Monday, 14 May 2012

मत बहाना सस्ते आंसू, FACEBOOK की दीवालों पर..
फिर भड़केगी ज्वाला शायद, मुर्दों की मशालों पर..!!!
वतन की वेदी पे जिसने, बेटा अपना खोया है..
तुमको क्या फरक पड़ेगा, फिर आज तिरंगा रोया है..!!!

60 बरस की काठी लेकर, फिर आज मातम मनाता..
जलती चिता संग बैठा, मैं बुझता आफताफ हूँ..
मत पूछो गांव मेरा, क्या नाम है मेरा..
शहीद-ए-हिंद फौजी का, मैं वो बूढा-बाप हू..
CCD में ही तुम बैठो यारों, तुमने कब-कुछ खोया है..
गप्पों में क्या पता पड़ेगा, क्यूँ आज तिरंगा रोया है..!!!

गोली खायी थी सीने में, जिस माटी के लाल ने..
देखो कैसे सो रहा वो, मोक्ष के अंतिम चौपाल में..
माँ घर पे विलख रही है, बच्चे झूठ संग सो जायेंगे..
बीवी "बेवा" बन गयी अब, हर वादे मुर्दा हो जायेंगे..
Macdonlds में तुम बर्गर खाते, तुमने कब कुछ खोया है..
शहीद हुआ वो लाल था मेरा, फिर आज तिरंगा रोया है..!!!

कल तलक ये अंगारे भी, राख में ढल जायेंगे..
माटी से आये थे फिर माटी में मिल जायेंगे..
जिस जिस्म की जान, फकत वतन से होती है..
तपती वेदी संग दुखियारी, वो राख अभी से रोती है..
XXX पे तुम कसक मिटाते..तुमने कब क्या खोया है..
नंगे-जिस्मो में क्या पता पड़ेगा, क्यूँ आज तिरंगा रोया है..!!!

मत देना सोने के तमगे और उम्मीदों के गलियारे..
जब वो जिगर का टुकड़ा चला गया..करके बे-सहारे..
मत देना कोई ईनाम, उसकी शहादत के ईमान का..
वीर बेटा था जो मरा, क्या गया हिन्दुस्तान का..
Incentive की बातों में, तुमने कब कुछ खोया है..
तुमको क्या फरक पड़ेगा, फिर आज तिरंगा रोया है..!!!
....फिर आज तिरंगा रोया है..!!!
....फिर आज तिरंगा रोया है..!

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निवेदनकर्ता
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना "
(समाज सेवक)
ब्लॉग का पता : http://prabhat-wwwprabhatkumarbhardwaj.blogspot.in/

Wednesday, 9 May 2012

हिन्दुस्तान क्या है ??



शुरुआत की दस लाइनों से ही ये लेख आपको इसे पूरा पढने पर बाध्य कर देगा

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* पूरे विश्व को सभ्यता हमने सिखाई और आज हम उनसे सभ्यता सिख रहे हैं
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ध्यान-साधना, योग, आयुर्वेद, ये सारी अनमोल चीजें हमारी विरासत थी लेकिन अंग्रेजों ने हम लोगों के मन में बैठा दिया कि ये सब फालतू कि चीज़े हैं और हम लोगों ने मान भी लिया पर आज जब उनको जरुरत पड़ रही हैं इन सब चीजों कि तो फिर से हम लोगों कि शरण में दौड़े-भागे आ रहे हैं और अब हमारा योग 'योगा' बनकर हमारे पास आया तब जाकर हमें एहसास हो रहा हैं कि जिसे हम कंचे समझकर खेल रहे थे, वो हीरा था। उस आयुर्वेद के ज्ञान को विदेशी वाले अपने नाम से पेटेंट करा रहे हैं जिसके बाद उसका व्यापारिक उपयोग हम नहीं कर पायेंगे। इस आयुर्वेद का ज्ञान इस तरह रच बस गया हैं हम लोगों के खून में कि चाहकर भी हम इसे भुला नहीं सकते ...आज भले ही बहुत कम ज्ञान हैं हमें आयुर्वेद का पर पहले घर कि हरेक औरतों को इसका पर्याप्त ज्ञान था तभी तो आज दादी माँ के नुस्खे या नानी माँ के नुख्से पुस्तक बनकर छप रहे हैं। उस आयुर्वेद की छाया प्रति तैयार करके अरबी वाले 'यूनानी चिकित्सा' का नाम देकर प्रचलित कर रहे हैं।

जिस समय पश्चिम में आदिमानवों ने कपडे पहनना सीखा था...उस समय हमारे यहाँ लोग पुष्पक विमान में उड़ा करते थे। आज अगर विदेशी वाले हमारे ज्ञान को अपने नाम से पेटेंट करा रहे हैं तो हमारी नपुंसकता के कारण ही ना ??
वो तो योग के ज्ञाता नहीं रहे होंगे विदेश में और जब तक होते तब तक स्वामी रामदेव जी आते नहीं तो ये किसी विदेशी के नाम से पेटेंट हो चुका होता....हमारी एक और महान विरासत हैं संगीत की जो माँ सरस्वती की देन हैं किसी साधारण मानवों की नहीं। फिर इसे हम तुच्छ समझकर इसका अपमान कर रहे हैं। याद हैं आज से साल भर पहले हमारे संगीत-निर्देशक ए.आर. रहमान (पहले नाम दिलीप कुमार) को संगीत के लिए आस्कर पुरूस्कार दिया गया था.....और गर्व से सीना चौड़ा हम भारतियों का जबकि मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे अपनों ने मुझे जख्म दिया और अंग्रेज उसमे नमक छिड़क रहे हैं और मेरे अपने उसे देखकर खुश हो रहे हैं।
किस तरह भीगा कर जूता मारा था अंग्रेजों ने हम भारतियों के सर पर और हम गुलाम भारतीय उसमे भी खुश हो रहे थे कि मालिक ने हमें पुरस्कार तो दिया..... भले ही वो जूतों का हार ही क्यों ना हों ?? अरे शर्म से डूब जाना चाहिए हम भारतियों को अगर रत्ती भर भी शर्म बची है तो ??
बेशक रहमान की जगह कोई सच्चा देशभक्त होता तो ऐसे आस्कर को लात मार कर चला आता ........क्योंकि वो पुरस्कार अच्छे संगीत के लिए नहीं दिए गए थे बल्कि उसने पश्चिमी संगीत को मिलाया था भारतीय संगीत में इसलिए मिला वो पुरस्कार....यानी कि भारतीय संगीत कितना भी मधुर क्यों न हों आस्कर लेना हैं तो पश्चिमी संगीत को अपनाना होगा........सीधा सा मतलब यह हैं कि हमें कौन सा संगीत पसंद करना हैं और कौन सा नहीं ये हमें अब वो बताएँगे .........इससे बड़ा और गुलामी का सबूत और क्या हो सकता हैं कि हम अपनी इच्छा से कुछ पसंद भी नहीं कर सकते......कुछ पसंद करने के लिए भी विदेशियों कि मुहर लगवानी पड़ेगी उस पर हमें.... जिसे क,ख,ग भी नहीं पता अब वो हमें संगीत सिखायेंगे जहाँ संगीत का मतलब सिर्फ गला फाड़कर चिल्ला देना भर होता हैं वो सिखायेंगे ??

ज्यादा पुरानी बात भी नहीं हैं ये ......हरिदास जी और उसके शिष्य तानसेन (जो अकबर के दरबारी संगीतज्ञ थे) के समय कि बात हैं जब राज्य के किसी भाग में सुखा और आकाल कि स्थिति पैदा हो जाती थी तो तानसेन को वहां भेजा जाता था वर्षा करने के लिए......तानसेन में इतनी क्षमता थी कि मल्हार गाके वर्षा करा दे, दीपक राग गाके दीपक जला दे और शीतराग से शीतलता पैदा कर दे तो प्राचीन काल में अगर संगीत से पत्थर मोम बन जाता था, जंगल के जानवर खींचे चले आते थे कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये बात कोई भी अनुभव कर सकता हैं की किस तरह दिनों-दिन संगीत-कला विलुप्त होती जा रही हैं .....और संगीत कला का गुण तो हम भारतियों के खून में हैं .......किशोर कुमार, उषा मंगेशकर, कुमार सानू जैसे अनगिनत उदाहरण हैं जो बिना किसी से संगीत की शिक्षा लिए बॉलीवुड में आये थे।
एक और उदहारण हैं जब तानसेन की बेटी ने रात भर में ही "शीत राग" सीख लिया था.......चूँकि दीपक राग गाते समय शरीर में इतनी ऊष्मा पैदा हो जाती हैं कि अगर अन्य कोई “शीत राग” ना गाये तो दीपक राग गाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी और तानसेन के प्राण लेने के उद्द्येश्य से ही एक चाल चलकर उसे दीपक राग गाने के लिए बाध्य किया था उससे इर्ष्या करने वाले दरबारियों ने ..........और तानसेन भी अपनी मृत्यु निश्चित मान बैठे थे क्योंकि उनके अलावा कोई और इसका ज्ञाता (जानकार) भी नहीं था और रातभर में सीखना संभव भी ना था किसी के लिए पर वो भूल गए थे कि उनकी बेटी में भी उन्ही का खून था और जब पिता के प्राण पर बन आये तो बेटी असंभव को भी संभव करने कि क्षमता रखती हैं ...... तानसेन के ऐसे सैकड़ों कहानियां हैं पर ये छोटी सी कहानी मैंने आप लोगों को अपने भारत के महान संगीत विरासत कि झलक दिखने के लिए लिखी.......अब सोचिये कि ऐसे में अगर विदेशी हमें संगीत कि समझ कराये तो ऐसा ही हैं जैसे पोता, दादा जी को धोती पहनना सिखाये, राक्षस साधू-महात्माओं को धर्म का मर्म समझाए और शेर किसी हिरन को अपने पंजे में दबाये अहिंसा कि शिक्षा दे ......नहीं..??
हम लोगों के यहाँ सात सुर से संगीत बनता हैं इसलिए 'सात तारों से बना सितार' बजाते हैं हमलोग, लेकिन अंग्रेजों को क्या समझ में आ गया जो छह तार वाला वाध्य-यंत्र बना लिया और सितार कि तर्ज पर उन्सका नामकरण गिटार कर दिया ??

इतना कहने के बाद भी हमारे भारतीय नहीं मानेगे मेरी बात पर जब कोई अंग्रेज कहेगा कि उसने गायों को भारतीय संगीत सुनाया तो ज्यादा दूध लिया या जब शोध सामने आएगा कि भारतीय संगीत का असर फसलों पर पड़ता हैं और वे जल्दी-जल्दी बढ़ने लगते हैं तब हम विश्वास करेंगे.... क्यों ?? ये सब शोध अंग्रेज को भले आश्चर्यचकित कर दे पर अगर ये शोध किसी भारतीय को आश्चर्यचकित करते हैं तो ये दुःख: कि बात हैं।

