पर हमला करके वहाँ की सारी दौलत हथिया ले, मुमताज़ को दफ़नाना तो एक बहाना मात्र था। इस बात की पुष्टि बादशाहनामा में की गई इस प्रविष्टि से होती है कि मुमताज़ की लाश को बुरहानपुर के कब्र से निकाल कर आगरा लाया गया और 'अगले साल' दफ़नाया गया। बादशाहनामा जैसे अधिकारिक दस्तावेज़ में सही तारीख के स्थान पर 'अगले साल' लिखने से ही जाहिर होता है कि शाहज़हां दफ़न से सम्बंधित विवरण को छुपाना चाहता था। 80. विचार करने योग्य बात है कि जिस शाहज़हां ने मुमताज़ के जीवनकाल में उसके लिये एक भी भवन नहीं बनवाया, मर जाने के बाद एक लाश के लिये आश्चर्यमय कब्र कभी नहीं बनवा सकता। 81. एक विचारणीय बात यह भी है कि शाहज़हां के बादशाह बनने के तो या तीन साल बाद ही मुमताज़ की मौत हो गई। तो क्या शाहज़हां ने इन दो तीन साल के छोटे समय में ही इतना अधिक धन संचय कर लिया कि एक कब्र बनवाने में उसे उड़ा सके? 82. जहाँ इतिहास में शाहज़हां के मुमताज़ के प्रति विशेष आसक्ति का कोई विवरण नहीं मिलता वहीं शाहज़हां के अनेक औरतों के साथ, जिनमें दासी, औरत के आकार के पुतले, यहाँ तक कि उसकी स्वयं की बेटी जहांआरा भी शामिल है, के साथ यौन सम्बंधों ने उसके काल में अधिक महत्व पाया। क्या शाहज़हां मुमताज़ की लाश पर अपनी गाढ़ी कमाई लुटाता? 83. शाहज़हां एक कृपण सूदखोर बादशाह था। अपने सारे प्रतिद्वंदियों का कत्ल करके उसने राज सिंहासन प्राप्त किया था। जितना खर्चीला उसे बताया जाता है उतना वो हो ही नहीं सकता था। 84. मुमताज़ की मौत से खिन्न शाहज़हां ने एकाएक ताज बनवाने का निश्चय कर लिया। ये बात एक मनोवैज्ञानिक असंगति है। दुख एक ऐसी संवेदना है जो इंसान को अयोग्य और अकर्मण्य बनाती है। 85. शाहज़हां यदि मूर्ख या बावला होता तो समझा जा सकता है कि वो मृत मुमताज़ के लिये ताज बनवा सकता है परंतु सांसारिक और यौन सुख में लिप्त शाहज़हां तो कभी भी ताज नहीं बनवा सकता क्योंकि यौन भी इंसान को अयोग्य बनाने वाली संवेदना है। 86. सन् 1973 के आरंभ में जब ताज के सामने वाली वाटिका की खुदाई हुई तो वर्तमान फौवारों के लगभग छः फुट नीचे और भी फौवारे पाये गये। इससे दो बातें सिद्ध होती हैं। पहली तो यह कि जमीन के नीचे वाले फौवारे शाहज़हां के काल से पहले ही मौजूद थे। दूसरी यह कि पहले से मौजूद फौवारे चूँकि ताज से जाकर मिले थे अतः ताज भी शाहज़हां के काल से पहले ही से मौजूद था। स्पष्ट है कि इस्लाम शासन के दौरान रख रखाव न होने के कारण ताज के सामने की वाटिका और फौवारे बरसात के पानी की बाढ़ में डूब गये थे। 87. ताजमहल के ऊपरी मंजिल के गौरवमय कक्षों से कई जगह से संगमरमर के पत्थर उखाड़ लिये गये थे जिनका उपयोग मुमताज़ के नकली कब्रों को बनाने के लिये किया गया। इसी कारण से ताज के भूतल के फर्श और दीवारों में लगे मूल्यवान संगमरमर के पत्थरों की तुलना में ऊपरी तल के कक्ष भद्दे, कुरूप और लूट का शिकार बने नजर आते हैं। चूँकि ताज के ऊपरी तलों के कक्षों में दर्शकों का प्रवेश वर्जित है, शाहज़हां के द्वारा की गई ये बरबादी एक सुरक्षित रहस्य बन कर रह गई है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि मुगलों के शासन काल की समाप्ति के 200 वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो जाने के बाद भी शाहज़हां के द्वारा ताज के ऊपरी कक्षों से संगमरमर की इस लूट को आज भी छुपाये रखा जावे। 88. फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वहाँ चौंधिया देने वाली वस्तुएँ थीं। यदि वे वस्तुएँ शाहज़हां ने खुद ही रखवाये होते तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता। परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएँ थीं और शाहज़हां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिये वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे। 89. ताज की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर खाई खोद कर की गई है। किलों, मंदिरों तथा भवनों की सुरक्षा के लिये खाई बनाना हिंदुओं में सामान्य सुरक्षा व्यवस्था रही है। 90. पीटर मुंडी ने लिखा है कि शाहज़हां ने उन खाइयों को पाटने के लिये हजारों मजदूर लगवाये थे। यह भी ताज के शाहज़हां के समय से पहले के होने का एक लिखित प्रमाण है। 91. नदी के पिछवाड़े में हिंदू बस्तियाँ, बहुत से हिंदू प्राचीन घाट और प्राचीन हिंदू शव-दाह गृह है। यदि शाहज़हाँ ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता। 92. यह कथन कि शाहज़हाँ नदी के दूसरी तरफ एक काले पत्थर का ताज बनवाना चाहता था भी एक प्रायोजित कपोल कल्पना है। नदी के उस पार के गड्ढे मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा हिंदू भवनों के लूटमार और तोड़फोड़ के कारण बने हैं न कि दूसरे ताज के नींव खुदवाने के कारण। शाहज़हां, जिसने कि सफेद ताजमहल को ही नहीं बनवाया था, काले ताजमहल बनवाने के विषय में कभी सोच भी नहीं सकता था। वह तो इतना कंजूस था कि हिंदू भवनों को मुस्लिम रूप देने के लिये भी मजदूरों से उसने सेंत मेंत में और जोर जबर्दस्ती से काम लिया था। 93. जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊँची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाये गये हैं। 94. कुछ कल्पनाशील इतिहासकारों तो ने ताज के भवननिर्माणशास्त्री के रूप में कुछ काल्पनिक नाम सुझाये हैं पर और ही अधिक कल्पनाशील इतिहासकारों ने तो स्वयं शाहज़हां को ताज के भवननिर्माणशास्त्री होने का श्रेय दे दिया है जैसे कि वह सर्वगुणसम्पन्न विद्वान एवं कला का ज्ञाता था। ऐसे ही इतिहासकारों ने अपने इतिहास के अल्पज्ञान की वजह से इतिहास के साथ ही विश्वासघात किया है वरना शाहज़हां तो एक क्रूर, निरंकुश, औरतखोर और नशेड़ी व्यक्ति था। 