Monday, 20 February 2012

" मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रु...खाई कभी मत देना। "

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ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।

जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,

किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।

जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।

ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।

भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।

धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,

किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।

न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।

मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
कितनी बार कुछ धरम और संस्कृति आधारित सवालों पर
कूल ड्यूड और लो वेस्ट जींस पहन कर युवा अपना ऐसा बात
कहते हैं जैसे कोई पोप ,परम हंस या कोई इमाम हो ........
मुह से शराब की बॉस आ रही है लेकिन संस्कृति और धरम
को गरियाये जा रहे हैं ........
५ दिन से नहाये नहीं हैं लेकिन पूछते हैं मंदिर जाने से क्या फायदा ......
गर्लफ्रेंड को पिक्चर दिखा के आ रहे हैं कोई साधू
मिला तो कह दिया ......अरे तुम नहीं जानती हो जान ये
ढोंगी है .......
फिल्म के गानों को सुन रहे है, सुनते - सुनते सो गए,सुबह
पैखाने में भी लगा है ईयर फ़ोन ,फिर बस में भी ......और हनुमान चालीसा और वन्देमातरम् के लिए...अरे बचपन में याद था भूल
गयी ....... भाई एक बात बताओ ......५ साल की उम्र से पढ़ रहे
हो .....गणित,विज्ञान ,अंग्रेजी घिस रहे हो .......कोचिंग
में चूस रहे हो .......कालेज में पक रहे हो......फिर भी परीक्षाओं में
नप रहे हो ..........
तो जब आज तक वेद की एक ऋचा नहीं पता ,मानस की चौपाई
नहीं पता ,गीता का श्लोक नहीं पता , ....तो फिर भाई ......क्यों बोलते हो ऐसे की जैसे परमहंस हो .......
यार,आध्यात्म का उदय श्रद्धा और विश्वास से
होता है ...."भवानी शंकरौ बन्दे श्रद्धा विश्वास
रुपिणौ".....और ये ज्ञान से मिलेगा ..........जब शुरू
करोगे ....ज्यादा नहीं ५ मिनट सही ...शुरू तो करो .......
कृपया तार्किक बनें ...स्वागत है लेकिन अपने को सीमाओं में रखते हुए .........हो सकता है की अगले व्यक्ति ने ...जो आप के
सामने खड़ा हो .....साधारण सा .....अपना जीवन
दिया हो उसको समझने में .... साभार---"खून स्याही में उबलने दे

Friday, 17 February 2012

जय जय सियाराम , जय जय श्री राधेकृष्ण , जय जय सनातन संस्कृति , जय जय माँ भारती
अगर हर वस्तु हर कण में भगवा होता तो कैसा होता ?


हर पत्ता हर कण राम राम का गुणगान करता |
जिस तरफ नज़र जाती भगवा ही भगवा नज़र आता ||

हर बृक्ष भगवा होता हर फल भगवा होता |
हर शाख भगवा होती हर फूल भगवा होता ||

हर पर्वत भगवा बन सीना ताने मुस्कुराता |
हर गलीचा जैसे माँ भारती का दामन नज़र आता ||

आकाश में जब पक्षी भगवा रंग में दीखते |
मन प्रफुलित हो श्री राम श्री राम चिल्लाता ||

हर मंदिर पर भगवा ध्वज ध्वज होता |
ना होती कोई मस्जिद ना कोई चर्च नज़र आता ||

साधू संतो की संगत होती सत्संग में रस समता |
श्री राम श्री कृष्ण के जयकारो से पूरा विश्व गूंज जाता ||

जैसे मेरा तन है भगवा मेरा मन है भगवा |
मैं मिलता जब माटी में तो उसका रंग भी होता भगवा ||

_________________________ जीत शर्मा " मानव "

भाई पंकज की प्रेरणा से .........

जय जय सियाराम , जय जय श्री राधेकृष्ण , जय जय सनातन संस्कृति , जय जय माँ भारती

Wednesday, 15 February 2012

♥ एक सुन्दर कविता ♥



ये बात समझ मेँ आयी नहीँ,
और मम्मी ने समझाई नहीँ।

मैँ कैसे मीठी बात करुँ?
जब मीठी चीज कोई खाई नहीँ।

ये चाँद भी कैसा मामू है?
जब मम्मी का वो भाई नहीँ।

क्योँ लम्बे बाल हैँ भालू के?
क्योँ उसने ट्रिमिँग कराई नहीँ?

क्या वो भी गंदा बच्चा है?
या जंगल मेँ कोई नाई नहीँ।

नाना की पत्नी जब नानी है, दादा की पत्नी दादी है,
तब पापा की पत्नी क्योँ पापी नहीँ?

समुन्दर का रंग क्योँ नीला है?
जब नील किसी ने मिलाई नहीँ।

जब स्कूल मेँ इतनी नीँद आती है,
तो क्यूँ बैड वहाँ रखवाई नहीँ?