हमारे देश वासियों को लगता हैं हम लोग पिछड़े हुए हैं जो हमारे यहाँ छोटे-छोटे घर हैं और दूसरी और अंग्रेज तकनीकी विद्या के कितने ज्ञानी हैं, वो खुशनसीब हैं जो उनके यहाँ इतनी ऊँची-ऊँची अट्टालिकाए (Buildings) हैं और इतने बड़े-बड़े पुल हैं........ इस पर मैं अपने देशवासियों से यहीं कहूँगा कि ऊँचे घर बनाना मज़बूरी और जरुरत हैं उनकी, विशेषता नहीं..... हमलोग बहुत भाग्यशाली हैं जो अपनी धरती माँ कि गोद में रहते हैं विदेशियों कि तरह माँ के सर पर चढ़ कर नहीं बैठते।
हम लोगों को घर के छत, आँगन और द्वार का सुख प्राप्त होता हैं .....जिसमें गर्मी में सुबह-शाम ठंडी-ठंडी हवा जो हमें प्रकृति ने उपहार-स्वरूप प्रदान किये हैं उसका आनंद लेते हैं और ठण्ड में तो दिन-दिन भर छत या आँगन में बैठकर सूर्य देव कि आशीर्वाद रूपी किरणों को अपने शारीर में समाते हैं, विदेशियों कि तरह धुप सेंकने के लिए नंगे होकर समुन्द्र के किनारे रेत पर लेटते नहीं हैं.............रही बात क्षमता कि तो जरुरत पड़ने पर हमने समुन्द्र पर भी पत्थरों का पुल बनाया था और रावण तो पृथ्वी से लेकर स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने कि तैयारी कर रहा था तो अगर वो चाहता तो गगनचुम्बी इमारते भी बना सकता था लेकिन अगर नहीं बनाया तो इसलिए कि वो विद्वान था।
तथ्यपूर्ण बात तो ये हैं कि हम अपनी धरती माँ के जितने ही करीब रहेंगे रोगों से उतना ही दूर रहंगे और जितना दूर रहेंगे रोगों के उतना करीब जायेंगे। हमारे मित्रों को इस बात कि भी शर्म महसूस होती हैं कि हम लोग कितने स्वार्थी, बेईमान, झूठे, मक्कार, भ्रष्टाचारी और चोर होते हैं जबकि अंग्रेज लोग कितने ईमानदार होते हैं ....हम लोगों के यहाँ कितनी धुल और गंदगी हैं जबकि उनके यहाँ तो लोग महीने में एक-दो बार ही झाड़ू मारा करते हैं.......तो जान लीजिये कि वैज्ञानिक शोध ये कहती हैं कि साफ़ सुथरे पर्यावरण में पलकर बड़े होने वाले शिशु कमजोर होते हैं, उनके अन्दर रोगों से लड़ने कि शक्ति नहीं होती दूसरी तरफ दूषित वातावरण में पलकर बढ़ने वाले शिशु रोगों से लड़ने के लिए शक्ति संपन्न होते हैं। इसका अर्थ ये मत लगा लीजियेगा कि मैं गंदगी पसंद आदमी हूँ, मैं भारत में गंदगी को बढ़ावा दे रहा हूँ ........मेरा अर्थ ये हैं कि सीमा से बाहर शुद्धता भी अच्छी नहीं होती और जहाँ तक भारत कि बात हैं तो यहाँ हद से ज्यादा गंदगी हैं जिसे साफ़ करने कि अत्यंत आवश्यकता हैं.......रही बात झाड़ू मारने कि तो घर गन्दा हो या ना हों झाड़ू तो रोज मारना ही चाहिए क्योंकि झाड़ू मारकर हम सिर्फ धुल-गंदगी को ही बाहर नहीं करते बल्कि अपशकुन को भी झाड -फुहाड़ कर बाहर कर देते हैं तभी तो हम गरीब होते हुए भी खुश रहते हैं।
भारतीय को समृद्धि कि सूची में पांचवे स्थान पर रखा गया था क्योंकि ये पैसे के मामले में भले कम हैं लेकिन और लोगो से ज्यादा सुखी हैं और जहाँ तक हमारे ऐसे बनने की बात है तो वो सब अंग्रेजों ने ही सिखाया है हमें, नहीं तो उसके आने के पहले हम छल-कपट जानते तक नहीं थे........उन्होंने हमें धर्म-विहीन और चरित्र-विहीन शिक्षा देना शुरू किया ताकि हम हिन्दू धर्म से घृणा करने लगे और ईसाई बन जाए।
उन्होंने नौकरी आधारित शिक्षा व्यवस्था लागू की ताकि बच्चे नौकरी करने कि पढाई के अलावा और कुछ सोच ही न पाए. इसका परिणाम तो देख ही रहे हैं कि अभी के बच्चे को अगर चरित्र, धर्म या देशहित के बारे में कुछ कहेंगे तो वो सुनना ही नहीं चाहता..........वो कहता है उसे अभी सिर्फ अपने कोर्स कि किताबों से मतलब रखना हैं और किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं उसे......अभी कि शिक्षा का एकमात्र उद्द्येश्य नौकरी पाना रह गया हैं ....लोगो को किताबी ज्ञान तो बहुत मिल जाता हैं कि वो ……
डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, आई.ए.एस. या नेता बन जाता हैं पर उसकी नैतिक शिक्षा न्यूनतम स्तर कि भी नहीं होती जिसका कारण रोज एक-से-बढ़कर एक अपराध और घोटाले करते रहते हैं ये लोग। अभी कि शिक्षा पाकर बच्चे नौकरी पा लेते हैं लेकिन उनका मानसिक और बौद्धिक विकास नहीं हो पाता हैं, इस मामले में वो पिछड़े ही रह जाते हैं जबकि हमारी सभ्यता में ऐसी शिक्षा दी जाती थी जिससे उस व्यक्ति के पूर्ण व्यक्तिगत का विकास होता था.....उसकी बुद्धि का विकास होता था, उसकी सोचने-समझने कि शक्ति बढती थी।
आज ये अंग्रेज जो पूरी दुनिया में ढोल पिट रहे हैं कि ईसाईयत के कारण ही वो सभ्य और विकसित हुए और उनके यहाँ इतनी वैज्ञानिक प्रगति हुई तो क्या इस बात का उत्तर हैं उनके पास कि कट्टर और रुढ़िवादी ईसाई धर्म जो तलवार के बल पर 25-50 कि संख्या से शुरू होकर पूरा विश्व में फैलाया गया, जो ये कहता हो कि सिर्फ बाईबल पर आँख बंदकर भरोसा करने वाले लोग ही स्वर्ग जायेंगे बाकी सब नर्क जाएंगे,,,जिस धर्म में बाईबल के विरुद्ध बोलने कि हिम्मत बड़ा से बड़ा व्यक्ति भी नहीं कर सकता वो इतना विकासशील कैसे बन गया ???
400 साल पहले जब गैलीलियों ने यूरोप की जनता को इस सच्चाई से अवगत कराना चाहा कि पृथ्वी सूर्य कि परिक्रमा करती हैं तो ईसाई धर्म-गुरुओं ने उसे खम्बे से बांधकर जीवित जलाये जाने का दंड दे दिया वो तो बेचारा क्षमा मांगकर बाल-बाल बचा। एक और प्रसिद्ध पोप, उनका नाम मुझे अभी याद नहीं, वे भी मानते थे कि पृथ्वी सूर्य के चारो और घुमती हैं लेकिन जीवन भर बेचारे कभी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए...उनके मरने के बाद उनकी डायरी से ये बात पता चली। क्या ऐसा धर्म वैज्ञानिक उन्नति में कभी सहायक हो सकता हैं ??? ये तो सहायक की बजाय बाधक ही बन सकता हैं।

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हिन्दू जैसे खुले धर्म को जिसे गरियाने की पूरी स्वतंत्रता मिली हुई हैं सबको, जिसमें कोई मूर्ति-पूजा करता हैं, कोई ध्यान-साधना, कोई तन्त्र-साधना, कोई मन्त्र-साधना ....... ऐसे अनगिनत तरीके हैं इस धर्म में, जिस धर्म में कोई बंधन नहीं ..जिसमें नित नए खोज शामिल किये जा सकते हैं और समय तथा परिस्थिति के अनुसार बदलाव करने की पूरी स्वतंत्रता हैं, जिसने सिर्फ पूजा-पाठ ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला सिखाई, 'वसुधैव कुटुम्बकम' का नारा दिया, पूरे विश्व को अपना भाई माना, जिसने अंक शास्त्र, ज्योतिष-शास्त्र, आयुर्वेद-शास्त्र, संगीत-कला, भवन निर्माण कला, काम-कला आदि जैसे अनगिनत कलाएं तुम लोगों (ईसाईयों) को दी और तुम लोग कृतघ्न, जो नित्यकर्म के बाद अपने गुदा को पानी से धोना भी नहीं जानते, हमें ही गरियाकर चले गए।
अगर ईसाई धर्म के कारण ही तुमने तरक्की की तो वो तो 1800 साल पहले कर लेनी चाहिए थी, पर तुमने तो 200-300 साल पहले जब सबको लूटना शुरू किया और यहाँ (भारत) के ज्ञान को सीख-सीखकर यहाँ के धन-दौलत को हड़पना शुरू किया तबसे तुमने तरक्की की ऐसा क्यों ???
ये दुनिया करोडों वर्ष पुरानी हैं लेकिन तुम लोगों को 'ईसा और मुहम्मद' के पहले का इतिहास पता ही नहीं ......कहते हो बड़े-बड़े विशाल भवन बना दिए तुमने.....अरे जाओ, जब आज तक पिछवाडा धोना सीख ही नहीं पाए, खाना बनाना सीख ही नहीं पाए, जो की अभी तक उबालकर नमक डालकर खाते तो बड़े-बड़े भवन बनाओगे तुम। एक भी ग्रन्थ तुम्हारे पास-भवन निर्माण के ?? जो भी छोटे-मोटे होंगे वो हमारे ही नक़ल किये हुए होंगे।

प्रोफ़ेसर ओक ने तो सिद्ध कर दिया की भारत में जितने प्राचीन भवन हैं वो हिन्दू भवन या मंदिर हैं जिसे मुस्लिम शासकों ने हड़प कर अपना नाम दे दिया और विश्व में भी जो बड़े-बड़े भवन हैं उसमें हिन्दू शैली की ही प्रधानता हैं। ये भी हंसी की ही बात हैं की मुग़ल शासक महल नहीं सिर्फ मकबरे और मस्जिद ही बनवाया करते थे भारत में। जो हमेशा गद्दी के लिए अपने बाप-भाईयों से लड़ता-झगड़ता रहता था, अपना जीवन युद्ध लड़ने में बिता दिया करते थे उसके मन में अपने बाप या पत्नी के लिए विशाल भवन बनाने का विचार आ जाया करता था !! इतना प्यार करता था अपनी पत्नी से जिसको बच्चा पैदा करवाते करवाते मार डाला उसने !! मुमताज़ की मौत बच्चा पैदा करने के दौरान ही हुई थी और उसके पहले वो 14 बच्चे को जन्म दे चुकी थी ......जो भारत को बर्बाद करने के लिए आया था, यहाँ के नागरिकों को लूटकर, लाखों-लाख हिन्दुओं को काटकर और यहाँ के मंदिर और संस्कृतिक विरासत को तहस-नहस करके अपार खुशी का अनुभव करता था वो यहाँ कोई सृजनात्मक विरासत कार्य करे ये तो मेरे गले से नहीं उतर सकता। जिसके पास अपना कोई स्थापत्य कला का ग्रन्थ नहीं हैं वो भारत की स्थापत्य कला को देखकर ये कहने को मजबूर हो गया था की भारत इस दुनिया का आश्चर्य हैं इसके जैसा दूसरा देश पूरी दुनिया में कहीं नहीं हो सकता हैं, वो लोग अगर ताजमहल बनाने का दावा करते हैं तो ये ऐसा ही हैं जैसा 3 साल के बच्चे द्वारा दसवीं का प्रश्न हल करना।

दुःख तो ये हैं की आज़ाद देश आज़ाद होने के बाद भी मुसलमानों को खुश रखने के लिए इतिहास में कोई सुधर नहीं किये, हमारे मुसलमान और ईसाई भाइयों के मूत्र-पान करने वाले हमारे राजनितिक नेताओं ने। आज जब ये सिद्ध हो चूका हैं की ताजमहल शाहजहाँ ने नहीं बनवाया बल्कि उससे सौ-दो-सौ साल पहले का बना हुआ हैं तो ऐसे में अगर सरकार सच्चाई लाने की हिम्मत करती तो क्या हम भारतीय गर्व का अनुभव नहीं करते ? क्या हमारी हीन भावना दूर होने में मदद नहीं मिलती? ताजमहल साथ आश्चर्यों में से एक हैं ये सब जानते हैं पर सात आश्चर्यों में ये क्यों शामिल हैं ये कितने लोग जानते हैं ? इसके शामिल होने का कारण इसकी उत्कृष्ट स्थापत्य कला, इसकी अदभुत कारीगरी को अब तक आधुनिक इंजीनियर समझने की कोशिश कर रहे हैं। जिस प्रकार कुतुबमीनार के लौह-स्तम्भ की तकनीक को समझने की कोशिश कर रहे हैं......जो की अब तक समझ नहीं पाए हैं। (इस भुलावे में मत रहिएगा की कुतुबमीनार को कुतुबद्दीन एबक ने बनवाया था)...... मोटी-मोटी तो मैं इतना ही जानता हूँ की यमुना नहीं के किनारे के गीली मुलायम मिटटी को इतने विशाल भवन के भार को सेहन करने लायक बनाना, पूरे में सिर्फ पत्थरों का काम करना समान्य सी बात नहीं हैं .........इसको बनाने वाले इंजिनियर के इंजीनियरिंग प्रतिभा को देखकर अभी के इंजीनियर दांतों तले ऊँगली दबा रहे हैं। अगर ये सब बातें जनता के सामने आएगी तभी तो हम अपना खोया आत्मविश्वास प्राप्त कर पायेंगे ........1200 सालों तक हमें लूटते रहे, लूटते रहे, लूटते रहे और जब लुट-खसौट कर कंगाल कर दिया तब अब हमें एहसास करा रहे हों की हम कितने दीन-हीन हैं और ऊपर से हमें इतिहास भी गलत पढ़ा रहे हैं इस डर से की कहीं फिर से अपने पूर्वजों का गौरव इतिहास पढ़कर हम अपना आत्मविश्वास ना पा लें। अरे, अगर हिम्मत हैं तो एक बार सही इतिहास पढ़कर देखों हमें.....हम स्वाभिमानी भारतीय जो सिर्फ अपने वचन को टूटने से बचाने के लिए जान तक गवां देते थे इतने दिनों तक दुश्मनों के अत्याचार सहते रहे तो ऐसे में हमारा आत्म-विश्वास टूटना स्वभाविक ही हैं .....हम भारतीय जो एक-एक पैसे के लिए, अन्न के एक-एक दाने के लिए इतने दिनों तक तरसते रहे तो आज हीन भावना में डूब गए, लालची बन गए, स्वार्थी बन गए तो ये कोई शर्म की बात नहीं........ऐसी परिस्थिति में तो धर्मराज युधिष्ठिर के भी पग डगमगा जाएँ....आखिर युधिष्ठिर जी भी तो बुरे समय में धर्म से विचलित हो गए थे जो अपनी पत्नी तक को जुए में दावं पर लगा दिए थे।

