Thursday, 24 November 2011

ग्रन्थ 'रामावतारचरित' के युद्धकांड प्रकरण में उपलब्ध एक अत्यंत अद्भुत और विरल प्रसंग 'मक्केश्वर लिंग' से संबंधित हैं, जो प्राय: अन्य रामायणों में नहीं मिलता है। वह प्रसंग जितना दिलचस्प है, उतना ही गुदगुदानेवाला भी। शिव रावण द्वारा याचना करने पर उसे युद्ध में विजयी होने के लिए एक लिंग (मक्केश्वर महादेव) दे देते हैं और कहते हैं कि जा, यह तेरी रक्षा करेगा, मगर ले जाते समय इसे मार्ग में कहीं पर भी धरती पर नहीं रखना।
लिंग को अपने हाथों में आदरपूर्वक थामकर रावण आकाशमार्ग द्वारा लंका की ओर प्रयाण करते हैं। रास्ते में उन्हें लघुशंका की आवश्यकता होती है। वे आकाश से नीचे उतरते हैं तथा इस असमंजस में पड़ते हैं कि लिंग को कहाँ रखें? तभी ब्राह्मण वेश में नारद मुनि वहाँ पर प्रगट होते हैं, जो रावण की दुविधा भाँप जाते हैं। रावण लिंग उनके हाथों में यह कहकर पकड़ाकर जाते हैं कि वे अभी निवृत्त हो कर आ रहे हैं। रावण लघु-शंका से निवृत्त हो ही नहीं पाता! संभवत: वह प्रभु की लीला थी। काफ़ी देर तक प्रतीक्षा करने के उपरांत नारद जी लिंग धरती पर रखकर चले जाते हैं। तब रावण के खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं है और इस प्रकार शिव द्वारा प्रदत्त लिंग की शक्ति का उपयोग करने से रावण वंचित हो जाता है।(पृ.-295-297)

यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है इसका उल्लेख श्रीमद्भागवत में मिलता है श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस के विनाश किया था यह यमन राज्य उसी द्वीप पर स्थित है

भगवान शिव के जितने रूप और उपासना के जितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वे अवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवान शिव की प्रतिष्ठा पूरे संसार में ही फैली हुई है। उनके विविध रूपों को पूजने का सदा से ही प्रचलन रहा है। शिव के मंदिर अफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकर मिस्र, ब्राजील, तुर्किस्तान के बेबीलोन, स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका, चीन, जापान, कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा तक हर जगह पाए गए हैं। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में संग अवसाद के यप में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनस मंदिर के सामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था। यूरोपियन फणिश और इबरानी जाति के पूर्वज बालेश्वर लिंड के पूजक थे। बाईबिल में इसका शिउन के रूप में उल्लेख हुआ है।

कई वर्ष बीत गए है मक्केश्वर महादेव की पूजा बिल्वपत्र व गंगा जल से नही हुई है जय जय शिव शम्भो महादेव शम्भो| सभी एक स्वर में बोलिए मक्केश्वर महादेव की जय



मोहित गंगवार...

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