बदल रहे हैं रस्ते सबके
सबकी मंजिल अलग अलग है
कल जहाँ मिले थे,
रुके थे दो पल,
मंजिल के सपने देखे थे,
साथ चले थे चार कदम;
छूट गया है मोड़ वो पीछे,
आगे आगे सब चलते हैं!
आँखें भीगीं, मन कहता है
सपने सच हों सब यारों के
सबको मंजिल हो हासिल
पर,
चार कदम जो साथ चले थे
उन लम्हों का प्यार ना छूटे!
दिल ना टूटें उन लोगों के,
दिल से दिल के तार ना टूटें!
किसे पता, कब चलते चलते रस्ते फिर से मिल जायेंगे!
कौनसी मंजिल की तलाश में, हम तुम फिर से टकरायेंगे!
तब क्या तुम मुझको पहचानोगे?
क्या मैं तुमको पहचानूँगा?
पहचान बने सबकी दुनिया में
पर आपस के पहचान ना छूटे!
दिल से दिल के तार ना टूटें!
मोहित गंगवार...
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