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* चलिए इतिहास तो बहुत हो गया अब वर्तमान पर आते हैं *
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वर्तमान में आप लोग देख ही रहे हैं कि विदेशी हमारे यहाँ से डाक्टर-इंजिनियर और मैनेजर को ले जा रहे हैं इसलिए कि उनके पास हम भारतियों कि तुलना में दिमाग बहुत ही कम हैं। आप लोग भी पेपरों में पढ़ते रहते होंगे कि अमेरिका में गणित पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी हो जाती हैं जिसके लिए वो भारत में शिक्षक की मांग करते हैं तो कभी ओबामा भारतीय बच्चो की प्रतिभा से डर कर अमेरिकी बच्चो को सावधान होने की नसीहत देते हैं । पूर्वजों द्वारा लुटा हुआ माल हैं तो अपनी कंपनी खड़ी कर लेते हैं लेकिन दिमाग कहाँ से लायेंगे....उसके लिए उन्हें यहीं आना पड़ता हैं ....हम बेचारे भारतीय गरीब पैसे के लालच में बड़े गर्व से उनकी मजदूरी करने चले जाते थे, पर अब परिस्थिति बदलनी शुरू हो गयी हैं। अब हमारे युवा भी विदेश जाने की बजाय अपने देश की सेवा करना शुरू कर दिए हैं ....वो दिन दूर नहीं जब हमारे युवाओं पर टिके विदेशी फिर से हमारे गुलाम बनेंगे। फिर से इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि पूरे विश्व पर पहले हमारा शासन चलता था जिसका इतिहास मिटा दिया गया हैं ........लेकिन जिस तरह सालों पहले हुई हत्या जिसकी खूनी ने अपनी तरफ से सारे सबूत मिटा देने की भरसक कोशिश की हो, उसकी जांच अगर की जाती हैं तो कई सुराग मिल जाते हैं जिससे गुत्थी सुलझ ही जाती हैं, बिलकुल यहीं कहानी हमारे इतिहास के साथ भी हैं जिस तरह अब हमारे युवा विदेशों के करोड़ों रुपये की नौकरी को ठुकराकर अपने देश में ही इडली, बड़ा पाव सब्जी बेचकर या चालित शौचालय, रिक्शा आदि का कारोबार कर करोड़ों रुपये सालाना कम रहे हैं, ये संकेत हैं की अब हमारे युवा अपना खोया आत्म-विशवास प्राप्त कर रहे हैं और उनमे नेतृत्व क्षमता भी लौट चुकी हैं तो वो दीन भी दूर नहीं जब पूरे विश्व का नेतृत्व फिर से हम भारतियों के हाथों में होगा और हम पुन: विश्वगुरु के सिंहासन पर आसीन होंगे। जिस तरह हरेक के लिए दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता है वैसे हम लोगों के 1200 सालों से ज्यादा रात का समय कट चुका हैं अब दिन निकल आया हैं ...इसका उदाहरण देख लो भारत का झारखंड राज्य जहां जनसँख्या 3 करोड़ की नहीं हैं और यहाँ 14,000 करोड़ का घोटाला हो जाता हैं फिर भी ये राज्य प्रगति कर रहा है।

इसलिए अपने पराधीन मानसिकता से बाहर आओ, डर को निकालों अपने अन्दर से हमें किसी दूसरे का सहारा लेकर नहीं चलना हैं। खुद हमारे पैर ही इतने मजबूत हैं की पूरी दुनिया को अपने पैरों तले रौंद सकते हैं हम ...हम वही हैं जिसने विश्वविजेता का सपना देखने वाले सिकन्दर का दंभ चूर-चूर कर दिया था। गौरी को 13 बार अपने पैरों पर गिराकर गिडगिडाने को मजबूर किया और जीवनदान दिया। जिस प्रकार बिल्ली चूहे के साथ खेलती रहती हैं वैसे ही ये दुर्भाग्य था हमारा जो शत्रू के चंगुल में फंस गए क्योंकि उस चूहे ने अपनों की ही सहायता ले ली पर हमने उसे छोड़ा नहीं, अँधा हो जाने के बावजूद भी उसे मारकर मरे........जिस प्रकार जलवाष्प की नन्ही-नन्ही पानी की बूंदें भी एकत्रित हो जाने पर घनघोर वर्षा कर प्रलय ला देती है, अदृश्य हवा भी गति पाकर भयंकर तबाही मचा देती है, नदी-नाले की छोटी लहरें नदी में मिलकर एक होती है तो गर्जना करती हुई अपने आगे आने वाली हरेक अवरोधों को हटाती हुई आगे बढती रहती है वैसे ही मैं अभी भले ही जलवाष्प की एक छोटी सी बूंद हूँ, पर अगर आप लोग मेरा साथ दो तो इसमें कोई शक नहीं की हम भारतीय फिर से इस दुनिया को अपने चरणों में झुका देंगे....... और मुझे पता हैं दोस्त.........मेरे जैसी करोड़ों बूंदें एकृत होकर बरसने को बेकरार हैं इसलिए अब और ज्यादा विलंब ना करो और मेरे हाँथ में अपना हाँथ दो मित्र और अगर किसी को इस लेख से किसी भी प्रकार की चोट पहुंचाई तो उसके लिए भी क्षमा मांगता हूँ।

॥ मेरा भारत महान.....सत्यमेव जयते ॥

Monday, 7 May 2012

अग्नि-6 की भी तैयारी में भारत.
( india is going to launch agni 6 )

विशेष संवाददाता , नई दिल्ली
पहली इंटरकॉन्टिनेंटल बलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) अग्नि- 5 का सफल टेस्ट कर भारत ने अपनी ताकत से पूरी दुनिया को रूबरू करा दिया है। अब सुनने में आया है कि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ( डीआरडीओ ) ने अग्नि -5 के सफल परीक्षण के पहले से ही 6-8 हजार किलोमीटर दूर तक मार करने वाली अग्नि -6 मिसाइल की तैयारी भी शुरू कर दी है। रक्षा सूत्रों के मुताबिक , यह अभी शुरुआती दौर में है। अग्नि -6 मिसाइल भारत की सही मायनों में आईसीबीएम कही जाएगी। यह मिसाइल जमीन से और पनडुब्बी से छोड़ने लायक बनाई जाएगी।

डीआरडीओ 10 हजार किलोमीटर दूरी वाली आईसीबीएम पर भी काम शुरू करना चाहता है जिसे कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार है। पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल पी . वी . नायक ने इस आशय का सुझाव सरकार को दिया था। वैसे अग्नि -5 मिसाइल के वारहेड यानी विस्फोटक शीर्ष का वजन कम कर दिया जाए तो अग्नि -5 की मारक दूरी भी 6 हजार किलोमीटर की जा सकती है।

गौरतलब है कि चीन , रूस और अमेरिका के पास करीब 10 से 14 हजार किमी दूर तक मार करने वाली मिसाइलें हैं जो किसी आईसीबीएम की अधिकतम मारक दूरी हो सकती है।

शुभरात्रि...
जय हिन्द !
जय हिन्दुस्तान !!

Thursday, 3 May 2012

पहचानिए ये क्या है..........?
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चलिए हम ही बता देते हैं........
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ये है सूर्य (SUN)

Let's know some facts about Sun :-


1 - सूरज धरती और दूसरे ग्रहों से बहुत अलग हैं। यह एक सितारा (Star) हैं, ठीक दूसरे सितारों की तरह, लेकिन उन सबसे बहुत क़रीब। सूर्य सौर मंडल में सबसे बड़ा पिण्ड है। सूर्य सौरमंडलके केन्द्र में स्थित एक तारा हैं, जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं।

2 - सूरज देखने में इतना बड़ा नहीं लगता क्योंकि वह धरती से बहुत दूर है। सूर्य का व्यास (Diameter) 13 लाख 92 हज़ार किलोमीटर (865000 मील) है, जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है। सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है और पृथ्वी को सूर्यताप का 2 अरबवाँ भाग मिलता है।

3 - सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग 14,96,00,000 किलोमीटर या 9,29,60,000 मील है तथा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट 16.6 सेकेण्ड का समय लगता है।

4 - सूर्य आकाशगंगा के 100 अरब से अधिक तारो में से एक सामान्य मुख्य क्रम का G2 श्रेणी का साधारण तारा है। यह अक्सर कहा जाता है कि सूर्य एक साधारण तारा है। यह इस तरह से सच है कि सूर्य के जैसे लाखों तारे है। लेकिन सूर्य से बड़े तारो की तुलना में छोटे तारे ज़्यादा है।

5 - जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। सूर्य सौरमण्डल का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला (आकाश गंगा) के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है। सूर्य दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है।

6 - सूर्य मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हीलियम, लोहा, निकल, ऑक्सीजन,सिलिकॉन, सल्फर, मैग्नीशियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्त्वों से हुआ है। वर्तमान में सूर्य के द्रव्यमान का 71% हाइड्रोजन 26.5%हीलियम और 2.5% अन्य धातु/तत्त्व है। यह अनुपात धीमे धीमे बदलता है क्योंकि सूर्य हायड्रोजन को जलाकर हीलियम बनाता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से 15 प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, 30 प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मज़बूत गुरुत्त्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है।

7 - सूर्य का केन्द्रीय भाग "कोर" कहलाता है, अपने चरम तापमान पर है। यहाँ तापमान 15600000 डिग्री केल्विन (1.5×107 ºC) है और दबाव 250 विलियन वायुमंडलीय दबाव है। सूर्य के केंद्र पर घनत्व पानी के घनत्व से 150 गुना से अधिक है।

8 - सूर्य की शक्ति नाभिकीय संलयन द्वारा निर्मित है। हर सेकंड 700,000,000 टन की हाइड्रोजन 695000000 टन में परिवर्तित हो जाती है शेष 5,000,000 टन गामा किरणो के रूप में ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।



(REAL PICTURE OF SUN TAKEN FROM SATELLITE)

Saturday, 28 April 2012

भारत के बारे में 10 आश्चर्यजनक तथ्य:

1. पेंटियम चिप का आविष्कार'विनोद धाम'ने किया था। (आज दुनिया के 90% कम्प्युटर इसी से चलते हैं)
2. सबीर भाटिया ने हॉटमेल बनाई। (हॉटमेल दुनिया का न.1 ईमेल प्रोग्राम है)
3. अमेरिका में 38% डॉक्टर भारतीय हैं।
4. अमेरिका में 12% वैज्ञानिक भारतीय हैं।
5. नासा में 36% वैज्ञानिक भारतीय हैं।
6. माइक्रोसॉफ़्ट के 34% कर्मचारी भारतीय हैं।
7. आईबीएम के 28% कर्मचारी भारतीय हैं।
8. इंटेल के 17% वैज्ञानिक भारतीय हैं।
9. ज़िरॉक्स के 13% कर्मचारी भारतीय हैं।
10. प्रसिद्ध खेल'शतरंज'की खोज भारत में हुई थी।

Thursday, 5 April 2012

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।

रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।

यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर

खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से

और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम

जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज

दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

Wednesday, 28 March 2012

सभी हिन्दू पुत्रो के लिए सन्देश -



जब जब मै देश में हो रही हिंदुत्व की और देश की दुर्दशा की बात करता हु ,तब लोग सवाल करते है
.."हम कर भी क्या सकते है?"

उन लोगो को ये एक छोटा सा उत्तर है -

प्रकृति ने पुरुष का निर्माण करते समय उसे ऐसी बोहत सारी शक्तिया दी थी जो की स्त्री के पास नहीं थी,
उन शक्तियों को और उन शतियो के प्रयोग को ही "पुरुषार्थ" कहा गया है!

माँ भवानी के चरणों में नमन करो,दीप और धुप जलाओ ,रक्तचंदन का तिलक करो और फीर आईने के सामने खड़े रहकर अपने आप से पूछो - की आप "क्या नहीं कर सकते?"

जवाब मिल जायेगा !
संसार के सभी धर्मो के पुरुषो में हिन्दू पुरुष सर्वश्रेष्ठ है क्यूंकि -
उसने उसे जन्म देने वाली माँ को भगवान् माना है और उसकी दुर्गा रूप में पूजा की है!
और यही एक कारण है की हजारो साल बीत गए , कितने ही लुटेरे (इस्लामी ,अंग्रेज) आये और चले गए ,हिन्दू सभ्यता आज भी वही की वाही खड़ी है.....एक अभेद्य पर्वत की तरह!
और वो दिन दूर नहीं जब ये हिन्दू सभ्यता सम्पूर्ण धरातल पर राज करेगी!!!