ये बात समझ मेँ आयी नहीँ,
और मम्मी ने समझाई नहीँ;)

Tuesday, 14 February 2012

एक पिता का ख़त अपने फौजी बेटे के नाम

एक पिता का ख़त अपने फौजी बेटे के नाम
........................................................
अक्सर तेरे खतों को सीने से लगा देती है माँ तेरी
तुझे याद करके चुपके से आसू बहा देती है माँ तेरी
तेरे आने का आसरा देकर में अपनी बुढ़ी टांगो को समझाता हूँ
जब दर्द बहुत बढ जाता हैं अपनी टांगो को खुद ही दबा देता हूँ
त्योहारों पर अक्सर तेरी कमी हमेशा मुझे खल ही जाती हैं
सरहद पर जंग छिड़ी है सुनके अक्सर तेरी बहन सहम जाती हैं
खेत खलियानों में अब फसले भी कम ही खिला करती हैं
गावं की सुनी सड़के आज भी तेरा इंतज़ार अक्सर करती हैं
चाहे कुछ भी हो में तुझे कभी वापस गावं ना बुलाउंगा
याद है तूने कहा था इस मिटटी में जनम लिया है मैंने
इस वतन की मिटटी में ही में अपनी जान लुटाऊंगा
.........जय हिंद वन्दे मातरम् जय भारत ..............

-- सुनील "सोनू"
By: Indian Army Fans

Saturday, 4 February 2012

यारों! शादी मत करना :-

यारों! शादी मत करना, ये है मेरी अर्ज़ी
फिर भी हो जाए तो ऊपर वाले की मर्ज़ी।

लैला ने मजनूँ से शादी नहीं रचाई थी
शीरी भी फरहाद की दुल्हन कब बन पाई थी
सोहनी को महिवाल अगर मिल जाता, तो क्या होता
कुछ न होता बस परिवार नियोजन वाला रोता
होते बच्चे, सिल-सिल कच्छे, बन जाता वो दर्ज़ी।

सक्सेना जी घर में झाड़ू रोज़ लगाते हैं
वर्मा जी भी सुबह-सुबह बच्चे नहलाते हैं
गुप्ता जी हर शाम ढले मुर्गासन करते हैं
कर्नल हों या जनरल सब पत्नी से डरते हैं
पत्नी के आगे न चलती, मंत्री की मनमर्ज़ी।

बड़े-बड़े अफ़सर पत्नी के पाँव दबाते हैं
गूंगे भी बेडरूम में ईलू-ईलू गाते हैं
बहरे भी सुनते हैं जब पत्नी गुर्राती है
अंधे को दिखता है जब बेलन दिखलाती है
पत्नी कह दे तो लंगड़ा भी, दौड़े इधर-उधर जी।

पत्नी के आगे पी.एम., सी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे सी एम, डी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे डी. एम. चपरासी होता है
पत्नी पीड़ित पहलवान बच्चों सा रोता है
पत्नी जब चाहे फुड़वा दे, पुलिसमैन का सर जी।

पति होकर भी लालू जी, राबड़ी से नीचे हैं
पति होकर भी कौशल जी, सुषमा के पीछे है
मायावती कुँवारी होकर ही, सी.एम. बन पाई
क्वारी ममता, जयललिता के जलवे देखो भाई
क्वारे अटल बिहारी में, बाकी खूब एनर्जी।
पत्नी अपनी पर आए तो, सब कर सकती है
कवि की सब कविताएं, चूल्हे में धर सकती है
पत्नी चाहे तो पति का, जीना दूभर हो जाए
तोड़ दे करवाचौथ तो पति, अगले दिन ही मर जाए
पत्नी चाहे तो खुदवा दे, घर के बीच क़बर जी।
शादी वो लड्डू है जिसको, खाकर जी मिचलाए
जो न खाए उसको, रातों को, निंदिया न आए
शादी होते ही दोपाया, चोपाया होता है
ढेंचू-ढेंचू करके बोझ, गृहस्थी का ढोता है
सब्ज़ी मंडी में कहता है, कैसे दिए मटर जी...............
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।
।। भारत माता की जय ।।
प्रार्थना का हिन्दी में अर्थ
हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम कर काँटों रहित करेंगे।
ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।
भारत माता की जय।
हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।
हे महा मंगला पुण्यभूमि ! तुझ पर न्योछावर तन हजार।।
हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;
तेरा ऋण इतना है कि चुका, सकता न जन्म ले एक बार।
हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिंदुराष्ट्र के सभी घटक,
तुझको सादर श्रद्धा समेत, कर रहे कोटिशः नमस्कार।।
तेरा ही है यह कार्य हम सभी, जिस निमित्त कटिबद्ध हुए;
वह पूर्ण हो सके ऐसा दे, हम सबको शुभ आशीर्वाद।
सम्पूर्ण विश्व के लिये जिसे, जीतना न सम्भव हो पाये;
ऐसी अजेय दे शक्ति कि जिससे, हम समर्थ हों सब प्रकार।।
दे ऐसा उत्तम शील कि जिसके, सम्मुख हो यह जग विनम्र;
दे ज्ञान जो कि कर सके सुगम, स्वीकृत कन्टक पथ दुर्निवार।
कल्याण और अभ्युदय का, एक ही उग्र साधन है जो;
वह मेरे इस अन्तर में हो, स्फुरित वीरव्रत एक बार।।
जो कभी न होवे क्षीण निरन्तर, और तीव्रतर हो ऐसी;
सम्पूर्ण ह्र्दय में जगे ध्येय, निष्ठा स्वराष्ट्र से बढे प्यार।
निज राष्ट्र-धर्म रक्षार्थ निरन्तर, बढ़े संगठित कार्य-शक्ति;
यह राष्ट्र परम वैभव पाये, ऐसा उपजे मन में विचार।।
वंदे मातरम...
एक भारतीय सियाचिन सैनिक का अपनी मरी हुई माँ को लिखा हुआ खत-