95. और भी कई भ्रमित करने वाली लुभावनी बातें बना दी गई हैं। कुछ लोग विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि शाहज़हां ने पूरे संसार के सर्वश्रेष्ठ भवननिर्माणशास्त्रियों से संपर्क करने के बाद उनमें से एक को चुना था। तो कुछ लोगों का यग विश्वास है कि उसने अपने ही एक भवननिर्माणशास्त्री को चुना था। यदि यह बातें सच होती तो शाहज़हां के शाही दस्तावेजों में इमारत के नक्शों का पुलिंदा मिला होता। परंतु वहाँ तो नक्शे का एक टुकड़ा भी नहीं है। नक्शों का न मिलना भी इस बात का पक्का सबूत है कि ताज को शाहज़हां ने नहीं बनवाया। 96. ताजमहल बड़े बड़े खंडहरों से घिरा हुआ है जो कि इस बात की ओर इशारा करती है कि वहाँ पर अनेक बार युद्ध हुये थे। 97. ताज के दक्षिण में एक प्रचीन पशुशाला है। वहाँ पर तेजोमहालय के पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है। 98. ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं जो कि एक कब्र के लिया अनावश्यक है। 99. संपूर्ण ताज में 400 से 500 कमरे हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे रहाइशी कमरों का होना समझ के बाहर की बात है। 100. ताज के पड़ोस के ताजगंज नामक नगरीय क्षेत्र का स्थूल सुरक्षा दीवार ताजमहल से लगा हुआ है। ये इस बात का स्पष्ट निशानी है कि तेजोमहालय नगरीय क्षेत्र का ही एक हिस्सा था। ताजगंज से एक सड़क सीधे ताजमहल तक आता है। ताजगंज द्वार ताजमहल के द्वार तथा उसके लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय वाटिका के ठीक सीध में है। 101. ताजमहल के सभी गुम्बजदार भवन आनंददायक हैं जो कि एक मकब़रे के लिय उपयुक्त नहीं है। 102. आगरे के लाल किले के एक बरामदे में एक छोटा सा शीशा लगा हुआ है जिससे पूरा ताजमहल प्रतिबिंबित होता है। ऐसा कहा जाता है कि शाहज़हां ने अपने जीवन के अंतिम आठ साल एक कैदी के रूप में इसी शीशे से ताजमहल को देखते हुये और मुमताज़ के नाम से आहें भरते हुये बिताया था। इस कथन में अनेक झूठ का संमिश्रण है। सबसे पहले तो यह कि वृद्ध शाहज़हां को उसके बेटे औरंगज़ेब ने लाल किले के तहखाने के भीतर कैद किया था न कि सजे-धजे और चारों ओर से खुले ऊपर के मंजिल के बरामदे में। दूसरा यह कि उस छोटे से शीशे को सन् 1930 में इंशा अल्लाह ख़ान नामक पुरातत्व विभाग के एक चपरासी ने लगाया था केवल दर्शकों को यह दिखाने के लिये कि पुराने समय में लोग कैसे पूरे तेजोमहालय को एक छोटे से शीशे के टुकड़े में देख लिया करते थे। तीसरे, वृद्ध शाहज़हाँ, जिसके जोड़ों में दर्द और आँखों में मोतियाबिंद था घंटो गर्दन उठाये हुये कमजोर नजरों से उस शीशे में झाँकते रहने के काबिल ही नहीं था जब लाल किले से ताजमहल सीधे ही पूरा का पूरा दिखाई देता है तो छोटे से शीशे से केवल उसकी परछाईं को देखने की आवश्कता भी नहीं है। पर हमारी भोली-भाली जनता इतनी नादान है कि धूर्त पथप्रदर्शकों (guides) की इन अविश्वासपूर्ण और विवेकहीन बातों को आसानी के साथ पचा लेती है। 103. ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुये हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दिये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था। 104. ताजमहल पर शाहज़हां के स्वामित्व तथा शाहज़हां और मुमताज़ के अलौकिक प्रेम की कहानी पर विश्वास कर लेने वाले लोगों को लगता है कि शाहज़हाँ एक सहृदय व्यक्ति था और शाहज़हां तथा मुमताज़ रोम्यो और जूलियट जैसे प्रेमी युगल थे। परंतु तथ्य बताते हैं कि शाहज़हां एक हृदयहीन, अत्याचारी और क्रूर व्यक्ति था जिसने मुमताज़ के साथ जीवन भर अत्याचार किये थे। 105. विद्यालयों और महाविद्यालयों में इतिहास की कक्षा में बताया जाता है कि शाहज़हां का काल अमन और शांति का काल था तथा शाहज़हां ने अनेकों भवनों का निर्माण किया और अनेक सत्कार्य किये जो कि पूर्णतः मनगढ़ंत और कपोल कल्पित हैं। जैसा कि इस ताजमहल प्रकरण में बताया जा चुका है, शाहज़हां ने कभी भी कोई भवन नहीं बनाया उल्टे बने बनाये भवनों का नाश ही किया और अपनी सेना की 48 टुकड़ियों की सहायता से लगातार 30 वर्षों तक अत्याचार करता रहा जो कि सिद्ध करता है कि उसके काल में कभी भी अमन और शांति नहीं रही। 106. जहाँ मुमताज़ का कब्र बना है उस गुम्बज के भीतरी छत में सुनहरे रंग में सूर्य और नाग के चित्र हैं। हिंदू योद्धा अपने आपको सूर्यवंशी कहते हैं अतः सूर्य का उनके लिये बहुत अधिक महत्व है जबकि मुसलमानों के लिये सूर्य का महत्व केवल एक शब्द से अधिक कुछ भी नहीं है। और नाग का सम्बंध भगवान शंकर के साथ हमेशा से ही रहा है। झूठे दस्तावेज़ 107. ताज के गुम्बज की देखरेख करने वाले मुसलमानों के पास एक दस्तावेज़ है जिसे के वे "तारीख-ए-ताजमहल" कहते हैं। इतिहासकार एच.जी. कीन ने उस पर 'वास्तविक न होने की शंका वाला दस्तावेज़' का मुहर लगा दिया है। कीन का कथन एक रहस्यमय सत्य है क्योंकि हम जानते हैं कि जब शाहज़हां ने ताजमहल को नहीं बनवाया ही नहीं तो किसी भी दस्तावेज़ को जो कि ताजमहल को बनाने का श्रेय शाहज़हां को देता है झूठा ही माना जायेगा। 108. पेशेवर इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता तथा भवनशास्त्रियों के दिमाग में ताज से जुड़े बहुत सारे कुतर्क और चतुराई से भरे झूठे तर्क या कम से कम भ्रामक विचार भरे हैं। शुरू से ही उनका विश्वास रहा है कि ताज पूरी तरह से मुस्लिम भवन है। उन्हें यह बताने पर कि ताज का कमलाकार होना, चार स्तंभों का होना आदि हिंदू लक्षण हैं, वे गुणवान लोग इस प्रकार से अपना पक्ष रखते हैं कि ताज को बनाने वाले कारीगर, कर्मचारी आदि हिंदू थे और शायद इसीलिये उन्होंने हिंदू शैली से उसे बनाया। पर उनका पक्ष गलत है क्योंकि मुस्लिम वृतान्त दावा करता है कि ताज के रूपांकक (designers) बनवाने वाले शासक मुस्लिम थे, और कारीगर, कर्मचारी इत्यादि लोग मुस्लिम तानाशाही के विरुद्ध अपनी मनमानी कर ही नहीं सकते थे। इस्‍लाम का मुख्‍य काम भारत को लूटना मात्र था, उन्‍होने तत्‍कालीन मन्दिरो अपना निशाना बनया। हिन्‍दू मंदिर उस समय अपने ऐश्वर्य के चरम पर रहे थे। इसी प्रकार आज का ताजमहल नाम से विख्‍यात तेजोमहाजय को भी अपना निशाना बनाया। मुस्लिम शासकों ने देश के हिंदू भवनों को मुस्लिम रूप देकर उन्हें बनवाने का श्रेय स्वयं ले लिया इस बात का ताज एक आदर्श उदारहरण है।

ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है {भाग 1}


January 7, 2012 at 12:58am ·
    श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक "Tajmahal is a Hindu Temple Palace" में 100 से भी अधिक प्रमाण और तर्को का हवाला देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक साहब को उस इतिहास कार के रूप मे जाना जाता है तो भारत के विकृत इतिहास को पुर्नोत्‍थान और सही दिशा में ले जाने का किया है। मुगलो और अग्रेजो के समय मे जिस प्रकार भारत के इतिहास के साथ जिस प्रकार छेड़छाड की गई और आज वर्तमान तक मे की जा रही है, उसका विरोध और सही प्रस्तुतिकारण करने वाले प्रमुख इतिहासकारो में पुरूषोत्तम नाथ ओक साहब का नाम लिया जाता है। ओक साहब ने ताजमहल की भूमिका, इतिहास और पृष्‍ठभूमि से लेकर सभी का अध्‍ययन किया और छायाचित्रों छाया चित्रो के द्वारा उसे प्रमाणित करने का सार्थक प्रयास किया। श्री ओक के इन तथ्‍यो पर आ सरकार और प्रमुख विश्वविद्यालय आदि मौन जबकि इस विषय पर शोध किया जाना चाहिये और सही इतिहास से हमे अवगत करना चाहिये। किन्‍तु दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। आज भी हम जैसे विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है, क्‍योकि जिस इतिहास से हम सबक सीखने की बात कहते है यदि वह ही गलत हो, इससे बड़ा राष्‍ट्रीय शर्म और क्‍या हो सकता है ? श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण इस प्रकार हैं - सर्व प्रथम ताजमहन के नाम के सम्‍बन्‍ध में ओक साहब ने कहा कि नाम - (क्रम संख्‍या 1 से 8 तक) 1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है। 2. शब्द ताजमहल के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द है ही नहीं, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो। 3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है - पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक औरत के नाम से "मुम" को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता। 4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)। 5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग किया है। 6. मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल। इस प्रकार से समझने से यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़, एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों या मंदिरों में दफ़नाया गया है। 7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं है। 8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत है। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं। फिर उन्‍होने इसको मंदिर कहे जाने की बातो को तर्कसंगत तरीके से बताया है (क्रम संख्‍या 9 से 17 तक) 9. ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे। 10. संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता। 11. देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज़ के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। 12. संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। 13. ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मूर्तियों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा हुआ और संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले गुप्त कक्षों, जिन्हें कि बंद (seal) कर दिया गया है, के भीतर देखा है। 14. भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा किया, उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गई। 15. वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 'तेज-लिंग' का वर्णन आता है।ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था। 16. आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है, एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है। यहां के धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने में। पिछले कुछ सदियों से यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन उपलब्ध हो पा रही है। वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे। 17. आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे। अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था। ओक साहब ने भारतीय प्रामाणिक दस्तावेजो द्वारा इसे मकबरा मानने से इंकार कर दिया है ( क्रम संख्‍या18 से 24 तक) 18. बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था। 19. ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है। पहली बात तो यह है कि शिलालेख उचित व अधिकारिक स्थान पर नहीं है। दूसरी यह कि महिला का नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था न कि मुमताज़ महल। तीसरी, इमारत के 22 वर्ष में बनने की बात सारे मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख कर टॉवेर्नियर नामक एक फ्रांसीसी अभ्यागत के अविश्वसनीय रुक्के से येन केन प्रकारेण ले लिया गया है जो कि एक बेतुकी बात है। 20. शाहजादा औरंगज़ेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृतान्तों में दर्ज किया गया है, जिनके नाम 'आदाब-ए-आलमगिरी', 'यादगारनामा' और 'मुरुक्का-ए-अकब़राबादी' (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगज़ेब ने खुद लिखा है कि मुमताज़ के सातमंजिला लोकप्रिय दफ़न स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगज़ेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये फरमान जारी किया और बादशाह से सिफ़ारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाये। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहज़हाँ के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी। 21. जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को जारी किये गये शाहज़हां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फ़रमानों (नये क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिये घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया। 22. राजस्थान प्रदेश के बीकानेर स्थित लेखागार में शाहज़हां के द्वारा (मुमताज़ के मकबरे तथा कुरान की आयतें खुदवाने के लिये) मरकाना के खदानों से संगमरमर पत्थर और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने बाबत जयपुर के शासक जयसिंह को जारी किये गये तीन फ़रमान संरक्षित हैं। स्पष्टतः शाहज़हां के ताजमहल पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लेने के कारण जयसिंह इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहज़हां के फरमान को नकारते हुये संगमरमर पत्थर तथा (मुमताज़ के मकब़रे के ढोंग पर कुरान की आयतें खोदने का अपवित्र काम करने के लिये) शिल्पी देने के लिये इंकार कर दिया। जयसिंह ने शाहज़हां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा। और इसीलिये पत्थर देने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सुरक्षित स्थानों में छुपा दिया। 23. शाहज़हां ने पत्थर और शिल्पियों की मांग वाले ये तीनों फ़रमान मुमताज़ की मौत के बाद के दो वर्षों में जारी किया था। यदि सचमुच में शाहज़हां ने ताजमहल को 22 साल की अवधि में बनवाया होता तो पत्थरों और शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की मृत्यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती। 24. और फिर किसी भी ऐतिहासिक वृतान्त में ताजमहल, मुमताज़ तथा दफ़न का कहीं भी जिक्र नहीं है। न ही पत्थरों के परिमाण और दाम का कहीं जिक्र है। इससे सिद्ध होता है कि पहले से ही निर्मित भवन को कपट रूप देने के लिये केवल थोड़े से पत्थरों की जरूरत थी। जयसिंह के सहयोग के अभाव में शाहज़हां संगमरमर पत्थर वाले विशाल ताजमहल बनवाने की उम्मीद ही नहीं कर सकता था। विदेशी और यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख द्वारा मत स्‍पष्‍ट करना ( क्रम संख्‍या 25 से 29 तक) 25. टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान', जहाँ पर विदेशी लोग आया करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया था ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। वह आगे और भी लिखता है कि केवल चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने से अधिक खर्च हुआ था। शाहज़हां ने केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में स्थित शिवलिंगों तथा अन्य देवी देवता की मूर्तियों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र का रूप देने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये ही खर्च किया था। मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने और मकब़रे का कपट रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे। 26. एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं। 27. डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है कि मानसिंह का भवन, जो कि आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है, शाहज़हां के समय से भी पहले का एक उत्कृष्ट भवन है। शाहज़हां के दरबार का लेखाजोखा रखने वाली पुस्तक, बादशाहनामा में किस मुमताज़ को उसी मानसिंह के भवन में दफ़नाना दर्ज है। 28. बेर्नियर नामक एक समकालीन फ्रांसीसी अभ्यागत ने टिप्पणी की है कि गैर मुस्लिम लोगों का (जब मानसिंह के भवन को शाहज़हां ने हथिया लिया था उस समय) चकाचौंध करने वाली प्रकाश वाले तहखानों के भीतर प्रवेश वर्जित था। उन्होंने चांदी के दरवाजों, सोने के खंभों, रत्नजटित जालियों और शिवलिंग के ऊपर लटकने वाली मोती के लड़ियों को स्पष्टतः संदर्भित किया है। 29. जॉन अल्बर्ट मान्डेल्सो ने (अपनी पुस्तक `Voyages and Travels to West-Indies' जो कि John Starkey and John Basset, London के द्वारा प्रकाशित की गई है) में सन् 1638 में (मुमताज़ के मौत के केवल 7 साल बाद) आगरा के जन-जीवन का विस्तृत वर्णन किया है परंतु उसमें ताजमहल के निर्माण के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि सामान्यतः दृढ़तापूर्वक यह कहा या माना जाता है कि सन् 1631 से 1653 तक ताज का निर्माण होता रहा है। संस्कृत शिलालेख द्वारा क्रम संख्‍या 30 द्वारा 30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता है। इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है (वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में संरक्षित है) में संदर्भित है, "एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।" शाहज़हां के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया। इस शिलालेख को 'बटेश्वर शिलालेख' नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर में पाया गया था। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम 'तेजोमहालय शिलालेख' होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था। शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports (1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा है, great square black balistic pillar which, with the base and capital of another pillar....now in the grounds of Agra,...it is well known, once stood in the garden of Tajmahal". थॉमस ट्विनिंग की अनुपस्थित गजप्रतिमा के सम्‍बन्‍ध में कथन (क्रम संख्‍या 31) 31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस ट्विनिंग नामक एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक "Travels in India A Hundred Years ago" के पृष्ठ 191 में) लिखता है, "सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ से मैंने पालकी ली और..... बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि गजद्वार ('COURT OF ELEPHANTS') कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।" कुरान की आयतों के पैबन्द (क्रम संख्‍या 32 व 33 द्वारा) 32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है। यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता। 33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है। कुरान के उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है। वैज्ञानिक पद्धति कार्बन 14 द्वारा जाँच 34. ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था। बनावट तथा वास्तुशास्त्रीय तथ्य द्वारा जॉच (क्रम संख्‍या 35 से 39 तक) 35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू मंदिरों जैसा भवन है। हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा मंदिर का ground plan ताज के समान है। 36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है। 37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था। ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण का भी करती थीं। हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं। 38. ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है। स्तम्भों के नींव तथा बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं। हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की सत्ता है। 39. ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं। ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक पैदा कर दिया था। जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर ताजमहल के अधिग्रहण के बाद 'अल्लाह' शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में 'अल्लाह' शब्द कहीं भी नहीं है। अन्‍य असंगतियाँ (क्रमांक 40 से 48 तक) 40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे। 41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है। 42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। 43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जा सकता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है। 44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं। ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये प्रेरित किया था। 45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की लड़ियों को देखने का जिक्र किया है। यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता। ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं। ये इस बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले स्थान पर कपट रूप से बनाया गया। 46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये। 47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका दिया है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था। 48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया जाने लगा। ताजमहल में खजाने वाला कुआँ 49. तथाकथित मस्ज़िद और नक्कारखाने के बीच एक अष्टकोणीय कुआँ है जिसमें पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह हिंदू मंदिरों का परंपरागत खजाने वाला कुआँ है। खजाने के संदूक नीचे की मंजिलों में रखे जाते थे जबकि खजाने के कर्मचारियों के कार्यालय ऊपरी मंजिलों में हुआ करता था। सीढ़ियों के वृतीय संरचना के कारण घुसपैठिये या आक्रमणकारी न तो आसानी के साथ खजाने तक पहुँच सकते थे और न ही एक बार अंदर आने के बाद आसानी के साथ भाग सकते थे, और वे पहचान लिये जाते थे। यदि कभी घेरा डाले हुये शक्तिशाली शत्रु के सामने समर्पण की स्थिति आ भी जाती थी तो खजाने के संदूकों को पानी में धकेल दिया जाता था जिससे कि वह पुनर्विजय तक सुरक्षित रूप से छुपा रहे। एक मकब़रे में इतना परिश्रम करके बहुमंजिला कुआँ बनाना बेमानी है। इतना विशाल दीर्घाकार कुआँ किसी कब्र के लिये अनावश्यक भी है। मुमताज के दफ़न की तारीख अविदित होना (क्रमांक 50 से 51 तक) 50. यदि शाहज़हां ने सचमुच ही ताजमहल जैसा आश्चर्यजनक मकब़रा होता तो उसके तामझाम का विवरण और मुमताज़ के दफ़न की तारीख इतिहास में अवश्य ही दर्ज हुई होती। परंतु दफ़न की तारीख कभी भी दर्ज नहीं की गई। इतिहास में इस तरह का ब्यौरा न होना ही ताजमहल की झूठी कहानी का पोल खोल देती है। 51. यहाँ तक कि मुमताज़ की मृत्यु किस वर्ष हुई यह भी अज्ञात है। विभिन्न लोगों ने सन् 1629,1630, 1631 या 1632 में मुमताज़ की मौत होने का अनुमान लगाया है। यदि मुमताज़ का इतना उत्कृष्ट दफ़न हुआ होता, जितना कि दावा किया जाता है, तो उसके मौत की तारीख अनुमान का विषय कदापि न होता। 5000 औरतों वाली हरम में किस औरत की मौत कब हुई इसका हिसाब रखना एक कठिन कार्य है। स्पष्टतः मुमताज़ की मौत की तारीख़ महत्वहीन थी इसीलिये उस पर ध्यान नहीं दिया गया। फिर उसके दफ़न के लिये ताज किसने बनवाया? आधारहीन प्रेमकथाएँ 52. शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल हैं। न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार है न ही उनके कल्पित प्रेम प्रसंग पर कोई पुस्तक ही लिखी गई है। ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण के बाद उसके आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया। कीमत 53. शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को बनवाया ही नहीं। इसी कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक होने का काल्पनिक अनुमान लगाया जाता है। निर्माणकाल 54. इसी प्रकार से ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान लगाया जाता है। यदि शाहज़हां ने ताजमहल को बनवाया होता तो उसके निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि उसकी प्रविष्टि शाही दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती। भवननिर्माणशास्त्री 55. ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो कि एक तुर्क था, अहमद़ मेंहदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि एक इटालियन था, या शाहज़हां स्वयं। नदारद दस्तावेज़ क्रमांक 56 से 61 56. ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20 हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया। यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा (design drawings), मजदूरों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls), दैनिक खर्च (daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी के बिल और रसीद (bills and receipts of material ordered) आदि दस्तावेज़ शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते। वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी नहीं है। 57. अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे संसार को मानने के लिये मजबूर करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है। 58. शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और बेल का जिक्र आता है। ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में होता है। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों का विशेष प्रयोग होता है। किसी कब्रगाह में केवल छायादार वृक्ष लगाये जाते हैं क्योंकि श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती। ताज के वाटिकाओं में बेल तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था। 59. हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है। 60. मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित करना चाहिये। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज़ का बताया जाता है, यह मोहम्मद पैगम्बर के निर्देश के निन्दनीय अवहेलना है। वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे। शिव मंदिर में, एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में, दो शिव लिंग स्थापित करने का हिंदुओं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर, जो कि अहिल्याबाई के द्वारा बनवाये गये हैं, में देखा जा सकता है। 61. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंदू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। क्रमश:{अगले भाग के लिये यहाँhttps://www.facebook.com/note.php?note_id=339927239350673 क्लिक करेँ }