जय हो मैय्या की!हर हर महादेव !!

जयति अखंड हिन्दू राष्ट्रं!

क्या आप सेकुलर है ?



तो आईये जरा इन प्रश्नों के उत्तर दीजिये -

१] विश्व में ५२ मुस्लिम देश है, एक मुस्लिम देश ऐसा बताये जहा हज यात्रा पर सब्सिडी दी जाती है!

२] एक मुस्लिम राष्ट्र ऐसा बताये जहा हिन्दुओ को विशेष अधिकार दिए जाते है, जैसे की भारत में मुस्लिमो को !

३] केवल एक देश ऐसा बताये जहा ८५ % बहुसंख्य १५ % अल्पसंख्यानको के भोग के लिए चुसे जाते है !

४] एक मुस्लिम राष्ट्र ऐसा बताये जहा गैर-मुस्लिम राष्ट्राध्यक्ष बना हो !

५] एक ऐसा मुल्ला या मुलावी बताये जिसने आतंकवाद के विरुद्ध फतवा निकला हो!

६] महाराष्ट्र,बिहार,केरल, पांडिचेरी (जहा हिन्दू बहुसंख्य है) जैसे राज्यों ने मुस्लिम मुख्यमंत्रियों को कभी चुना है.. ...क्या आप जम्मू-कश्मीर (जहा मुस्लिम बहुसंख्य है) में हिन्दू मुख्यमंत्री की कल्पना कर सकते है?

७] भारत - पकिस्तान के बटवारे के समय पकिस्तान में २४ % हिन्दू थे जो की आज १.५ % भी नहीं रहे! क्या कोई बता सकता है की गायब हुए हिन्दुओ के साथ क्या हुआ? क्या हिन्दुओ के लिए भी कोई मानवाधिकार है ???

८] इसके बिलकुल विपरीत भारत में मुस्लिमो की संख्या १९५१ में १० % से बढ़कर १५ % हो गयी है !
और हिन्दू ८७.५ % से ८५ % पर है!
क्या फीरभी आप हिन्दुओ को कट्टरपंथी कहेगे !

९] जब हिन्दुओ ने मुसलमानों को अपने जमीन का ३० % हिस्सा गुनगुनाते हुए दे दिया....तब उन्हें अपने ही भूमि पर अयोध्या और मथुरा जैसे पवित्र स्थलों के लिए क्यों भीक माँगना पड रहा है?

१०] गाँधी ने सरकारी खर्च से सोमनाथ मदीर बनवाने के लिए विरोध किया था. तो फीर जनवरी १९४८ में दिल्ली की मस्जीद का जिर्नोध्धार करवाने के लिए उन्होंने क्योँ सरदार पटेल पर दबाव डाला ?

११] गांधी ने " खिलाफत आन्दोलन "(जिसे देश की आजादी से कोई लेना देना नहीं था) को समर्थन दिया था, इसके बदले में उन्होंने क्या पाया ?

१२] जब महाराष्ट्र,बिहार में मुस्लिम और ख्रिश्चन अल्पसंख्यांक है, तो फीर जम्मू-कश्मीर,नागालैंड,मिझोरम में हिन्दू अल्पसंख्यांक नहीं? हिन्दुओ को क्योँ अल्पसंख्यांक अधिकारों से वंचीत रखा जाता है ???

१३] जब हज यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है, तो अमरनाथ,कैलाश मानसरोवर यात्रा पर टैक्स क्यों लगाया जाता है?

१४] जब ख्रिश्चन और मुस्लिम विद्यालयों में कुरआन और बैबल पढाई जा सकती है, तो हिन्दू विद्यालयों में गीताजी क्योँ नहीं ?

१५] हिन्दुओ की समस्याए सामने आने के बजाय ,क्या आपको नहीं लगता की किसी का हिन्दू होना ही एक समस्या है????

१६] गोधरा के बाद छिड़े दंगो को एक हद से ज्यादा उठाया गया, बल्कि जहा ४ लाख हिन्दुओ का कश्मिरसे पूर्ण रूप से पतन हुआ उसके बारे में कोई बात करने को भी तयार नहीं.

१७ ] मंदिरो के पैसो को मुस्लमान और ख्रिश्चानो के उत्सवो में उडाया जाता है, यद्यपि मस्जीद और चर्च अपना पैसा अपने ढंग से खर्च करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र है!!

१८] अब्दूल रहमान अंतुले को मुंबई के सिध्धिविनायक मंदीर का ट्रस्टी बनाया गया, क्या कोई हिन्दू (जैसे की मुलायम सिंह यादव) किसी मदरसा या मस्जीद का ट्रस्टी बनकर दिखा सकता है?

१९] अगर हिन्दुओ को असहिष्णु कहा जाता है तो बताईये की कैसे मस्जीद और मदरसे दिनों दिन बढ़ते जा रहे है?
कैसे मुसलमानों को सड़क पर नमाज पढने दिया जाता है?
कैसे मुसलमानों को दिन में 5 बार लाउड स्पीकर पर ये कहने दिया जाता है की "अल्लाह के सिवाह दूसरा कोई भगवान् ही नहीं "

ये विचार किसी संघटना या राजनैतिक पार्टी के सदस्य के नहीं बल्कि एक सच्चे देशभक्त के है!
कृपया इसे शेयर करे !

जय हिंद !
जयति अखंड हिन्दू राष्ट्रं

प्रधानमंत्री जी, देश को जवाब चाहिए



देश की रक्षा तैयारियों के बारे में 12 मार्च को आर्मी चीफ जनरल वी. के. सिंह ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को जो चिट्ठी लिखी है, वह विस्फोटक और चिंतित करने वाला है। लीक हुई चिट्ठी में बहुत से मुद्दों को उठाया गया है। कुछ अहम मुद्दे निम्न हैं...

1. दुश्मन को शिकस्त देने के लिए टैंक के बेड़े के पास गोला-बारूद का भारी अभाव।
2. हवाई सुरक्षा के 97 फीसदी उपकरण पुराने पड़ चुके हैं और बेकार हो गए हैं, हवाई हमले से बचाने का भरोसा नहीं दे सकते।
3. पैदल सेना के पास पर्याप्त हथियारों का अभाव, रात में लडऩे की क्षमता की भारी कमी है।
4. आर्मी की एलीट स्पेशल फोर्स के पास के पास चिंताजनक रूप से जरूरी हथियारों की कमी है।
5. सेना की निगरानी क्षमता में बड़े स्तर पर खामियां मौजूद हैं।

हालांकि, इसके साथ मैं एक बात और कहना चाहता हूं। लोग आर्मी चीफ पर पिले पड़े हैं। कुछ सांसद तो उन्हें बर्खास्त करने तक की मांग तक कर रहे हैं। मेरा उनसे कहना है कि संदेशवाहक को गोली नहीं मारी जाती। ऐसा पहली बार हो रहा है कि रक्षा मामलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से चर्चा हो रही है। इसका श्रेय आर्मी चीफ को ही जाता है। नहीं तो अब तक तो इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर दबा दिया जाता था।

आम आदमी सरकारी भ्रष्टाचार से आजिज आ चुका है। उसकी सहनशक्ति दिन पर दिन कम हो रही है। और, समझ लीजिए कि जिस दिन हमारे सुरक्षा साजोसामान में भ्रष्टाचार का असर सबको दिखने लगेगा, लोगों का गुस्सा फूट पड़ेगा। तब उसे संभाल पाना संभव नहीं होगा। बहुत अच्छा होगा कि हमारे सांसद, जिनकी अपनी ही विश्वसनीयता गर्त में है, इस मौके का इस्तेमाल सिस्टम की सफाई में करें न कि साहस दिखाने वाले जनरल पर निशाने साधने में क्योंकि उनके निजी हितों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
आनन्द प्रिय राहुल
=== > संस्कृत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य < ===

1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा।
संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1987

2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है)
संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी

3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति स्वस्थ और बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।
संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद)

4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी(Technology) रखती है।
संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी, नासा आदि

(नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं)
(असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं। दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्तकरने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।

5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है।
संदर्भ: यूएनओ

6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके।
परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।

7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है।
संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985

8. संस्कृत भाषा वर्तमान में "उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी" तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज "सरल किर्लियन फोटोग्राफी" भी नहीं है )

9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरतनाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है )