प्रणाम माँ,

माँ बचपन में मैं जब भी रोते रोते सो जाया करता था तो तू चुपके से मेरे
सिरहाने खिलोने रख दिया करती थी और कहती थी की ऊपर से एक परी ने आके रखा
है और कह गई है की अगर मैं फिर कभी रोया तो और खिलोने नहीं देगी !

लेकिन इस मरते हुए देश का सैनिक बनके रो तो मैं आज भी रहा हूँ पर अब ना तू आती
है और ना तेरी परी ! परी क्या .. यहाँ ढाई हजार मीटर ऊपर तो परिंदा भी
नहीं मिलता !

मात्र 14 हज़ार रुपए के लिए मुझे कड़े अनुशासन में रखा जाता है, लेकिन वो
अनुशासन ना इन भ्रष्ट नेताओं के लिए है और ना इन मनमौजी देशवासियों के
लिए !

रात भर जगते तो हम भी हैं लेकिन अपनी देश की सुरक्षा के लिए लेकिन वो
जगते हैं लेट नाईट पार्टी के लिए !

हम इस -12 डिग्री में आग जला के अपने आप को गरम करते हैं . लेकिन हमारे
देश के नेता हमारे ही पोशाकों, कवच, बन्दूकों, गोलियों और जहाजों में
घोटाले करके अपनी जेबे गरम करते हैं !

आतंकियों से मुठभेड़ में मरे हुए सैनिकों की संख्या को न्यूज़ चैनल में नहीं
दिखाया जाता लेकिन सचिन के शतक से पहले आउट हो जाने को देश के राष्ट्रिय
शोक की तरह दिखाया जाता है !

हर चार-पाँच सालों ने हमें एक जगह से दूसरी जगह उठा के फेंक दिया जाता है
लेकिन यह नेता लाख चोरी करलें बार बार उसी विधानसभा - संसद में पहुंचा
दिए जाते हैं !

मैं किसी आतंकी को मार दूँ तो पूरी राजनितिक पार्टियां वोट के लिए उसे
बेकसूर बना के मुझे कसूरवार बनाने में लग जाती हैं लेकिन वो आये दिन अपने
अपने भ्रष्टाचारो से देश को आये दिन मारते हैं, कितने ही लोग भूखे मरते
हैं, कितने ही किसान आत्महत्या करते हैं, कितने ही बच्चे कुपोषण का शिकार
होते हैं. लेकिन उसके लिए इन नेताओं को जिम्मेवार नहीं ठहराया जाता !

नीचे अल्पसंख्यको के नाम पर आरक्षण बाँटा जा रहा है लेकिन आज तक मरे हुए
शहीद सैनिकों की संख्या के आधार पर कभी किसी वर्ग को आरक्षण नहीं दिया
गया.

मैं दुखी हूँ इस मरे हुए संवेदनहीन देश का सैनिक बनके ! यह हमें केवल याद
करते हैं 26 जनवरी को और 15 अगस्त को ! बाकी दिन तो इनको शाहरुख़, सलमान,
सचिन, युवराज की फ़िक्र रहती है !

हमारी हालत ठीक वैसे ही उस पागल किसान की तरह है जो अपने मरे हुए बेल पर
भी कम्बल डाल के खुद ठंड में ठिठुरता रहता है !

मैंने गलती की इस देश का रक्षक बनके !
तू भगवान् के ज्यादा करीब है तो उनसे कह देना की अगले जन्म में मुझे अगर
इस देश में पैदा करे तो सेनिक ना बनाए और अगर सैनिक बनाए तो इस देश में
पैदा ना करे !

यहाँ केवल परिवार वाद चलता है, अभिनेता का बेटा जबरदस्ती अभिनेता बनता है
और नेता का बेटा जबरदस्ती नेता !

प्रणाम-
लखन सिंह (मरे हुए देश का जिन्दा सेनिक) !
भारतीय सैनिक सियाचिन