Monday, 26 March 2012

घाटी के दिल की धड़कन ...............हरिओम पंवार जी द्वारा



काश्मीर जो खुद सूरज के बेटे की रजधानी था
डमरू वाले शिव शंकर की जो घाटी कल्याणी था
काश्मीर जो इस धरती का स्वर्ग बताया जाता था
जिस मिट्टी को दुनिया भर में अर्ध्य चढ़ाया जाता था
काश्मीर जो भारतमाता की आँखों का तारा था
काश्मीर जो लालबहादुर को प्राणों से प्यारा था
काश्मीर वो डूब गया है अंधी-गहरी खाई में
फूलों की खुशबू रोती है मरघट की तन्हाई में

ये अग्नीगंधा मौसम की बेला है
गंधों के घर बंदूकों का मेला है
मैं भारत की जनता का संबोधन हूँ
आँसू के अधिकारों का उदबोधन हूँ
मैं अभिधा की परम्परा का चारण हूँ
आजादी की पीड़ा का उच्चारण हूँ

इसीलिए दरबारों को दर्पण दिखलाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

बस नारों में गाते रहियेगा कश्मीर हमारा है
छू कर तो देखो हिम छोटी के नीचे अंगारा है
दिल्ली अपना चेहरा देखे धूल हटाकर दर्पण की
दरबारों की तस्वीरें भी हैं बेशर्म समर्पण की

काश्मीर है जहाँ तमंचे हैं केसर की क्यारी में
काश्मीर है जहाँ रुदन है बच्चों की किलकारी में
काश्मीर है जहाँ तिरंगे झण्डे फाड़े जाते हैं
सैंतालिस के बंटवारे के घाव उघाड़े जाते हैं
काश्मीर है जहाँ हौसलों के दिल तोड़े जाते हैं
खुदगर्जी में जेलों से हत्यारे छोड़े जाते हैं

अपहरणों की रोज कहानी होती है
धरती मैया पानी-पानी होती है
झेलम की लहरें भी आँसू लगती हैं
गजलों की बहरें भी आँसू लगती हैं

मैं आँखों के पानी को अंगार बनाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

काश्मीर है जहाँ गर्द में चन्दा-सूरज- तारें हैं
झरनों का पानी रक्तिम है झीलों में अंगारे हैं
काश्मीर है जहाँ फिजाएँ घायल दिखती रहती हैं
जहाँ राशिफल घाटी का संगीने लिखती रहती हैं
काश्मीर है जहाँ विदेशी समीकरण गहराते हैं
गैरों के झण्डे भारत की धरती पर लहरातें हैं

काश्मीर है जहाँ देश के दिल की धड़कन रोती है
संविधान की जहाँ तीन सौ सत्तर अड़चन होती है
काश्मीर है जहाँ दरिंदों की मनमानी चलती है
घर-घर में ए. के. छप्पन की राम कहानी चलती है
काश्मीर है जहाँ हमारा राष्ट्रगान शर्मिंदा है
भारत माँ को गाली देकर भी खलनायक जिन्दा है
काश्मीर है जहाँ देश का शीश झुकाया जाता है
मस्जिद में गद्दारों को खाना भिजवाया जाता है

गूंगा-बहरापन ओढ़े सिंहासन है
लूले - लंगड़े संकल्पों का शासन है
फूलों का आँगन लाशों की मंडी है
अनुशासन का पूरा दौर शिखंडी है

मै इस कोढ़ी कायरता की लाश उठाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

हम दो आँसू नहीं गिरा पाते अनहोनी घटना पर
पल दो पल चर्चा होती है बहुत बड़ी दुर्घटना पर
राजमहल को शर्म नहीं है घायल होती थाती पर
भारत मुर्दाबाद लिखा है श्रीनगर की छाती पर
मन करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर
भारत के बेटे निर्वासित हैं अपनी ही धरती पर

वे घाटी से खेल रहे हैं गैरों के बलबूते पर
जिनकी नाक टिकी रहती है पाकिस्तानी जूतों पर
काश्मीर को बँटवारे का धंधा बना रहे हैं वो
जुगनू को बैसाखी देकर चन्दा बना रहे हैं वो
फिर भी खून-सने हाथों को न्योता है दरबारों का
जैसे सूरज की किरणों पर कर्जा हो अँधियारों का

कुर्सी भूखी है नोटों के थैलों की
कुलवंती दासी हो गई रखैलों की
घाटी आँगन हो गई ख़ूनी खेलों की
आज जरुरत है सरदार पटेलों की

मैं घाटी के आँसू का संत्रास मिटाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

जब चौराहों पर हत्यारे महिमा-मंडित होते हों
भारत माँ की मर्यादा के मंदिर खंडित होते हों
जब क्रश भारत के नारे हों गुलमर्गा की गलियों में
शिमला-समझौता जलता हो बंदूकों की नालियों में

अब केवल आवश्यकता है हिम्मत की खुद्दारी की
दिल्ली केवल दो दिन की मोहलत दे दे तैय्यारी की
सेना को आदेश थमा दो घाटी ग़ैर नहीं होगी
जहाँ तिरंगा नहीं मिलेगा उनकी खैर नहीं होगी

जिनको भारत की धरती ना भाती हो
भारत के झंडों से बदबू आती हो
जिन लोगों ने माँ का आँचल फाड़ा हो
दूध भरे सीने में चाकू गाड़ा हो

मैं उनको चौराहों पर फाँसी चढ़वाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
चाँद-सितारे टांक लिये हैं खून लिपि दीवारों ने
इसीलियें नाकाम रही हैं कोशिश सभी उजालों की
क्योंकि ये सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की
अंतिम एक चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को
गीदड़ कायरता ना समझे सिंहो की ख़ामोशी को

हमको अपने खट्टे-मीठे बोल बदलना आता है
हमको अब भी दुनिया का भूगोल बदलना आता है
दुनिया के सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते
भारत की प्रभुसत्ता के वो ठेकेदार नहीं लगते
तीर अगर हम तनी कमानों वाले अपने छोड़ेंगे
जैसे ढाका तोड़ दिया लौहार-कराची तोड़ेंगे

आँख मिलाओ दुनिया के दादाओं से
क्या डरना अमरीका के आकाओं से
अपने भारत के बाजू बलवान करो
पाँच नहीं सौ एटम बम निर्माण करो

मै भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन निकला हूँ ||
इसे पूर्ण सामर्थ के साथ फैलाएं ....ताकि हर हिन्दू के मस्तिष्क पे चन्दन का तेज दिखाई दे !