10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है।

ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है {भाग 2}


January 7, 2012 at 1:09am ·
     गताँक से आगे{पिछले भाग के लिये यहाँ  https://www.facebook.com/note.php?note_id=339924262684304 क्लिक्  करेँ} हिंदू गुम्बज के सम्‍बन्‍ध मे तर्क (क्रमांक 62 से 64) 62. ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। ऐसा गुम्बज किसी कब्र के लिये होना एक विसंगति है क्योंकि कब्रगाह एक शांतिपूर्ण स्थान होता है। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों के लिये गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है क्योंकि वे देवी-देवता आरती के समय बजने वाले घंटियों, नगाड़ों आदि के ध्वनि के उल्लास और मधुरता को कई गुणा अधिक कर देते हैं। 63. ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। इस्लाम के गुम्बज अनालंकृत होते हैं, दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित पाकिस्तानी दूतावास और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के गुम्बज उनके उदाहरण हैं। 64. ताजमहल दक्षिणमुखी भवन है। यदि ताज का सम्बंध इस्लाम से होता तो उसका मुख पश्चिम की ओर होता। कब्र दफनस्थल होता है न कि भवन ( क्रमांक 65 से 69 तक) 65. महल को कब्र का रूप देने की गलती के परिणामस्वरूप एक व्यापक भ्रामक स्थिति उत्पन्न हुई है। इस्लाम के आक्रमण स्वरूप, जिस किसी देश में वे गये वहाँ के, विजित भवनों में लाश दफन करके उन्हें कब्र का रूप दे दिया गया। अतः दिमाग से इस भ्रम को निकाल देना चाहिये कि वे विजित भवन कब्र के ऊपर बनाये गये हैं जैसे कि लाश दफ़न करने के बाद मिट्टी का टीला बना दिया जाता है। ताजमहल का प्रकरण भी इसी सच्चाई का उदाहरण है। (भले ही केवल तर्क करने के लिये) इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज़ की लाश दफ़नाई गई न कि लाश दफ़नाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया। 66. ताज एक सातमंजिला भवन है। शाहज़ादा औरंगज़ेब के शाहज़हां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन के चार मंजिल संगमरमर पत्थरों से बने हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृतीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर के इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बने दो और मंजिलें हैं जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिये क्योंकि सभी प्राचीन हिंदू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है। 67. नदी तट से भाग में संगमरमर के नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहज़हां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को जिन्हें कि शाहज़हां ने अतिगोपनीय बना दिया है भारत के पुरातत्व विभाग के द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों के दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिंदू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक एक दरवाजे बने हुये हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारा से चुनवा दिया गया है कि वे दीवाल जैसे प्रतीत हों। 68. स्पष्तः मूल रूप से शाहज़हां के द्वारा चुनवाये गये इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाये हुये दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झाँक कर देखा था। उसके भीतर एक वृहत कक्ष (huge hall) और वहाँ के दृश्य को‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ देख कर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत सा हो गया। वहाँ बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारे मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहाँ पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ताजमहल हिंदू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन कौन से साक्ष्य छुपे हुये हैं उसके के सातों मंजिलों को खोल कर उसकी साफ सफाई करने की नितांत आवश्यकता है। 69. अध्ययन से पता चलता है कि इन बंद कमरों के साथ ही साथ ताज के चौड़ी दीवारों के बीच में भी हिंदू चित्रों, मूर्तियों आदि छिपे हुये हैं। सन् 1959 से 1962 के अंतराल में श्री एस.आर. राव, जब वे आगरा पुरातत्व विभाग के सुपरिन्टेन्डेंट हुआ करते थे, का ध्यान ताजमहल के मध्यवर्तीय अष्टकोणीय कक्ष के दीवार में एक चौड़ी दरार पर गया। उस दरार का पूरी तरह से अध्ययन करने के लिये जब दीवार की एक परत उखाड़ी गई तो संगमरमर की दो या तीन प्रतिमाएँ वहाँ से निकल कर गिर पड़ीं। इस बात को खामोशी के साथ छुपा दिया गया और प्रतिमाओं को फिर से वहीं दफ़न कर दिया गया जहाँ शाहज़हां के आदेश से पहले दफ़न की गई थीं। इस बात की पुष्टि अनेक अन्य स्रोतों से हो चुकी है। जिन दिनों मैंने ताज के पूर्ववर्ती काल के विषय में खोजकार्य आरंभ किया उन्हीं दिनों मुझे इस बात की जानकारी मिली थी जो कि अब तक एक भूला बिसरा रहस्य बन कर रह गया है। ताज के मंदिर होने के प्रमाण में इससे अच्छा साक्ष्य और क्या हो सकता है? उन देव प्रतिमाओं को जो शाहज़हां के द्वारा ताज को हथियाये जाने से पहले उसमें प्रतिष्ठित थे ताज की दीवारें और चुनवाये हुये कमरे आज भी छुपाये हुये हैं। शाहज़हां के पूर्व के ताज के संदर्भ ( क्रमांक 70 से 106 ) 70. स्पष्टतः के केन्द्रीय भवन का इतिहास अत्यंत पेचीदा प्रतीत होता है। शायद महमूद गज़नी और उसके बाद के मुस्लिम प्रत्येक आक्रमणकारी ने लूट कर अपवित्र किया है परंतु हिंदुओं का इस पर पुनर्विजय के बाद पुनः भगवान शिव की प्रतिष्ठा करके इसकी पवित्रता को फिर से बरकरार कर दिया जाता था। शाहज़हां अंतिम मुसलमान था जिसने तेजोमहालय उर्फ ताजमहल के पवित्रता को भ्रष्ट किया। 71. विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं, "बाबर ने सन् 1630 आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई"। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। 72. बाबर की पुत्री गुलबदन 'हुमायूँनामा' नामक अपने ऐतिहासिक वृतांत में ताज का संदर्भ 'रहस्य महल' (Mystic House) के नाम से देती है। 73. बाबर स्वयं अपने संस्मरण में इब्राहिम लोधी के कब्जे में एक मध्यवर्ती अष्टकोणीय चारों कोणों में चार खम्भों वाली इमारत का जिक्र करता है जो कि ताज ही था। ये सारे संदर्भ ताज के शाहज़हां से कम से कम सौ साल पहले का होने का संकेत देते हैं। 74. ताजमहल की सीमाएँ चारों ओर कई सौ गज की दूरी में फैली हुई है। नदी के पार ताज से जुड़ी अन्य भवनों, स्नान के घाटों और नौका घाटों के अवशेष हैं। विक्टोरिया गार्डन के बाहरी हिस्से में एक लंबी, सर्पीली, लताच्छादित प्राचीन दीवार है जो कि एक लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय स्तंभ तक जाती है। इतने वस्तृत भूभाग को कब्रिस्तान का रूप दे दिया गया। 75. यदि ताज को विशेषतः मुमताज़ के दफ़नाने के लिये बनवाया गया होता तो वहाँ पर अन्य और भी कब्रों का जमघट नहीं होता। परंतु ताज प्रांगण में अनेक कब्रें विद्यमान हैं कम से कम उसके पूर्वी एवं दक्षिणी भागों के गुम्बजदार भवनों में। 76. दक्षिणी की ओर ताजगंज गेट के दूसरे किनारे के दो गुम्बजदार भवनों में रानी सरहंडी ब़ेगम, फतेहपुरी ब़ेगम और कु. सातुन्निसा को दफ़नाया गया है। इस प्रकार से एक साथ दफ़नाना तभी न्यायसंगत हो सकता है जबकि या तो रानी का दर्जा कम किया गया हो या कु. का दर्जा बढ़ाया गया हो। शाहज़हां ने अपने वंशानुगत स्वभाव के अनुसार ताज को एक साधारण मुस्लिम कब्रिस्तान के रूप में परिवर्तित कर के रख दिया क्योंकि उसने उसे अधिग्रहित किया था (ध्यान रहे बनवाया नहीं था)। 77. शाहज़हां ने मुमताज़ से निक़ाह के पहले और बाद में भी कई और औरतों से निक़ाह किया था, अतः मुमताज़ को कोई ह़क नहीँ था कि उसके लिये आश्चर्यजनक कब्र बनवाया जावे। 78. मुमताज़ का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उसमें ऐसा कोई विशेष योग्यता भी नहीं थी कि उसके लिये ताम-झाम वाला कब्र बनवाया जावे। 79. शाहज़हां तो केवल एक मौका ढूंढ रहा था कि कैसे अपने क्रूर सेना के साथ मंदिर पर हमला करके वहाँ की सारी दौलत हथिया ले, मुमताज़ को दफ़नाना तो एक बहाना मात्र था। इस बात की पुष्टि बादशाहनामा में की गई इस प्रविष्टि से होती है कि मुमताज़ की लाश को बुरहानपुर के कब्र से निकाल कर आगरा लाया गया और 'अगले साल' दफ़नाया गया। बादशाहनामा जैसे अधिकारिक दस्तावेज़ में सही तारीख के स्थान पर 'अगले साल' लिखने से ही जाहिर होता है कि शाहज़हां दफ़न से सम्बंधित विवरण को छुपाना चाहता था। 80. विचार करने योग्य बात है कि जिस शाहज़हां ने मुमताज़ के जीवनकाल में उसके लिये एक भी भवन नहीं बनवाया, मर जाने के बाद एक लाश के लिये आश्चर्यमय कब्र कभी नहीं बनवा सकता। 81. एक विचारणीय बात यह भी है कि शाहज़हां के बादशाह बनने के तो या तीन साल बाद ही मुमताज़ की मौत हो गई। तो क्या शाहज़हां ने इन दो तीन साल के छोटे समय में ही इतना अधिक धन संचय कर लिया कि एक कब्र बनवाने में उसे उड़ा सके? 82. जहाँ इतिहास में शाहज़हां के मुमताज़ के प्रति विशेष आसक्ति का कोई विवरण नहीं मिलता वहीं शाहज़हां के अनेक औरतों के साथ, जिनमें दासी, औरत के आकार के पुतले, यहाँ तक कि उसकी स्वयं की बेटी जहांआरा भी शामिल है, के साथ यौन सम्बंधों ने उसके काल में अधिक महत्व पाया। क्या शाहज़हां मुमताज़ की लाश पर अपनी गाढ़ी कमाई लुटाता? 83. शाहज़हां एक कृपण सूदखोर बादशाह था। अपने सारे प्रतिद्वंदियों का कत्ल करके उसने राज सिंहासन प्राप्त किया था। जितना खर्चीला उसे बताया जाता है उतना वो हो ही नहीं सकता था। 84. मुमताज़ की मौत से खिन्न शाहज़हां ने एकाएक ताज बनवाने का निश्चय कर लिया। ये बात एक मनोवैज्ञानिक असंगति है। दुख एक ऐसी संवेदना है जो इंसान को अयोग्य और अकर्मण्य बनाती है। 85. शाहज़हां यदि मूर्ख या बावला होता तो समझा जा सकता है कि वो मृत मुमताज़ के लिये ताज बनवा सकता है परंतु सांसारिक और यौन सुख में लिप्त शाहज़हां तो कभी भी ताज नहीं बनवा सकता क्योंकि यौन भी इंसान को अयोग्य बनाने वाली संवेदना है। 