Monday, 26 January 2015


फिल्म "बेबी" और भारतीय सिनेमा की जिम्मेदारियों के सन्दर्भ में मेरी ताज़ा रचना,



"pk बनाम BABY"


हमने जब pk देखी थी दिल में बहुत उदासी थी,
शिव जी के लज्जित द्रश्यों पर ख़ानों की अय्याशी थी,


किसे जरूरी था दिखलाना,किन्तु किसे दिखला बैठे,
और सिनेमा वाले जायज़ मुद्दे ही झुठला बैठे,
देश का संकट नही सिर्फ है मंदिर में पूजा करना,
या फिर श्रध्दा से लोटे में गंगा के जल को भरना,

लेकिन कुछ नायक नंगे होकर किरदारी भूल गए,
ज़िम्मेदार सिनेमा वाले ज़िम्मेदारी भूल गए,

"बेबी"फिल्म बनाने वालों ने अच्छा उपकार किया,
टूट चुकी आशाओं का कितना बेहतर उपचार किया,

अवसर दिया सभी को सब कुछ सच्चा सच्चा देख सके,
वही दिखाया जिसे देश का बच्चा बच्चा देख सके ,

सबसे बड़ी समस्या जो है,उसका हाल दिखाया है,
बिना मज़हबी ज्ञान दिए,भारत से प्रेम सिखाया है,

नहीं ज़रुरत पड़ी दुसरे गृह से लोग बुलाने की,
या फिर नायक को कोठे वाली के साथ सुलाने की,

सैनिक का जीना मरना उनके मकसद के किस्से थे,
सिर्फ वतन की बात बताते,रील के हिस्से हिस्से थे,

इसको ही हिम्मत कहते है,जो बेबी ने दिखलाया,
दहशत की असली जगहों का नाम पता भी बतलाया,

हिम्मत ही तो है जो जीता अरब देश की खाड़ी को,
एक द्रश्य में मुंडवा डाला मौलाना की दाढ़ी को,

दहशतगर्द मुसल्मा थे सब,बेबी ने हैं दिखलाए,
pk तो मस्जिद में दारु तक भी न ले जा पाए,

pk वालों कुछ तो सीखो आखिर बेबी वालो से,
इक पलड़े को नहीं झुकाते,केवल चंद सवालों से,

बेबी ने तो एक मुसल्मा देश भक्त दिखलाया है,
pk ने तो सारा झंझट मन्दिर में ही पाया है,

नीरज पांडे धन्य रहो तुम,ऐसे ही निर्माण करो,
राष्ट्र धर्म की सेवा में अर्पित ये तन मन प्राण करो,

ज़रा सुनो "आमिर",जीवन में सब कुछ ढोंग नही होता,
और वतन पर डायल हो वो नंबर रोंग नही होता ........................  


-मोहित गंगवार

Thursday, 8 January 2015

गंगा को प्रदूषित करते शहर


आबादी में छोटे एवं मंझोले शहरों की श्रेणी में आने वाले छह शहर ऐसे हैं, जिनके नालों का गंदा पानी परोक्ष रूप से गंगा में मिलकर उसे मैला करता है और उसे साफ करने के लिए सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) लगाए जाने की कोई भावी योजना भी नहीं है। इनमें बबराला, उझेनी एवं गुन्नौर (बदायूं), सोरों (एटा) और बिल्हौर (कानपुर) शामिल हैं। गंगा की निगरानी कर रही उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की इकाई ने इन्हें चिन्हित करते हुए इनमें एसटीपी के लिए कोई योजना न बनाए जाने पर चिंता जताई है। दरअसल, हाल में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के गठन के बाद गंगा नदी में पर्यावरण की दृष्टि से विकास की शर्त रखी गई है। बोर्ड अब तक गंगा में सीधे गिर रहे सीवेज पर ही नज़र रखता था। बोर्ड की मुख्य पर्यावरण अधिकारी डॉ। मधु भारद्वाज ने बताया कि छोटे एवं मंझोले शहरों के पुनरुत्थान के लिए बनी यूआईडीएसएसएमटी के तहत फर्रुखाबाद, मिर्ज़ापुर, मुगलसराय, गाज़ीपुर, सैदपुर, गढ़मुक्तेश्वर, बिजनौर, अनूपशहर एवं चुनार आदि में गंगा में सीधे गिर रहे सीवेज प्रबंधन के लिए योजनाएं बनकर स्वीकृत हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, बबराला (बदायूं) के दो नालों का दो मिलियन लीटर गंदा पानी (एमएलडी) प्रतिदिन वरद्वमार नदी में सीधे गिरता है, जो आगे चलकर गंगा में मिलती है। उझेनी (बदायूं) का आठ एमएलडी गंदा पानी गंगा से तीस किमी दूर स्थित तालाब में गिरता है, जो आगे नालों में मिलता है। गुन्नौर (बदायूं) के दो नालों का तीन एमएलडी गंदा पानी एक तालाब में गिरता है, जो आगे चलकर वरद्वमार नदी से होता हुआ गंगा में मिलता है। सोरों (एटा) के तीन नालों का चार एमएलडी गंदा पानी गंगा में सीधे नहीं गिरता, पर आगे चलकर उसमें ही मिलता है। बिल्हौर (कानपुर) के नालों का तीन एमएलडी सीवेज ईशान नदी में सीधे गिरता है। यह भी आगे चलकर गंगा में ही मिलता है।

- मोहित गंगवार