हमारे धर्मं चन्दन के तिलक का बहुत महत्व बताया गया है आइये जानते इसके बैज्ञानिक कारण और इसे कैसे लगाया जाता है !!

भगवान को चंदन अर्पण

भगवान को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करे। अक्सर उत्तेजना में काम बिगड़ता है। चंदन लगाने से उत्तेजना काबू में आती है। चंदन का तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंदन का तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है। मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट विकार नहीं होता।

मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें ।

तिलक का महत्व

हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्द्ेश्य से भी लगाया जाता है ।

चन्दन लगाने के प्रकार

स्नान एवं धौत वस्त्र धारण करने के उपरान्त वैष्णव ललाट पर ऊर्ध्वपुण्ड्र, शैव त्रिपुण्ड, गाणपत्य रोली या सिन्दूर का तिलक शाक्त एवं जैन क्रमशः लाल और केसरिया बिन्दु लगाते हैं। धार्मिक तिलक स्वयं के द्वारा लगाया जाता है, जबकि सांस्कृतिक तिलक दूसरा लगाता है।

नारद पुराण में उल्लेख आया है-
१. ब्राह्मण को ऊर्ध्वपुण्ड्र,
२. क्षत्रिय को त्रिपुण्ड,
३. वैश्य को अर्धचन्द्र,
४. शुद्र को वर्तुलाकार चन्दन से ललाट को अंकित करना चाहिये।

योगी सन्यासी ऋषि साधकों तथा इस विषय से सम्बन्धित ग्रन्थों के अनुसार भृकुटि के मध्य भाग देदीप्यमान है।

१.ऊर्ध्वपुण्ड्र चन्दन - वैष्णव सम्प्रदायों का कलात्मक भाल तिलक ऊर्ध्वपुण्ड्र कहलाता है। चन्दन, गोपीचन्दन, हरिचन्दन या रोली से भृकुटि के मध्य में नासाग्र या नासामूल से ललाट पर केश पर्यन्त अंकित खड़ी दो रेखाएं ऊर्ध्वपुण्ड्र कही जाती हैं। |


वैष्णव ऊर्ध्वपुण्ड्र के विषय में पुराणों में दो प्रकार की मान्यताएं मिलती हैं।

नारद पुराण में - इसे विष्णु की गदा का द्योतक माना गया है.

ऊर्ध्वपुण्ड्रोपनिषद में - ऊर्ध्वपुण्ड्र को विष्णु के चरण पाद का प्रतीक बताकर विस्तार से इसकी व्याख्या की है। |

पुराणों में - ऊर्ध्वपुण्ड्र की दक्षिण रेखा को विष्णु अवतार राम या कृष्ण के "दक्षिण चरण तल" का प्रतिबिम्ब माना गया है, जिसमें वज्र, अंकुश, अंबर, कमल, यव, अष्टकोण, ध्वजा, चक्र, स्वास्तिक तथा ऊर्ध्वरेख है.

तथा ऊर्ध्वपुण्ड्र की बायीं केश पर्यन्त रेखा विष्णु का "बायाँ चरण तल" है जो गोपद, शंख, जम्बूफल, कलश, सुधाकुण्ड, अर्धचन्द्र, षटकोण, मीन, बिन्दु, त्रिकोण तथा इन्द्रधनुष के मंगलकारी चिन्हों से युक्त है।

इन मंगलकारी चिन्हों के धारण करने से वज्र से - बल तथा पाप संहार, अंकुश से - मनानिग्रह, अम्बर से - भय विनाश, कमल से - भक्ति, अष्टकोण से - अष्टसिद्धि, ध्वजा से - ऊर्ध्व गति, चक्र से - शत्रुदमन, स्वास्तिक से- कल्याण, ऊर्ध्वरेखा से - भवसागर तरण, पुरूष से - शक्ति और सात्त्विक गुणों की प्राप्ति, गोपद से - भक्ति, शंख से - विजय और बुद्धि से - पुरूषार्थ, त्रिकोण से - योग्य, अर्धचन्द्र से - शक्ति, इन्द्रधनुष से - मृत्यु भय निवारण होता है।

2. त्रिपुण्ड चन्दन - विष्णु उपासक वैष्णवों के समान ही शिव उपासक ललाट पर भस्म या केसर युक्त चन्दन द्वारा भौहों के मध्य भाग से लेकर जहाँ तक भौहों का अन्त है उतना बड़ा त्रिपुण्ड और ठीक नाक के ऊपर लाल रोली का बिन्दु या तिलक धारण करते हैं। मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से तीन रेखाएँ तथा बीच में रोली का अंगुष्ठ द्वारा प्रतिलोम भाव से की गई रेखा त्रिपुण्ड कहलाती है।

शिवपुराण में त्रिपुण्ड को योग और मोक्ष दायक बताया गया है। शिव साहित्य में त्रिपुण्ड की तीन रेखाओं के नौ-नौ के क्रम में सत्ताईस देवता बताए गये हैं। वैष्णव द्वादय तिलक के समान ही त्रिपुण्ड धारण करने के लिये बत्तीस या सोलह अथवा शरीर के आठ अंगों में लगाने का आदेश है तथा स्थानों एवं अवयवों के देवों का अलग-अलग विवेचन किया गया है। शैव ग्रन्थों में विधिवत त्रिपुण्ड धारण कर रूद्राक्ष से महामृत्युजंय का जप करने वाले साधक के दर्शन को साक्षात रूद्र के दर्शन का फल बताया गया है।

अप्रकाशिता उपनिषद के बहिवत्रयं तच्च जगत् त्रय, तच्च शक्तित्रर्य स्यात् द्वारा तीन अग्नि, तीन जगत और तीन शक्ति ज्ञान इच्छा और क्रिया का द्योतक बताकर कहा है कि जिसने त्रिपुण्ड धारण कर रखा है, उसे देवात् कोई देख ले तो वह सभी बाधाओं से विमुक्त हो जाता है। त्रिपुण्ड के बीच लाल तिलक या बिन्दु कारण तत्त्व बिन्दु माना जाता है। गणेश भक्त गाणपत्य अपनी भुजाओं पर गणेश के एक दाँत की तप्त मुद्रा दागते हैं तथा गणपति मुख की छाप लगाकर मस्तक पर लाल रोली या सिन्दूर का तिलक धारण कर गजवदन की उपासना करते हैं।

चन्दन के प्रकार

१. हरि चन्दन - पद्मपुराण के अनुसार तुलसी के काष्ठ को घिसकर उसमें कपूर, अररू या केसर के मिलाने से हरिचन्दन बनता है।

२. गोपीचन्दन- गोपीचन्दन द्वारका के पास स्थित गोपी सरोवर की रज है, जिसे वैष्णवों में परम पवित्र माना जाता है। स्कन्द पुराण में उल्लेख आया है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों की भक्ति से प्रभावित होकर द्वारका में गोपी सरोवर का निर्माण किया था, जिसमें स्नान करने से उनको सुन्दर का सदा सर्वदा के लिये स्नेह प्राप्त हुआ था। इसी भाव से अनुप्रेरित होकर वैष्णवों में गोपी चन्दन का ऊर्ध्वपुण्ड्र मस्तक पर लगाया जाता है।

इसी पुराण के पाताल खण्ड में कहा गया है कि गोपीचन्दन का तिलक धारण करने मात्र से ब्राह्मण से लेकर चांडाल तक पवित्र हो जाता है। जिसे वैष्णव सम्प्रदाय में गोपी चन्दन के समान पवित्र माना गया है.