86. सन् 1973 के आरंभ में जब ताज के सामने वाली वाटिका की खुदाई हुई तो वर्तमान फौवारों के लगभग छः फुट नीचे और भी फौवारे पाये गये। इससे दो बातें सिद्ध होती हैं। पहली तो यह कि जमीन के नीचे वाले फौवारे शाहज़हां के काल से पहले ही मौजूद थे। दूसरी यह कि पहले से मौजूद फौवारे चूँकि ताज से जाकर मिले थे अतः ताज भी शाहज़हां के काल से पहले ही से मौजूद था। स्पष्ट है कि इस्लाम शासन के दौरान रख रखाव न होने के कारण ताज के सामने की वाटिका और फौवारे बरसात के पानी की बाढ़ में डूब गये थे। 87. ताजमहल के ऊपरी मंजिल के गौरवमय कक्षों से कई जगह से संगमरमर के पत्थर उखाड़ लिये गये थे जिनका उपयोग मुमताज़ के नकली कब्रों को बनाने के लिये किया गया। इसी कारण से ताज के भूतल के फर्श और दीवारों में लगे मूल्यवान संगमरमर के पत्थरों की तुलना में ऊपरी तल के कक्ष भद्दे, कुरूप और लूट का शिकार बने नजर आते हैं। चूँकि ताज के ऊपरी तलों के कक्षों में दर्शकों का प्रवेश वर्जित है, शाहज़हां के द्वारा की गई ये बरबादी एक सुरक्षित रहस्य बन कर रह गई है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि मुगलों के शासन काल की समाप्ति के 200 वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो जाने के बाद भी शाहज़हां के द्वारा ताज के ऊपरी कक्षों से संगमरमर की इस लूट को आज भी छुपाये रखा जावे। 88. फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वहाँ चौंधिया देने वाली वस्तुएँ थीं। यदि वे वस्तुएँ शाहज़हां ने खुद ही रखवाये होते तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता। परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएँ थीं और शाहज़हां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिये वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे। 89. ताज की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर खाई खोद कर की गई है। किलों, मंदिरों तथा भवनों की सुरक्षा के लिये खाई बनाना हिंदुओं में सामान्य सुरक्षा व्यवस्था रही है। 90. पीटर मुंडी ने लिखा है कि शाहज़हां ने उन खाइयों को पाटने के लिये हजारों मजदूर लगवाये थे। यह भी ताज के शाहज़हां के समय से पहले के होने का एक लिखित प्रमाण है। 91. नदी के पिछवाड़े में हिंदू बस्तियाँ, बहुत से हिंदू प्राचीन घाट और प्राचीन हिंदू शव-दाह गृह है। यदि शाहज़हाँ ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता। 92. यह कथन कि शाहज़हाँ नदी के दूसरी तरफ एक काले पत्थर का ताज बनवाना चाहता था भी एक प्रायोजित कपोल कल्पना है। नदी के उस पार के गड्ढे मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा हिंदू भवनों के लूटमार और तोड़फोड़ के कारण बने हैं न कि दूसरे ताज के नींव खुदवाने के कारण। शाहज़हां, जिसने कि सफेद ताजमहल को ही नहीं बनवाया था, काले ताजमहल बनवाने के विषय में कभी सोच भी नहीं सकता था। वह तो इतना कंजूस था कि हिंदू भवनों को मुस्लिम रूप देने के लिये भी मजदूरों से उसने सेंत मेंत में और जोर जबर्दस्ती से काम लिया था। 93. जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊँची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाये गये हैं। 94. कुछ कल्पनाशील इतिहासकारों तो ने ताज के भवननिर्माणशास्त्री के रूप में कुछ काल्पनिक नाम सुझाये हैं पर और ही अधिक कल्पनाशील इतिहासकारों ने तो स्वयं शाहज़हां को ताज के भवननिर्माणशास्त्री होने का श्रेय दे दिया है जैसे कि वह सर्वगुणसम्पन्न विद्वान एवं कला का ज्ञाता था। ऐसे ही इतिहासकारों ने अपने इतिहास के अल्पज्ञान की वजह से इतिहास के साथ ही विश्वासघात किया है वरना शाहज़हां तो एक क्रूर, निरंकुश, औरतखोर और नशेड़ी व्यक्ति था। 95. और भी कई भ्रमित करने वाली लुभावनी बातें बना दी गई हैं। कुछ लोग विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि शाहज़हां ने पूरे संसार के सर्वश्रेष्ठ भवननिर्माणशास्त्रियों से संपर्क करने के बाद उनमें से एक को चुना था। तो कुछ लोगों का यग विश्वास है कि उसने अपने ही एक भवननिर्माणशास्त्री को चुना था। यदि यह बातें सच होती तो शाहज़हां के शाही दस्तावेजों में इमारत के नक्शों का पुलिंदा मिला होता। परंतु वहाँ तो नक्शे का एक टुकड़ा भी नहीं है। नक्शों का न मिलना भी इस बात का पक्का सबूत है कि ताज को शाहज़हां ने नहीं बनवाया। 96. ताजमहल बड़े बड़े खंडहरों से घिरा हुआ है जो कि इस बात की ओर इशारा करती है कि वहाँ पर अनेक बार युद्ध हुये थे। 97. ताज के दक्षिण में एक प्रचीन पशुशाला है। वहाँ पर तेजोमहालय के पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है। 98. ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं जो कि एक कब्र के लिया अनावश्यक है। 99. संपूर्ण ताज में 400 से 500 कमरे हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे रहाइशी कमरों का होना समझ के बाहर की बात है। 100. ताज के पड़ोस के ताजगंज नामक नगरीय क्षेत्र का स्थूल सुरक्षा दीवार ताजमहल से लगा हुआ है। ये इस बात का स्पष्ट निशानी है कि तेजोमहालय नगरीय क्षेत्र का ही एक हिस्सा था। ताजगंज से एक सड़क सीधे ताजमहल तक आता है। ताजगंज द्वार ताजमहल के द्वार तथा उसके लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय वाटिका के ठीक सीध में है। 101. ताजमहल के सभी गुम्बजदार भवन आनंददायक हैं जो कि एक मकब़रे के लिय उपयुक्त नहीं है। 102. आगरे के लाल किले के एक बरामदे में एक छोटा सा शीशा लगा हुआ है जिससे पूरा ताजमहल प्रतिबिंबित होता है। ऐसा कहा जाता है कि शाहज़हां ने अपने जीवन के अंतिम आठ साल एक कैदी के रूप में इसी शीशे से ताजमहल को देखते हुये और मुमताज़ के नाम से आहें भरते हुये बिताया था। इस कथन में अनेक झूठ का संमिश्रण है। सबसे पहले तो यह कि वृद्ध शाहज़हां को उसके बेटे औरंगज़ेब ने लाल किले के तहखाने के भीतर कैद किया था न कि सजे-धजे और चारों ओर से खुले ऊपर के मंजिल के बरामदे में। दूसरा यह कि उस छोटे से शीशे को सन् 1930 में इंशा अल्लाह ख़ान नामक पुरातत्व विभाग के एक चपरासी ने लगाया था केवल दर्शकों को यह दिखाने के लिये कि पुराने समय में लोग कैसे पूरे तेजोमहालय को एक छोटे से शीशे के टुकड़े में देख लिया करते थे। तीसरे, वृद्ध शाहज़हाँ, जिसके जोड़ों में दर्द और आँखों में मोतियाबिंद था घंटो गर्दन उठाये हुये कमजोर नजरों से उस शीशे में झाँकते रहने के काबिल ही नहीं था जब लाल किले से ताजमहल सीधे ही पूरा का पूरा दिखाई देता है तो छोटे से शीशे से केवल उसकी परछाईं को देखने की आवश्कता भी नहीं है। पर हमारी भोली-भाली जनता इतनी नादान है कि धूर्त पथप्रदर्शकों (guides) की इन अविश्वासपूर्ण और विवेकहीन बातों को आसानी के साथ पचा लेती है। 103. ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुये हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दिये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था। 104. ताजमहल पर शाहज़हां के स्वामित्व तथा शाहज़हां और मुमताज़ के अलौकिक प्रेम की कहानी पर विश्वास कर लेने वाले लोगों को लगता है कि शाहज़हाँ एक सहृदय व्यक्ति था और शाहज़हां तथा मुमताज़ रोम्यो और जूलियट जैसे प्रेमी युगल थे। परंतु तथ्य बताते हैं कि शाहज़हां एक हृदयहीन, अत्याचारी और क्रूर व्यक्ति था जिसने मुमताज़ के साथ जीवन भर अत्याचार किये थे। 105. विद्यालयों और महाविद्यालयों में इतिहास की कक्षा में बताया जाता है कि शाहज़हां का काल अमन और शांति का काल था तथा शाहज़हां ने अनेकों भवनों का निर्माण किया और अनेक सत्कार्य किये जो कि पूर्णतः मनगढ़ंत और कपोल कल्पित हैं। जैसा कि इस ताजमहल प्रकरण में बताया जा चुका है, शाहज़हां ने कभी भी कोई भवन नहीं बनाया उल्टे बने बनाये भवनों का नाश ही किया और अपनी सेना की 48 टुकड़ियों की सहायता से लगातार 30 वर्षों तक अत्याचार करता रहा जो कि सिद्ध करता है कि उसके काल में कभी भी अमन और शांति नहीं रही। 106. जहाँ मुमताज़ का कब्र बना है उस गुम्बज के भीतरी छत में सुनहरे रंग में सूर्य और नाग के चित्र हैं। हिंदू योद्धा अपने आपको सूर्यवंशी कहते हैं अतः सूर्य का उनके लिये बहुत अधिक महत्व है जबकि मुसलमानों के लिये सूर्य का महत्व केवल एक शब्द से अधिक कुछ भी नहीं है। और नाग का सम्बंध भगवान शंकर के साथ हमेशा से ही रहा है। झूठे दस्तावेज़ 107. ताज के गुम्बज की देखरेख करने वाले मुसलमानों के पास एक दस्तावेज़ है जिसे के वे "तारीख-ए-ताजमहल" कहते हैं। इतिहासकार एच.जी. कीन ने उस पर 'वास्तविक न होने की शंका वाला दस्तावेज़' का मुहर लगा दिया है। कीन का कथन एक रहस्यमय सत्य है क्योंकि हम जानते हैं कि जब शाहज़हां ने ताजमहल को नहीं बनवाया ही नहीं तो किसी भी दस्तावेज़ को जो कि ताजमहल को बनाने का श्रेय शाहज़हां को देता है झूठा ही माना जायेगा। 108. पेशेवर इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता तथा भवनशास्त्रियों के दिमाग में ताज से जुड़े बहुत सारे कुतर्क और चतुराई से भरे झूठे तर्क या कम से कम भ्रामक विचार भरे हैं। शुरू से ही उनका विश्वास रहा है कि ताज पूरी तरह से मुस्लिम भवन है। उन्हें यह बताने पर कि ताज का कमलाकार होना, चार स्तंभों का होना आदि हिंदू लक्षण हैं, वे गुणवान लोग इस प्रकार से अपना पक्ष रखते हैं कि ताज को बनाने वाले कारीगर, कर्मचारी आदि हिंदू थे और शायद इसीलिये उन्होंने हिंदू शैली से उसे बनाया। पर उनका पक्ष गलत है क्योंकि मुस्लिम वृतान्त दावा करता है कि ताज के रूपांकक (designers) बनवाने वाले शासक मुस्लिम थे, और कारीगर, कर्मचारी इत्यादि लोग मुस्लिम तानाशाही के विरुद्ध अपनी मनमानी कर ही नहीं सकते थे। इस्‍लाम का मुख्‍य काम भारत को लूटना मात्र था, उन्‍होने तत्‍कालीन मन्दिरो अपना निशाना बनया। हिन्‍दू मंदिर उस समय अपने ऐश्वर्य के चरम पर रहे थे। इसी प्रकार आज का ताजमहल नाम से विख्‍यात तेजोमहाजय को भी अपना निशाना बनाया। मुस्लिम शासकों ने देश के हिंदू भवनों को मुस्लिम रूप देकर उन्हें बनवाने का श्रेय स्वयं ले लिया इस बात का ताज एक आदर्श उदारहरण है।

ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है {भाग 1}


January 7, 2012 at 12:58am ·
    श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक "Tajmahal is a Hindu Temple Palace" में 100 से भी अधिक प्रमाण और तर्को का हवाला देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक साहब को उस इतिहास कार के रूप मे जाना जाता है तो भारत के विकृत इतिहास को पुर्नोत्‍थान और सही दिशा में ले जाने का किया है। मुगलो और अग्रेजो के समय मे जिस प्रकार भारत के इतिहास के साथ जिस प्रकार छेड़छाड की गई और आज वर्तमान तक मे की जा रही है, उसका विरोध और सही प्रस्तुतिकारण करने वाले प्रमुख इतिहासकारो में पुरूषोत्तम नाथ ओक साहब का नाम लिया जाता है। ओक साहब ने ताजमहल की भूमिका, इतिहास और पृष्‍ठभूमि से लेकर सभी का अध्‍ययन किया और छायाचित्रों छाया चित्रो के द्वारा उसे प्रमाणित करने का सार्थक प्रयास किया। श्री ओक के इन तथ्‍यो पर आ सरकार और प्रमुख विश्वविद्यालय आदि मौन जबकि इस विषय पर शोध किया जाना चाहिये और सही इतिहास से हमे अवगत करना चाहिये। किन्‍तु दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। आज भी हम जैसे विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है, क्‍योकि जिस इतिहास से हम सबक सीखने की बात कहते है यदि वह ही गलत हो, इससे बड़ा राष्‍ट्रीय शर्म और क्‍या हो सकता है ? श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण इस प्रकार हैं - सर्व प्रथम ताजमहन के नाम के सम्‍बन्‍ध में ओक साहब ने कहा कि नाम - (क्रम संख्‍या 1 से 8 तक) 1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है। 2. शब्द ताजमहल के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द है ही नहीं, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो। 3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है - पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक औरत के नाम से "मुम" को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता। 4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)। 5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग किया है। 6. मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल। इस प्रकार से समझने से यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़, एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों या मंदिरों में दफ़नाया गया है। 7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं है। 8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत है। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं। फिर उन्‍होने इसको मंदिर कहे जाने की बातो को तर्कसंगत तरीके से बताया है (क्रम संख्‍या 9 से 17 तक) 9. ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे। 10. संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता। 11. देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज़ के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। 12. संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। 13. ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मूर्तियों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा हुआ और संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले गुप्त कक्षों, जिन्हें कि बंद (seal) कर दिया गया है, के भीतर देखा है। 14. भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा किया, उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गई। 15. वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 'तेज-लिंग' का वर्णन आता है।ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था। 16. आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है, एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है। यहां के धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने में। पिछले कुछ सदियों से यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन उपलब्ध हो पा रही है। वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे। 17. आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे। अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था। ओक साहब ने भारतीय प्रामाणिक दस्तावेजो द्वारा इसे मकबरा मानने से इंकार कर दिया है ( क्रम संख्‍या18 से 24 तक) 18. बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था। 19. ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है। पहली बात तो यह है कि शिलालेख उचित व अधिकारिक स्थान पर नहीं है। दूसरी यह कि महिला का नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था न कि मुमताज़ महल। तीसरी, इमारत के 22 वर्ष में बनने की बात सारे मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख कर टॉवेर्नियर नामक एक फ्रांसीसी अभ्यागत के अविश्वसनीय रुक्के से येन केन प्रकारेण ले लिया गया है जो कि एक बेतुकी बात है। 20. शाहजादा औरंगज़ेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृतान्तों में दर्ज किया गया है, जिनके नाम 'आदाब-ए-आलमगिरी', 'यादगारनामा' और 'मुरुक्का-ए-अकब़राबादी' (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगज़ेब ने खुद लिखा है कि मुमताज़ के सातमंजिला लोकप्रिय दफ़न स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगज़ेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये फरमान जारी किया और बादशाह से सिफ़ारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाये। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहज़हाँ के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी। 21. जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को जारी किये गये शाहज़हां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फ़रमानों (नये क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिये घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया। 22. राजस्थान प्रदेश के बीकानेर स्थित लेखागार में शाहज़हां के द्वारा (मुमताज़ के मकबरे तथा कुरान की आयतें खुदवाने के लिये) मरकाना के खदानों से संगमरमर पत्थर और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने बाबत जयपुर के शासक जयसिंह को जारी किये गये तीन फ़रमान संरक्षित हैं। स्पष्टतः शाहज़हां के ताजमहल पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लेने के कारण जयसिंह इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहज़हां के फरमान को नकारते हुये संगमरमर पत्थर तथा (मुमताज़ के मकब़रे के ढोंग पर कुरान की आयतें खोदने का अपवित्र काम करने के लिये) शिल्पी देने के लिये इंकार कर दिया। जयसिंह ने शाहज़हां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा। और इसीलिये पत्थर देने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सुरक्षित स्थानों में छुपा दिया। 23. शाहज़हां ने पत्थर और शिल्पियों की मांग वाले ये तीनों फ़रमान मुमताज़ की मौत के बाद के दो वर्षों में जारी किया था। यदि सचमुच में शाहज़हां ने ताजमहल को 22 साल की अवधि में बनवाया होता तो पत्थरों और शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की मृत्यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती। 24. और फिर किसी भी ऐतिहासिक वृतान्त में ताजमहल, मुमताज़ तथा दफ़न का कहीं भी जिक्र नहीं है। न ही पत्थरों के परिमाण और दाम का कहीं जिक्र है। इससे सिद्ध होता है कि पहले से ही निर्मित भवन को कपट रूप देने के लिये केवल थोड़े से पत्थरों की जरूरत थी। जयसिंह के सहयोग के अभाव में शाहज़हां संगमरमर पत्थर वाले विशाल ताजमहल बनवाने की उम्मीद ही नहीं कर सकता था। विदेशी और यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख द्वारा मत स्‍पष्‍ट करना ( क्रम संख्‍या 25 से 29 तक) 25. टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान', जहाँ पर विदेशी लोग आया करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया था ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। वह आगे और भी लिखता है कि केवल चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने से अधिक खर्च हुआ था। शाहज़हां ने केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में स्थित शिवलिंगों तथा अन्य देवी देवता की मूर्तियों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र का रूप देने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये ही खर्च किया था। मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने और मकब़रे का कपट रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे। 26. एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं। 27. डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है कि मानसिंह का भवन, जो कि आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है, शाहज़हां के समय से भी पहले का एक उत्कृष्ट भवन है। शाहज़हां के दरबार का लेखाजोखा रखने वाली पुस्तक, बादशाहनामा में किस मुमताज़ को उसी मानसिंह के भवन में दफ़नाना दर्ज है। 28. बेर्नियर नामक एक समकालीन फ्रांसीसी अभ्यागत ने टिप्पणी की है कि गैर मुस्लिम लोगों का (जब मानसिंह के भवन को शाहज़हां ने हथिया लिया था उस समय) चकाचौंध करने वाली प्रकाश वाले तहखानों के भीतर प्रवेश वर्जित था। उन्होंने चांदी के दरवाजों, सोने के खंभों, रत्नजटित जालियों और शिवलिंग के ऊपर लटकने वाली मोती के लड़ियों को स्पष्टतः संदर्भित किया है। 29. जॉन अल्बर्ट मान्डेल्सो ने (अपनी पुस्तक `Voyages and Travels to West-Indies' जो कि John Starkey and John Basset, London के द्वारा प्रकाशित की गई है) में सन् 1638 में (मुमताज़ के मौत के केवल 7 साल बाद) आगरा के जन-जीवन का विस्तृत वर्णन किया है परंतु उसमें ताजमहल के निर्माण के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि सामान्यतः दृढ़तापूर्वक यह कहा या माना जाता है कि सन् 1631 से 1653 तक ताज का निर्माण होता रहा है। संस्कृत शिलालेख द्वारा क्रम संख्‍या 30 द्वारा 30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता है। इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है (वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में संरक्षित है) में संदर्भित है, "एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।" शाहज़हां के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया। इस शिलालेख को 'बटेश्वर शिलालेख' नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर में पाया गया था। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम 'तेजोमहालय शिलालेख' होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था। शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports (1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा है, great square black balistic pillar which, with the base and capital of another pillar....now in the grounds of Agra,...it is well known, once stood in the garden of Tajmahal". थॉमस ट्विनिंग की अनुपस्थित गजप्रतिमा के सम्‍बन्‍ध में कथन (क्रम संख्‍या 31) 31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस ट्विनिंग नामक एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक "Travels in India A Hundred Years ago" के पृष्ठ 191 में) लिखता है, "सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ से मैंने पालकी ली और..... बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि गजद्वार ('COURT OF ELEPHANTS') कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।" कुरान की आयतों के पैबन्द (क्रम संख्‍या 32 व 33 द्वारा) 32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है। यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता। 33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है। कुरान के उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है। वैज्ञानिक पद्धति कार्बन 14 द्वारा जाँच 34. ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था। बनावट तथा वास्तुशास्त्रीय तथ्य द्वारा जॉच (क्रम संख्‍या 35 से 39 तक) 35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू मंदिरों जैसा भवन है। हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा मंदिर का ground plan ताज के समान है। 36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है। 37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था। ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण का भी करती थीं। हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं। 38. ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है। स्तम्भों के नींव तथा बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं। हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की सत्ता है। 39. ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं। ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक पैदा कर दिया था। जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर ताजमहल के अधिग्रहण के बाद 'अल्लाह' शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में 'अल्लाह' शब्द कहीं भी नहीं है। अन्‍य असंगतियाँ (क्रमांक 40 से 48 तक) 40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे। 41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है। 42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। 43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जा सकता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है। 44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं। ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये प्रेरित किया था। 45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की लड़ियों को देखने का जिक्र किया है। यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता। ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं। ये इस बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले स्थान पर कपट रूप से बनाया गया। 46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये। 47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका दिया है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था। 48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया जाने लगा। ताजमहल में खजाने वाला कुआँ 49. तथाकथित मस्ज़िद और नक्कारखाने के बीच एक अष्टकोणीय कुआँ है जिसमें पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह हिंदू मंदिरों का परंपरागत खजाने वाला कुआँ है। खजाने के संदूक नीचे की मंजिलों में रखे जाते थे जबकि खजाने के कर्मचारियों के कार्यालय ऊपरी मंजिलों में हुआ करता था। सीढ़ियों के वृतीय संरचना के कारण घुसपैठिये या आक्रमणकारी न तो आसानी के साथ खजाने तक पहुँच सकते थे और न ही एक बार अंदर आने के बाद आसानी के साथ भाग सकते थे, और वे पहचान लिये जाते थे। यदि कभी घेरा डाले हुये शक्तिशाली शत्रु के सामने समर्पण की स्थिति आ भी जाती थी तो खजाने के संदूकों को पानी में धकेल दिया जाता था जिससे कि वह पुनर्विजय तक सुरक्षित रूप से छुपा रहे। एक मकब़रे में इतना परिश्रम करके बहुमंजिला कुआँ बनाना बेमानी है। इतना विशाल दीर्घाकार कुआँ किसी कब्र के लिये अनावश्यक भी है। मुमताज के दफ़न की तारीख अविदित होना (क्रमांक 50 से 51 तक) 50. यदि शाहज़हां ने सचमुच ही ताजमहल जैसा आश्चर्यजनक मकब़रा होता तो उसके तामझाम का विवरण और मुमताज़ के दफ़न की तारीख इतिहास में अवश्य ही दर्ज हुई होती। परंतु दफ़न की तारीख कभी भी दर्ज नहीं की गई। इतिहास में इस तरह का ब्यौरा न होना ही ताजमहल की झूठी कहानी का पोल खोल देती है। 51. यहाँ तक कि मुमताज़ की मृत्यु किस वर्ष हुई यह भी अज्ञात है। विभिन्न लोगों ने सन् 1629,1630, 1631 या 1632 में मुमताज़ की मौत होने का अनुमान लगाया है। यदि मुमताज़ का इतना उत्कृष्ट दफ़न हुआ होता, जितना कि दावा किया जाता है, तो उसके मौत की तारीख अनुमान का विषय कदापि न होता। 5000 औरतों वाली हरम में किस औरत की मौत कब हुई इसका हिसाब रखना एक कठिन कार्य है। स्पष्टतः मुमताज़ की मौत की तारीख़ महत्वहीन थी इसीलिये उस पर ध्यान नहीं दिया गया। फिर उसके दफ़न के लिये ताज किसने बनवाया? आधारहीन प्रेमकथाएँ 52. शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल हैं। न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार है न ही उनके कल्पित प्रेम प्रसंग पर कोई पुस्तक ही लिखी गई है। ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण के बाद उसके आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया। कीमत 53. शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को बनवाया ही नहीं। इसी कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक होने का काल्पनिक अनुमान लगाया जाता है। निर्माणकाल 54. इसी प्रकार से ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान लगाया जाता है। यदि शाहज़हां ने ताजमहल को बनवाया होता तो उसके निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि उसकी प्रविष्टि शाही दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती। भवननिर्माणशास्त्री 55. ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो कि एक तुर्क था, अहमद़ मेंहदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि एक इटालियन था, या शाहज़हां स्वयं। नदारद दस्तावेज़ क्रमांक 56 से 61 56. ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20 हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया। यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा (design drawings), मजदूरों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls), दैनिक खर्च (daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी के बिल और रसीद (bills and receipts of material ordered) आदि दस्तावेज़ शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते। वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी नहीं है। 57. अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे संसार को मानने के लिये मजबूर करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है। 58. शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और बेल का जिक्र आता है। ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में होता है। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों का विशेष प्रयोग होता है। किसी कब्रगाह में केवल छायादार वृक्ष लगाये जाते हैं क्योंकि श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती। ताज के वाटिकाओं में बेल तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था। 59. हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है। 60. मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित करना चाहिये। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज़ का बताया जाता है, यह मोहम्मद पैगम्बर के निर्देश के निन्दनीय अवहेलना है। वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे। शिव मंदिर में, एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में, दो शिव लिंग स्थापित करने का हिंदुओं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर, जो कि अहिल्याबाई के द्वारा बनवाये गये हैं, में देखा जा सकता है। 61. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंदू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। क्रमश:{अगले भाग के लिये यहाँhttps://www.facebook.com/note.php?note_id=339927239350673 क्लिक करेँ }

Monday, 26 March 2012

घाटी के दिल की धड़कन ...............हरिओम पंवार जी द्वारा



काश्मीर जो खुद सूरज के बेटे की रजधानी था
डमरू वाले शिव शंकर की जो घाटी कल्याणी था
काश्मीर जो इस धरती का स्वर्ग बताया जाता था
जिस मिट्टी को दुनिया भर में अर्ध्य चढ़ाया जाता था
काश्मीर जो भारतमाता की आँखों का तारा था
काश्मीर जो लालबहादुर को प्राणों से प्यारा था
काश्मीर वो डूब गया है अंधी-गहरी खाई में
फूलों की खुशबू रोती है मरघट की तन्हाई में

ये अग्नीगंधा मौसम की बेला है
गंधों के घर बंदूकों का मेला है
मैं भारत की जनता का संबोधन हूँ
आँसू के अधिकारों का उदबोधन हूँ
मैं अभिधा की परम्परा का चारण हूँ
आजादी की पीड़ा का उच्चारण हूँ

इसीलिए दरबारों को दर्पण दिखलाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

बस नारों में गाते रहियेगा कश्मीर हमारा है
छू कर तो देखो हिम छोटी के नीचे अंगारा है
दिल्ली अपना चेहरा देखे धूल हटाकर दर्पण की
दरबारों की तस्वीरें भी हैं बेशर्म समर्पण की

काश्मीर है जहाँ तमंचे हैं केसर की क्यारी में
काश्मीर है जहाँ रुदन है बच्चों की किलकारी में
काश्मीर है जहाँ तिरंगे झण्डे फाड़े जाते हैं
सैंतालिस के बंटवारे के घाव उघाड़े जाते हैं
काश्मीर है जहाँ हौसलों के दिल तोड़े जाते हैं
खुदगर्जी में जेलों से हत्यारे छोड़े जाते हैं

अपहरणों की रोज कहानी होती है
धरती मैया पानी-पानी होती है
झेलम की लहरें भी आँसू लगती हैं
गजलों की बहरें भी आँसू लगती हैं

मैं आँखों के पानी को अंगार बनाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

काश्मीर है जहाँ गर्द में चन्दा-सूरज- तारें हैं
झरनों का पानी रक्तिम है झीलों में अंगारे हैं
काश्मीर है जहाँ फिजाएँ घायल दिखती रहती हैं
जहाँ राशिफल घाटी का संगीने लिखती रहती हैं
काश्मीर है जहाँ विदेशी समीकरण गहराते हैं
गैरों के झण्डे भारत की धरती पर लहरातें हैं

काश्मीर है जहाँ देश के दिल की धड़कन रोती है
संविधान की जहाँ तीन सौ सत्तर अड़चन होती है
काश्मीर है जहाँ दरिंदों की मनमानी चलती है
घर-घर में ए. के. छप्पन की राम कहानी चलती है
काश्मीर है जहाँ हमारा राष्ट्रगान शर्मिंदा है
भारत माँ को गाली देकर भी खलनायक जिन्दा है
काश्मीर है जहाँ देश का शीश झुकाया जाता है
मस्जिद में गद्दारों को खाना भिजवाया जाता है

गूंगा-बहरापन ओढ़े सिंहासन है
लूले - लंगड़े संकल्पों का शासन है
फूलों का आँगन लाशों की मंडी है
अनुशासन का पूरा दौर शिखंडी है

मै इस कोढ़ी कायरता की लाश उठाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

हम दो आँसू नहीं गिरा पाते अनहोनी घटना पर
पल दो पल चर्चा होती है बहुत बड़ी दुर्घटना पर
राजमहल को शर्म नहीं है घायल होती थाती पर
भारत मुर्दाबाद लिखा है श्रीनगर की छाती पर
मन करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर
भारत के बेटे निर्वासित हैं अपनी ही धरती पर

वे घाटी से खेल रहे हैं गैरों के बलबूते पर
जिनकी नाक टिकी रहती है पाकिस्तानी जूतों पर
काश्मीर को बँटवारे का धंधा बना रहे हैं वो
जुगनू को बैसाखी देकर चन्दा बना रहे हैं वो
फिर भी खून-सने हाथों को न्योता है दरबारों का
जैसे सूरज की किरणों पर कर्जा हो अँधियारों का

कुर्सी भूखी है नोटों के थैलों की
कुलवंती दासी हो गई रखैलों की
घाटी आँगन हो गई ख़ूनी खेलों की
आज जरुरत है सरदार पटेलों की

मैं घाटी के आँसू का संत्रास मिटाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

जब चौराहों पर हत्यारे महिमा-मंडित होते हों
भारत माँ की मर्यादा के मंदिर खंडित होते हों
जब क्रश भारत के नारे हों गुलमर्गा की गलियों में
शिमला-समझौता जलता हो बंदूकों की नालियों में

अब केवल आवश्यकता है हिम्मत की खुद्दारी की
दिल्ली केवल दो दिन की मोहलत दे दे तैय्यारी की
सेना को आदेश थमा दो घाटी ग़ैर नहीं होगी
जहाँ तिरंगा नहीं मिलेगा उनकी खैर नहीं होगी

जिनको भारत की धरती ना भाती हो
भारत के झंडों से बदबू आती हो
जिन लोगों ने माँ का आँचल फाड़ा हो
दूध भरे सीने में चाकू गाड़ा हो

मैं उनको चौराहों पर फाँसी चढ़वाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
चाँद-सितारे टांक लिये हैं खून लिपि दीवारों ने
इसीलियें नाकाम रही हैं कोशिश सभी उजालों की
क्योंकि ये सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की
अंतिम एक चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को
गीदड़ कायरता ना समझे सिंहो की ख़ामोशी को

हमको अपने खट्टे-मीठे बोल बदलना आता है
हमको अब भी दुनिया का भूगोल बदलना आता है
दुनिया के सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते
भारत की प्रभुसत्ता के वो ठेकेदार नहीं लगते
तीर अगर हम तनी कमानों वाले अपने छोड़ेंगे
जैसे ढाका तोड़ दिया लौहार-कराची तोड़ेंगे

आँख मिलाओ दुनिया के दादाओं से
क्या डरना अमरीका के आकाओं से
अपने भारत के बाजू बलवान करो
पाँच नहीं सौ एटम बम निर्माण करो

मै भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन निकला हूँ ||
इसे पूर्ण सामर्थ के साथ फैलाएं ....ताकि हर हिन्दू के मस्तिष्क पे चन्दन का तेज दिखाई दे !