स्कन्दपुराण में गोमती, गोकुल और गोपीचन्दन को पवित्र और दुर्लभ बताया गया है तथा कहा गया है कि जिसके घर में गोपीचन्दन की मृत्तिका विराजमान हैं, वहाँ श्रीकृष्ण सहित द्वारिकापुरी स्थित है।

सामान्य तिलक का आकार

धार्मिक तिलक के समान ही हमारे पारिवारिक या सामाजिक चर्या में तिलक इतना समाया हुआ है कि इसके अभाव में हमारा कोई भी मंगलमय कार्य हो ही नहीं सकता। इसका रूप या आकार दीपक की ज्याति, बाँस की पत्ती, कमल, कली, मछली या शंख के समान होना चाहिए। धर्म शास्त्र के ग्रन्थों के अनुसार इसका आकार दो से दस अंगुल तक हो सकता है। तिलक से पूर्व ‘श्री’ स्वरूपा बिन्दी लगानी चाहिये उसके पश्चात् अंगुठे से विलोम भाव से तिलक लगाने का विधान है। अंगुठा दो बार फेरा जाता है।

किस उँगली से लगाना चाहिये

ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार तिलक में "अंगुठे के प्रयोग से - शक्ति, मध्यमा के प्रयोग से - दीर्घायु, अनामिका के प्रयोग से- समृद्धि तथा तर्जनी से लगाने पर - मुक्ति प्राप्त होती है" तिलक विज्ञान विषयक समस्त ग्रन्थ तिलक अंकन में नाखून स्पर्श तथा लगे तिलक को पौंछना अनिष्टकारी बतलाते हैं।

देवताओं पर केवल अनामिका से तिलक बिन्दु लगाया जाता है। तिलक की विधि सांस्कृतिक सौन्दर्य सहित जीवन की मंगल दृष्टि को मनुष्य के सर्वाधिक मूल्यवान् तथा ज्ञान विज्ञान के प्रमुख केन्द्र मस्तक पर अंकित करती है।

तिलक के मध्य में चावल

तिलक के मध्य में चावल लगाये जाते हैं। तिलक के चावल शिव के परिचायक हैं। शिव कल्याण के देवता हैं जिनका वर्ण शुक्ल है। लाल तिलक पर सफेद चावल धारण कर हम जीवन में शिव व शक्ति के साम्य का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। इच्छा और क्रिया के साथ ज्ञान का समावेश हो। सफेद गोपी चन्दन तथा लाल बिन्दु इसी सत्य के साम्य का सूचक है। शव के मस्तक पर रोली तिलक के मध्य चावल नहीं लगाते, क्योंकि शव में शिव तत्त्व तिरोहित है। वहाँ शिव शक्ति साम्य की मंगल कामना का कोई अर्थ ही नहीं है।

Saturday, 24 March 2012

                                 जय माता दी 
                         सरदार वल्लभभाई  पटेल कृषि एवं प्रोधोगिकी विश्वविधालय मेरठ - २५०११०
 नवरात्री के शुभ अवसर पर विश्वविधालय के शिव-दुर्गा मंदिर में दिनांक २३/०३/२०१२ से ०१/०४ /२०१२ तक पूजन का आयोजन हो रहा है!
    समस्त छात्र - छात्राओ से आग्रह  है की दुर्गा पूजन में तन-मन-धन  से योगदान  करने की कृपा करे! जिस से दुर्गा पूजन को सफल बनाया जा सके!

                                                                     कार्यक्रम
१. आरती का समय प्रात: ०७:०० , शाम ०६:१५ !
२. दुर्गा जागरण दिनांक ३०/०३/२०१२, समय दोपहर ०४:०० से रात्रि ०८:०० तक!
३. हवन एवं प्रसाद वितरण ०१/०४/२०१२ को संपन्न होगा!

निवेदक:                              मंदिर पुजारी:                                        व्यस्थापक:
अंकित गंगवार,                   पंडित विक्रम प्रसाद भट्ट                      अंकित कटियार,
अमित पाल,                                                                                    राजकुमार पाल,
नैमिष गुप्ता,                                                                                    दिनेश कुमार,
सुमित  कुमार !                                                                               अमित यादव!

नोट:  जो छात्र - छात्राये भजन कीर्तन गाना चाहते हैं वो संपर्क करे- पंडित विक्रम प्रसाद भट्ट!

Friday, 23 March 2012

कुर्मी नाम संस्कृत शब्द कृषि 'खेती' है.तथा संधि विच्छेद करे तो कु + उर्मी , कु अर्थात भूमि उर्मी मतलब उपजाऊ बनाने वाला यानि भूमि को उपजाऊ बनाने वाला कुर्मी एक और बात विष्णु का अवतार - कुर्मी कछुआ (कुर्म ) कुर्मी देवताओं राम और इंद्र, क्षत्रिय का स्थापित प्रतीक (जाति पदानुक्रम में दूसरे स्तर) के लिए संबंधित हैं यानि कुर्म क्षत्रिय और इस तरह हमे एक उच्च जाति मूल का दावा करने का प्रयास करना चाहिए .

कुर्मी 1500 से अधिक उप जातियों में विभाजित हैं. अधिक तर्कसंगत दृश्य है कि कुर्मी के ग्यारह मुख्य डिवीजन है और ये अंतर्विवाही हैं,यानी वे अपने विभाजन के बाहर शादी नहीं करते. हम सब को एक साथ करने कि सोचते है सचान सचान से तथा कटियार कटियार से वर्मा वर्मा से एक नहीं हो पता तो हम कल्पना मात्र कर सकते है कि १५०० उप जातियों को एक मंच पर ला सकेंगे |

Thursday, 22 March 2012

आज तिरंगा रॊता है.......
_______________ _______________ _________
रक्षक ही भक्षक बन कर,जब हाँथ लहू सॆ धॊता है !!
भारत माँ की हालत पर, अब राष्ट्र -तिरंगा रॊता है !!

... कॆशर की कॊमल कलियाँ, झुलस रहीं हैं शॊलॊं सॆ,
हिम-गिरि भी काँप रहा है,आतंकवाद कॆ गॊलॊं सॆ,
बातॆं कश्मीर विभाजन की,कहीं नीर विभाजन हॊता है !!१!!
भारत माँ की हालत पर, अब............. ............

नाँग अनॆकॊं खादी पहनॆं,कुर्सी ऊपर मटक रहॆ हैं,
भगतसिंह कॆ नारॆ दॆखॊ,सूली ऊपर लटक रहॆ हैं,
प्रजातंत्र कॆ आँगन मॆं ही, जब प्रलय प्रजा पर हॊता है !!२!!
भारत माँ की हालत पर, अब............. ............... ....

गंगा यमुना का पावन जल,दॆखॊ लहू-लुहान हुआ,
उन अमर शहीदॊं का, व्यर्थ यहाँ बलिदान हुआ,
मज़दूर भूख सॆ तड़प रहा, और मंत्री कुर्सी पर सॊता है !!३!!
भारत माँ की हालत पर, अब............. ............... ....

एक दहॆज़ की डॊली, घर दौलत सॆ भर दॆती है,
एक दहॆज़ बिन घुट-घुट,आत्म-दा ह कर लॆती है,
सात रंग कॆ स्वप्न सजायॆ, यह कपटी मानव सॊता है !!४!!
भारत माँ की हालत पर, अब............. ............... ....

बसंती चूनर गानॆं वालॊ, गुमनाम यहाँ हॊ जाऒगॆ,
"राज़"अगर फिर आयॆ तॊ,बदनाम यहाँ हॊ जाऒगॆ,
इस कुर्सी की नीलामी मॆं जानॆ, आगॆ क्या-क्या हॊता है !!५!!
भारत माँ की हालत पर, अब............. ............... ....

"कवि-राजबुंदॆली

संकलन कर्ता
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
(समाज सेवक)
ब्लॉग का पता : http://prabhatbhardwaj.blogspot.in/

Wednesday, 21 March 2012

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम

अयोध्या नगरी में तुम जन्मे , दशरथ पुत्र कहाये,
विश्वामित्र थे गुरु तुम्हारे, कौशल्या के जाये,
ऋषि मुनियों की रक्षा करके तुमने किया है नाम
तुलसी जैसे भक्त तुम्हारे, बांटें जग में ज्ञान
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम

सुग्रीव-विभीषण मित्र तुम्हारे, केवट- शबरी साधक,
भ्राता लक्ष्मण संग तुम्हारे, राक्षस सारे बाधक,
बालि-रावण को संहारा, सौंपा अदभुद धाम
जटायु सा भक्त आपका आया रण में काम
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम

शिव जी ठहरे तेरे साधक, हनुमत भक्त कहाते,
जिन पर कृपा तुम्हारी होती वो तेरे हो जाते,
सबको अपनी शरण में ले लो, दे दो अपना धाम
जग में हम सब चाहें तुझसे, भक्ति का वरदान
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम

मोक्ष-वोक्ष कुछ मैं ना माँगूं , कर्मयोग तुम देना,
जब भी जग में मैं गिर जाऊँ मुझको अपना लेना,
कृष्ण और साईं रूप तुम्हारे, करते जग कल्याण
कैसे करुँ वंदना तेरी , दे दो मुझको ज्ञान
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम

जो भी चलता राह तुम्हारी, जग उसका हो जाता,
लव-कुश जैसे पुत्र वो पाए, भरत से मिलते भ्राता,
उसके दिल में तुम बस जाना जो ले-ले तेरा नाम
भक्ति सहित अम्बरीष ये सौंपे तुझको अपना प्रणाम
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.

Saturday, 17 March 2012

पुरे देश को Colgate, Closeup, Pepsodent के नाम पर ज़हर बेचा जा रहा है। लेकिन देश की भ्रष्ट सरकार और बिका हुआ मीडिया अपने मुँह में फेवीकोल डाल कर बैठे हैं।

http://indiatoday.intoday.in/story/toothpastes-contain-cancer-causing-nicotine-study/1/150836.html

इनको सिर्फ़ दूध, घी, मावा आदि में ही जहर नजर आता हैं, वो भी दिवाली के दिनो में ताकि विदेशी कंपनियो का माल (कैडबरी) बिके। लेकिन ये अमेरिकन कंपनिया पिछले 40 साल से देश के लोगो को ज़हर बेच रही हैं। वो सरकार और मीडिया को दिखाई नहीं देता।

लेकिन हमारा आपका और सच्चे देश भक्त का ये फ़र्ज बनता हैं। इस सच को देश की आम जनता तक पहुँचाये और एक खास ख़बर।

क्या आप जानते है ?? 11 सितम्बर 2011 को (DIPRAS) Delhi Institute of Pharmaceutical Science and Research में बड़ी-बड़ी कंपनियों के Toothpastes को चेक किया गया। जिसमें Nicotine पाया मिला है और 1 ग्राम Toothpaste में 8 सिगरेट जितना Nicotine पाया गया है। मतलब सुबह उठते आपने 1 ग्राम Toothpaste अपने मुँह में घुमाया तो 8 सिगरेट जितना Nicotine आपके अंदर और एक खास बात इन विदेशी Toothpastes में (Fluoride) 1000 PPM से ज्यादा पाया जाता है और पुरी दुनिया के Dentist इस बात से सहमत है कोई भी Toothpaste जिसमें (Fluoride) होता और 1000 PPM से ज्यादा होता है वो Toothpaste फ़िर Toothpaste नहीं रहता जहर हो जाता है।

इसलिए आप लोग इस विदेशी कंपनी का मंजन न इस्तेमाल करें और इसे भारत से भगाएँ। इसके स्थान पर आप विको बज्रदंती, डाबर, नीम, एंकर, मिसवाक, बबूल, प्रॉमिस, सहारा, दंतकान्ति, लाल दंत मंजन, बैद्यनाथ, अजंता आदि इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे आपका स्वास्थ्य पर भी की प्रभाव नहीं पड़ेगा और स्वदेशी को भी बढ़ावा मिलेगा।

"अब इसमें तो कोई टेक्नालजी नहीं है इसे तो भारत का ही इस्तेमाल कर सकते हैं और विदेशी लूट से देश को बचा सकते हैं।"

आप इस लिस्ट को देख सकते हैं :
http://swadeshi.shreshthbharat.in/download/list/otc/otc.pdf

अधिक जानकारी::
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=328062740557042&set=a.222302067799777.69335.222235904473060&type=3

जय हिन्द, जय भारत !!
स्वदेशी, स्वावलंबी, स्वाभिमानी भारत !!
कृपया इसे एक बार अंत तक अवश्य पड़ें ! और शेयर करें ताकि यह अमूल्य जानकारी सब पहुंचे ! और सबको समझ आ जाए की हिन्दू धर्मं क्या है !!

इस कलिकाल में 'श्रीमद्भागवत पुराण' हिन्दू समाज का सर्वाधिक आदरणीय पुराण है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में वेदों, उपनिषदों तथा दर्शन शास्त्र के गूढ़ एवं रहस्यमय विषयों को अत्यन्त सरलता के साथ निरूपित किया गया है। इसे भारतीय धर्म और संस्कृति का विश्वकोश कहना अधिक समीचीन होगा। सैकड़ों वर्षों से यह पुराण हिन्दू समाज की धार्मिक, सामाजिक और लौकिक मर्यादाओं की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता आ रहा हैं।

इस पुराण में सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, द्वैताद्वैत, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त रहस्यों का समन्वय उपलब्ध होता है। 'श्रीमद्भागवत पुराण' वर्णन की विशदता और उदात्त काव्य-रमणीयता से ओतप्रोत है। यह विद्या का अक्षय भण्डार है।

*************सृष्टि-उत्पत्ति***************

सृष्टि-उत्पत्ति के सन्दर्भ में इस पुराण में कहा गया है- एकोऽहम्बहुस्यामि। अर्थात् एक से बहुत होने की इच्छा के फलस्वरूप भगवान स्वयं अपनी माया से अपने स्वरूप में काल, कर्म और स्वभाव को स्वीकार कर लेते हैं। तब काल से तीनों गुणों- सत्व, रज और तम में क्षोभ उत्पन्न होता है तथा स्वभाव उस क्षोभ को रूपान्तरित कर देता है। तब कर्म गुणों के महत्त्व को जन्म देता है जो क्रमश: अहंकार, आकाश, वायु तेज, जल, पृथ्वी, मन, इन्द्रियाँ और सत्व में परिवर्तित हो जाते हैं। इन सभी के परस्पर मिलने से व्यष्टि-समष्टि रूप पिंड और ब्रह्माण्ड की रचना होती है। यह ब्रह्माण्ड रूपी अण्डां एक हज़ार वर्ष तक ऐसे ही पड़ा रहा। फिर भगवान ने उसमें से सहस्त्र मुख और अंगों वाले विराट पुरुष को प्रकट किया। उस विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए।

विराट पुरुष रूपी नर से उत्पन्न होने के कारण जल को 'नार' कहा गया। यह नार ही बाद में 'नारायण' कहलाया। कुल दस प्रकार की सृष्टियाँ बताई गई हैं। महत्तत्व, अहंकार, तन्मात्र, इन्दियाँ, इन्द्रियों के अधिष्ठाता देव 'मन' और अविद्या- ये छह प्राकृत सृष्टियाँ हैं। इनके अलावा चार विकृत सृष्टियाँ हैं, जिनमें स्थावर वृक्ष, पशु-पक्षी, मनुष्य और देव आते हैं।

**************काल गणना***************

'श्रीमद्भागवत पुराण' में काल गणना भी अत्यधिक सूक्ष्म रूप से की गई है। वस्तु के सूक्ष्मतम स्वरूप को 'परमाणु' कहते हैं। दो परमाणुओं से एक 'अणु' और तीन अणुओं से मिलकर एक 'त्रसरेणु' बनता है। तीन त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य किरणों को जितना समय लगता है, उसे 'त्रुटि' कहते हैं। त्रुटि का सौ गुना 'कालवेध' होता है और तीन कालवेध का एक 'लव' होता है। तीन लव का एक 'निमेष', तीन निमेष का एक 'क्षण' तथा पाँच क्षणों का एक 'काष्टा' होता है। पन्द्रह काष्टा का एक 'लघु', पन्द्रह लघुओं की एक 'नाड़िका' अथवा 'दण्ड' तथा दो नाड़िका या दण्डों का एक 'मुहूर्त' होता है। छह मुहूर्त का एक 'प्रहर' अथवा 'याम' होता है।

युग वर्ष
सत युग चार हज़ार आठ सौ
त्रेता युग तीन हज़ार छह सौ
द्वापर युग दो हज़ार चार सौ
कलि युग एक हज़ार दो सौ