हमारे धर्मं चन्दन के तिलक का बहुत महत्व बताया गया है आइये जानते इसके बैज्ञानिक कारण और इसे कैसे लगाया जाता है !!

भगवान को चंदन अर्पण

भगवान को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करे। अक्सर उत्तेजना में काम बिगड़ता है। चंदन लगाने से उत्तेजना काबू में आती है। चंदन का तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंदन का तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है। मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट विकार नहीं होता।

मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें ।

तिलक का महत्व

हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्द्ेश्य से भी लगाया जाता है ।

चन्दन लगाने के प्रकार

स्नान एवं धौत वस्त्र धारण करने के उपरान्त वैष्णव ललाट पर ऊर्ध्वपुण्ड्र, शैव त्रिपुण्ड, गाणपत्य रोली या सिन्दूर का तिलक शाक्त एवं जैन क्रमशः लाल और केसरिया बिन्दु लगाते हैं। धार्मिक तिलक स्वयं के द्वारा लगाया जाता है, जबकि सांस्कृतिक तिलक दूसरा लगाता है।

नारद पुराण में उल्लेख आया है-
१. ब्राह्मण को ऊर्ध्वपुण्ड्र,
२. क्षत्रिय को त्रिपुण्ड,
३. वैश्य को अर्धचन्द्र,
४. शुद्र को वर्तुलाकार चन्दन से ललाट को अंकित करना चाहिये।

योगी सन्यासी ऋषि साधकों तथा इस विषय से सम्बन्धित ग्रन्थों के अनुसार भृकुटि के मध्य भाग देदीप्यमान है।

१.ऊर्ध्वपुण्ड्र चन्दन - वैष्णव सम्प्रदायों का कलात्मक भाल तिलक ऊर्ध्वपुण्ड्र कहलाता है। चन्दन, गोपीचन्दन, हरिचन्दन या रोली से भृकुटि के मध्य में नासाग्र या नासामूल से ललाट पर केश पर्यन्त अंकित खड़ी दो रेखाएं ऊर्ध्वपुण्ड्र कही जाती हैं। |


वैष्णव ऊर्ध्वपुण्ड्र के विषय में पुराणों में दो प्रकार की मान्यताएं मिलती हैं।

नारद पुराण में - इसे विष्णु की गदा का द्योतक माना गया है.

ऊर्ध्वपुण्ड्रोपनिषद में - ऊर्ध्वपुण्ड्र को विष्णु के चरण पाद का प्रतीक बताकर विस्तार से इसकी व्याख्या की है। |

पुराणों में - ऊर्ध्वपुण्ड्र की दक्षिण रेखा को विष्णु अवतार राम या कृष्ण के "दक्षिण चरण तल" का प्रतिबिम्ब माना गया है, जिसमें वज्र, अंकुश, अंबर, कमल, यव, अष्टकोण, ध्वजा, चक्र, स्वास्तिक तथा ऊर्ध्वरेख है.

तथा ऊर्ध्वपुण्ड्र की बायीं केश पर्यन्त रेखा विष्णु का "बायाँ चरण तल" है जो गोपद, शंख, जम्बूफल, कलश, सुधाकुण्ड, अर्धचन्द्र, षटकोण, मीन, बिन्दु, त्रिकोण तथा इन्द्रधनुष के मंगलकारी चिन्हों से युक्त है।

इन मंगलकारी चिन्हों के धारण करने से वज्र से - बल तथा पाप संहार, अंकुश से - मनानिग्रह, अम्बर से - भय विनाश, कमल से - भक्ति, अष्टकोण से - अष्टसिद्धि, ध्वजा से - ऊर्ध्व गति, चक्र से - शत्रुदमन, स्वास्तिक से- कल्याण, ऊर्ध्वरेखा से - भवसागर तरण, पुरूष से - शक्ति और सात्त्विक गुणों की प्राप्ति, गोपद से - भक्ति, शंख से - विजय और बुद्धि से - पुरूषार्थ, त्रिकोण से - योग्य, अर्धचन्द्र से - शक्ति, इन्द्रधनुष से - मृत्यु भय निवारण होता है।

2. त्रिपुण्ड चन्दन - विष्णु उपासक वैष्णवों के समान ही शिव उपासक ललाट पर भस्म या केसर युक्त चन्दन द्वारा भौहों के मध्य भाग से लेकर जहाँ तक भौहों का अन्त है उतना बड़ा त्रिपुण्ड और ठीक नाक के ऊपर लाल रोली का बिन्दु या तिलक धारण करते हैं। मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से तीन रेखाएँ तथा बीच में रोली का अंगुष्ठ द्वारा प्रतिलोम भाव से की गई रेखा त्रिपुण्ड कहलाती है।

शिवपुराण में त्रिपुण्ड को योग और मोक्ष दायक बताया गया है। शिव साहित्य में त्रिपुण्ड की तीन रेखाओं के नौ-नौ के क्रम में सत्ताईस देवता बताए गये हैं। वैष्णव द्वादय तिलक के समान ही त्रिपुण्ड धारण करने के लिये बत्तीस या सोलह अथवा शरीर के आठ अंगों में लगाने का आदेश है तथा स्थानों एवं अवयवों के देवों का अलग-अलग विवेचन किया गया है। शैव ग्रन्थों में विधिवत त्रिपुण्ड धारण कर रूद्राक्ष से महामृत्युजंय का जप करने वाले साधक के दर्शन को साक्षात रूद्र के दर्शन का फल बताया गया है।

अप्रकाशिता उपनिषद के बहिवत्रयं तच्च जगत् त्रय, तच्च शक्तित्रर्य स्यात् द्वारा तीन अग्नि, तीन जगत और तीन शक्ति ज्ञान इच्छा और क्रिया का द्योतक बताकर कहा है कि जिसने त्रिपुण्ड धारण कर रखा है, उसे देवात् कोई देख ले तो वह सभी बाधाओं से विमुक्त हो जाता है। त्रिपुण्ड के बीच लाल तिलक या बिन्दु कारण तत्त्व बिन्दु माना जाता है। गणेश भक्त गाणपत्य अपनी भुजाओं पर गणेश के एक दाँत की तप्त मुद्रा दागते हैं तथा गणपति मुख की छाप लगाकर मस्तक पर लाल रोली या सिन्दूर का तिलक धारण कर गजवदन की उपासना करते हैं।

चन्दन के प्रकार

१. हरि चन्दन - पद्मपुराण के अनुसार तुलसी के काष्ठ को घिसकर उसमें कपूर, अररू या केसर के मिलाने से हरिचन्दन बनता है।

२. गोपीचन्दन- गोपीचन्दन द्वारका के पास स्थित गोपी सरोवर की रज है, जिसे वैष्णवों में परम पवित्र माना जाता है। स्कन्द पुराण में उल्लेख आया है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों की भक्ति से प्रभावित होकर द्वारका में गोपी सरोवर का निर्माण किया था, जिसमें स्नान करने से उनको सुन्दर का सदा सर्वदा के लिये स्नेह प्राप्त हुआ था। इसी भाव से अनुप्रेरित होकर वैष्णवों में गोपी चन्दन का ऊर्ध्वपुण्ड्र मस्तक पर लगाया जाता है।

इसी पुराण के पाताल खण्ड में कहा गया है कि गोपीचन्दन का तिलक धारण करने मात्र से ब्राह्मण से लेकर चांडाल तक पवित्र हो जाता है। जिसे वैष्णव सम्प्रदाय में गोपी चन्दन के समान पवित्र माना गया है.

स्कन्दपुराण में गोमती, गोकुल और गोपीचन्दन को पवित्र और दुर्लभ बताया गया है तथा कहा गया है कि जिसके घर में गोपीचन्दन की मृत्तिका विराजमान हैं, वहाँ श्रीकृष्ण सहित द्वारिकापुरी स्थित है।

सामान्य तिलक का आकार

धार्मिक तिलक के समान ही हमारे पारिवारिक या सामाजिक चर्या में तिलक इतना समाया हुआ है कि इसके अभाव में हमारा कोई भी मंगलमय कार्य हो ही नहीं सकता। इसका रूप या आकार दीपक की ज्याति, बाँस की पत्ती, कमल, कली, मछली या शंख के समान होना चाहिए। धर्म शास्त्र के ग्रन्थों के अनुसार इसका आकार दो से दस अंगुल तक हो सकता है। तिलक से पूर्व ‘श्री’ स्वरूपा बिन्दी लगानी चाहिये उसके पश्चात् अंगुठे से विलोम भाव से तिलक लगाने का विधान है। अंगुठा दो बार फेरा जाता है।

किस उँगली से लगाना चाहिये

ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार तिलक में "अंगुठे के प्रयोग से - शक्ति, मध्यमा के प्रयोग से - दीर्घायु, अनामिका के प्रयोग से- समृद्धि तथा तर्जनी से लगाने पर - मुक्ति प्राप्त होती है" तिलक विज्ञान विषयक समस्त ग्रन्थ तिलक अंकन में नाखून स्पर्श तथा लगे तिलक को पौंछना अनिष्टकारी बतलाते हैं।

देवताओं पर केवल अनामिका से तिलक बिन्दु लगाया जाता है। तिलक की विधि सांस्कृतिक सौन्दर्य सहित जीवन की मंगल दृष्टि को मनुष्य के सर्वाधिक मूल्यवान् तथा ज्ञान विज्ञान के प्रमुख केन्द्र मस्तक पर अंकित करती है।

तिलक के मध्य में चावल

तिलक के मध्य में चावल लगाये जाते हैं। तिलक के चावल शिव के परिचायक हैं। शिव कल्याण के देवता हैं जिनका वर्ण शुक्ल है। लाल तिलक पर सफेद चावल धारण कर हम जीवन में शिव व शक्ति के साम्य का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। इच्छा और क्रिया के साथ ज्ञान का समावेश हो। सफेद गोपी चन्दन तथा लाल बिन्दु इसी सत्य के साम्य का सूचक है। शव के मस्तक पर रोली तिलक के मध्य चावल नहीं लगाते, क्योंकि शव में शिव तत्त्व तिरोहित है। वहाँ शिव शक्ति साम्य की मंगल कामना का कोई अर्थ ही नहीं है।

Saturday, 24 March 2012

                                 जय माता दी 
                         सरदार वल्लभभाई  पटेल कृषि एवं प्रोधोगिकी विश्वविधालय मेरठ - २५०११०
 नवरात्री के शुभ अवसर पर विश्वविधालय के शिव-दुर्गा मंदिर में दिनांक २३/०३/२०१२ से ०१/०४ /२०१२ तक पूजन का आयोजन हो रहा है!
    समस्त छात्र - छात्राओ से आग्रह  है की दुर्गा पूजन में तन-मन-धन  से योगदान  करने की कृपा करे! जिस से दुर्गा पूजन को सफल बनाया जा सके!

                                                                     कार्यक्रम
१. आरती का समय प्रात: ०७:०० , शाम ०६:१५ !
२. दुर्गा जागरण दिनांक ३०/०३/२०१२, समय दोपहर ०४:०० से रात्रि ०८:०० तक!
३. हवन एवं प्रसाद वितरण ०१/०४/२०१२ को संपन्न होगा!

निवेदक:                              मंदिर पुजारी:                                        व्यस्थापक:
अंकित गंगवार,                   पंडित विक्रम प्रसाद भट्ट                      अंकित कटियार,
अमित पाल,                                                                                    राजकुमार पाल,
नैमिष गुप्ता,                                                                                    दिनेश कुमार,
सुमित  कुमार !                                                                               अमित यादव!

नोट:  जो छात्र - छात्राये भजन कीर्तन गाना चाहते हैं वो संपर्क करे- पंडित विक्रम प्रसाद भट्ट!