प्रत्येक मनु 7,16,114 चतुर्युगों तक अधिकारी रहता है। ब्रह्मा के एक 'कल्प' में चौदह मनु होते हैं। यह ब्रह्मा की प्रतिदिन की सृष्टि है। सोलह विकारों (प्रकृति, महत्तत्व, अहंकार, पाँच तन्मात्रांए, दो प्रकार की इन्द्रियाँ, मन और पंचभूत) से बना यह ब्रह्माण्डकोश भीतर से पचास करोड़ योजन विस्तार वाला है। उसके ऊपर दस-दस आवरण हैं। ऐसी करोड़ों ब्रह्माण्ड राशियाँ, जिस ब्रह्माण्ड में परमाणु रूप में दिखाई देती हैं, वही परमात्मा का परमधाम है। इस प्रकार पुराणकार ने ईश्वर की महत्ता, काल की महानता और उसकी तुलना में चराचर पदार्थ अथवा जीव की अत्यल्पता का विशद् विवेचन प्रस्तुत किया है।
सचिन के सतक बनाने पे बयान।
1. सचिन आर. एस. एस. के एजेन्ट हे
क्योंकि मुस्लिम देश के खिलाफ सतक बनाया -
पिग्विजय सिंह.
2. मैं सचिन को सतक की बधाई देता हूँ और
सोनिया जी की नेतृत्व की तारीफ़ करता हूँ-
मनमोहन सिंह
3. सचिन के सतक का श्रेय
मेरी दादी को जाना चाहिए. क्योंकि उन्होंने
ही बांग्ला देश बनाया था - राहुल गाँधी।
4. सचिन ने सतक बना के ये साबित कर
दिया की वो मराठी हे - राज ठाकरे
5. सचिन को लोकपाल बना देना चाहिए- टीम
अन्ना
6. गुप्त बिमारी के कारण सोनिया जी ने
मीडिया से बात नहीं करी..
7. सचिन चाहे जितने रन बनाये पर उतने रन
कभी नही बना सकता जितना भारत
का काला धन विदेशों मे जमा है । --
बाबा रामदेव जी
8. आज बान्ग्ला देश ने भारत का कर्ज अदा कर
दिया इसलिये बान्ग्लादेशियों को अब भारत मे
बे रोक - टोक बसने देना चाहिये । --
स्वामी अग्नीवेश
9. अब हमे पूरी उम्मीद है की सचिन 2015 तक
150 शतक जरूर बना लेंगें । -- भरतीय टीम के
चयनकर्ता
10. अब हम कम से कम 100 दिन तक बिना एक
भी पैसा लिये सचिन क्रिकेट कान्ड का पाठ
करेंगें -- सभी बिकाऊ मीडीया
11. अब बूस्ट और पेप्सी पे किसी को भी शक
नही होना चाहिये - देश
की लुटेरी विदेशी कंप्निया
12. आईला.. अब मै़ रिटायर ना होने
का क्या बहाना बनाऊ। --- खुद सचिन

Friday, 16 March 2012

बिहार में आलू उत्पादन का विश्व कीर्तिमान !!
बिहार के नालंदा जिले में कतरीसराय प्रखंड के देशपुरवा गांव के किसानों ने आलू उत्पादन का विश्व कीर्तिमान बनाया है।

मुख्यमंत्री के गृह जनपद, नालंदा के देशपुरवा गांव के किसानों ने जैविक खेती के माध्यम से प्रति हेक्टेयर 729 क्विंटल आलू पैदा किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इतना उत्पादन कहीं भी दर्ज नहीं किया गया है। खेत से आलू निकालने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ तकनीकी अधिकारियों का एक दल भी यहां पहुंचा।

फसल जांच सांख्यिकी विभाग द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार 10.05 मीटर क्षेत्रफल से निकाले गए आलू का वजन 364.5 किलोग्राम पाया गया। नालंदा के जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल ने कहा है कि जैविक खेती के जरिए आलू के उत्पादन में देशपुरवा के किसानों ने नया कीर्तिमान बनाया है। उन्होंने कहा कि किसानों की मेहनत और सरकारी योजनाओं के लाभ के कारण ऐसी स्थिति हासिल की जा सकी है। किसान नीतीश कुमार ने कहा कि उन्होंने खेत में गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट, वॉम स्टार सहित कई मिश्रणों का इस्तेमाल किया।

गौरतलब है कि नालंदा में राज्य जैविक सब्जी प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत 2,500 हेक्टेयर में किसानों को जैविक उत्पादन क्रय करने का लाभ दिया जा रहा है। आलू उत्पादन का यह रिकार्ड अन्य किसानों के बीच व्याप्त कई भ्रांतियों को दूर करेगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को बिहार विधानसभा में नालंदा के किसानों को आलू उत्पादन में रिकार्ड बनाने के लिए बधाई दी। उन्होंने सदन को सूचित किया कि नालंदा के किसानों ने जैविक खेती के जरिए प्रति हेक्टेयर 729 क्विंटल आलू का उत्पादन किया है। अब तक यह रिकार्ड हॉलैंड के नाम था, जहां प्रति हेक्टेयर 535 क्विंटल आलू का उत्पादन हुआ था। उल्लेखनीय है कि देशपुरवा के किसानों ने श्रीविधि तकनीक से धान का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 224 क्विंटल तक पहुंचा दिया है, जबकि पारंपरिक तरीके से यहां प्रति हेक्टेयर धान का उत्पादन 80 क्विंटल होता था। नालंदा के जिलाधिकारी भी मानते है कि केवल देशपुरवा के निवासी ही नहीं, बल्कि जिले के सैकड़ों किसान उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि कर रहे है। उन्होंने कहा कि पहले तो किसान पारंपरिक खेती को छोड़ने और आधुनिक तकनीक अपनाने को तैयार ही नहीं थे, परंतु प्रशासन द्वारा नई तकनीक से होने वाले नुकसान की भरपाई किए जाने के वादे के बाद किसान तैयार हो गए और अब नतीजा सबके सामने है।
By: Ravi Tiwari

Sunday, 11 March 2012

" मेरा भारत महान - जय हिंद - जय हिंदुस्तान "


इण्डिया / भारत / हिन्दुस्तान / जम्बूद्वीप / सोने की चिड़िया ....नाम की उत्पत्ति :--


1. इण्डिया (India) नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के अंग्रेजी नाम " Indus " से हुई है।

2." भारत " नाम, एक प्राचीन हिन्दू सम्राट भरत जो कि मनु के वंशज ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा जिनकी कथा श्रीमदभागवत महापुराण में है, के नाम से लिया गया है।

- भारत (भा + रत) शब्द का मतलब है आन्तरिक प्रकाश या विदेक-रूपी प्रकाश में लीन।

3. एक तीसरा नाम " हिन्दुस्तान " भी है जिसका अर्थ हिन्द(हिन्दू) की भूमि होता है जो कि प्राचीन काल ऋषियों द्वारा दिया गया था। प्राचीन काल में यह कम प्रयुक्त होता था तथा कालान्तर में अधिक प्रचलित हुआ विशेषकर अरब/ईरान में। भारत में यह नाम मुगल काल से अधिक प्रचलित हुआ यद्यपि इसका समकालीन उपयोग कम और प्रायः उत्तरी भारत के लिए होता है।

4. इसके अतिरिक्त भारतवर्ष को वैदिक काल से आर्यावर्त "जम्बूद्वीप" और "अजनाभदेश" के नाम से भी जाना जाता रहा है।

5. बहुत पहले यह देश 'सोने की चिड़िया' के रूप में जाना जाता था।

-----------------------------------------------------------------------------

भारत के दो आधिकारिक नाम हैं - हिन्दी में भारत और अंग्रेज़ी में इण्डिया (India).....!!!!

जय हिंद !
जय हिंदुस्तान !!

Monday, 5 March 2012

अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने ---

दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !

तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण !

चार युग - सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग !

चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !

चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !

चर वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !

चार आश्रम - ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास !

चार अंतःकरण - मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार !

पञ्च गव्य - गाय का घी , दूध , दही , गोमूत्र एवं गोबर , !

पञ्च देव - गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य !

पंच तत्त्व - प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवं आकाश !

छह दर्शन - वैशेषिक , न्याय , सांख्य, योग , पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा !

सप्त ऋषि - विश्वामित्र , जमदाग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप !

सप्त पूरी - अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ) , अवंतिका और द्वारिका पूरी !

आठ योग - यम , नियम, आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समाधी !

आठ लक्ष्मी - आग्घ , विद्या , सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य , भोग , एवं योग लक्ष्मी !

नव दुर्गा - शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी एवं सिद्धिदात्री !

दस दिशाएं - पूर्व , पश्चिम , उत्तर , दक्षिण , इशान , नेत्रत्य , वायव्य आग्नेय ,आकाश एवं पाताल !

मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य , कच्छप , बराह , नरसिंह , बामन , परशुराम , श्री राम , कृष्ण , बलराम , बुद्ध , एवं कल्कि !

बारह मास - चेत्र , वैशाख , ज्येष्ठ ,अषाड़ , श्रावन , भाद्रपद , अश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष . पौष , माघ , फागुन !

बारह राशी - मेष , ब्रषभ , मिथुन , कर्क , सिंह , तुला , ब्रश्चिक , धनु , मकर , कुम्भ , एवं कन्या !

बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ , मल्लिकर्जुना , महाकाल , ओमकालेश्वर , बैजनाथ , रामेश्वरम , विश्वनाथ , त्रियम्वाकेश्वर , केदारनाथ , घुष्नेश्वर , भीमाशंकर एवं नागेश्वर !

पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा , द्वतीय , तृतीय , चतुर्थी , पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , एकादशी , द्वादशी , त्रयोदशी , चतुर्दशी , पूर्णिमा , अमावश्या !

स्म्रतियां - मनु , विष्णु, अत्री , हारीत , याज्ञवल्क्य , उशना , अंगीरा , यम , आपस्तम्ब , सर्वत , कात्यायन , ब्रहस्पति , पराशर , व्यास , शांख्य , लिखित , दक्ष , शातातप , वशिष्ठ !

By : Sachin Khare