Wednesday, 30 June 2021

ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है {भाग 1}


January 7, 2012 at 12:58am ·
    श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक "Tajmahal is a Hindu Temple Palace" में 100 से भी अधिक प्रमाण और तर्को का हवाला देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक साहब को उस इतिहास कार के रूप मे जाना जाता है तो भारत के विकृत इतिहास को पुर्नोत्‍थान और सही दिशा में ले जाने का किया है। मुगलो और अग्रेजो के समय मे जिस प्रकार भारत के इतिहास के साथ जिस प्रकार छेड़छाड की गई और आज वर्तमान तक मे की जा रही है, उसका विरोध और सही प्रस्तुतिकारण करने वाले प्रमुख इतिहासकारो में पुरूषोत्तम नाथ ओक साहब का नाम लिया जाता है। ओक साहब ने ताजमहल की भूमिका, इतिहास और पृष्‍ठभूमि से लेकर सभी का अध्‍ययन किया और छायाचित्रों छाया चित्रो के द्वारा उसे प्रमाणित करने का सार्थक प्रयास किया। श्री ओक के इन तथ्‍यो पर आ सरकार और प्रमुख विश्वविद्यालय आदि मौन जबकि इस विषय पर शोध किया जाना चाहिये और सही इतिहास से हमे अवगत करना चाहिये। किन्‍तु दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। आज भी हम जैसे विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है, क्‍योकि जिस इतिहास से हम सबक सीखने की बात कहते है यदि वह ही गलत हो, इससे बड़ा राष्‍ट्रीय शर्म और क्‍या हो सकता है ? श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण इस प्रकार हैं - सर्व प्रथम ताजमहन के नाम के सम्‍बन्‍ध में ओक साहब ने कहा कि नाम - (क्रम संख्‍या 1 से 8 तक) 1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है। 2. शब्द ताजमहल के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द है ही नहीं, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो। 3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है - पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक औरत के नाम से "मुम" को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता। 4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)। 5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग किया है। 6. मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल। इस प्रकार से समझने से यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़, एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों या मंदिरों में दफ़नाया गया है। 7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं है। 8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत है। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं। फिर उन्‍होने इसको मंदिर कहे जाने की बातो को तर्कसंगत तरीके से बताया है (क्रम संख्‍या 9 से 17 तक) 9. ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे। 10. संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता। 11. देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज़ के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। 12. संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। 13. ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मूर्तियों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा हुआ और संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले गुप्त कक्षों, जिन्हें कि बंद (seal) कर दिया गया है, के भीतर देखा है। 14. भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा किया, उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गई। 15. वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 'तेज-लिंग' का वर्णन आता है।ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था। 16. आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है, एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है। यहां के धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने में। पिछले कुछ सदियों से यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन उपलब्ध हो पा रही है। वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे। 17. आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे। अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था। ओक साहब ने भारतीय प्रामाणिक दस्तावेजो द्वारा इसे मकबरा मानने से इंकार कर दिया है ( क्रम संख्‍या18 से 24 तक) 18. बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था। 19. ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है। पहली बात तो यह है कि शिलालेख उचित व अधिकारिक स्थान पर नहीं है। दूसरी यह कि महिला का नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था न कि मुमताज़ महल। तीसरी, इमारत के 22 वर्ष में बनने की बात सारे मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख कर टॉवेर्नियर नामक एक फ्रांसीसी अभ्यागत के अविश्वसनीय रुक्के से येन केन प्रकारेण ले लिया गया है जो कि एक बेतुकी बात है। 20. शाहजादा औरंगज़ेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृतान्तों में दर्ज किया गया है, जिनके नाम 'आदाब-ए-आलमगिरी', 'यादगारनामा' और 'मुरुक्का-ए-अकब़राबादी' (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगज़ेब ने खुद लिखा है कि मुमताज़ के सातमंजिला लोकप्रिय दफ़न स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगज़ेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये फरमान जारी किया और बादशाह से सिफ़ारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाये। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहज़हाँ के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी। 21. जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को जारी किये गये शाहज़हां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फ़रमानों (नये क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिये घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया। 22. राजस्थान प्रदेश के बीकानेर स्थित लेखागार में शाहज़हां के द्वारा (मुमताज़ के मकबरे तथा कुरान की आयतें खुदवाने के लिये) मरकाना के खदानों से संगमरमर पत्थर और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने बाबत जयपुर के शासक जयसिंह को जारी किये गये तीन फ़रमान संरक्षित हैं। स्पष्टतः शाहज़हां के ताजमहल पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लेने के कारण जयसिंह इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहज़हां के फरमान को नकारते हुये संगमरमर पत्थर तथा (मुमताज़ के मकब़रे के ढोंग पर कुरान की आयतें खोदने का अपवित्र काम करने के लिये) शिल्पी देने के लिये इंकार कर दिया। जयसिंह ने शाहज़हां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा। और इसीलिये पत्थर देने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सुरक्षित स्थानों में छुपा दिया। 23. शाहज़हां ने पत्थर और शिल्पियों की मांग वाले ये तीनों फ़रमान मुमताज़ की मौत के बाद के दो वर्षों में जारी किया था। यदि सचमुच में शाहज़हां ने ताजमहल को 22 साल की अवधि में बनवाया होता तो पत्थरों और शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की मृत्यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती। 24. और फिर किसी भी ऐतिहासिक वृतान्त में ताजमहल, मुमताज़ तथा दफ़न का कहीं भी जिक्र नहीं है। न ही पत्थरों के परिमाण और दाम का कहीं जिक्र है। इससे सिद्ध होता है कि पहले से ही निर्मित भवन को कपट रूप देने के लिये केवल थोड़े से पत्थरों की जरूरत थी। जयसिंह के सहयोग के अभाव में शाहज़हां संगमरमर पत्थर वाले विशाल ताजमहल बनवाने की उम्मीद ही नहीं कर सकता था। विदेशी और यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख द्वारा मत स्‍पष्‍ट करना ( क्रम संख्‍या 25 से 29 तक) 25. टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान', जहाँ पर विदेशी लोग आया करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया था ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। वह आगे और भी लिखता है कि केवल चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने से अधिक खर्च हुआ था। शाहज़हां ने केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में स्थित शिवलिंगों तथा अन्य देवी देवता की मूर्तियों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र का रूप देने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये ही खर्च किया था। मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने और मकब़रे का कपट रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे। 26. एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं। 27. डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है कि मानसिंह का भवन, जो कि आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है, शाहज़हां के समय से भी पहले का एक उत्कृष्ट भवन है। शाहज़हां के दरबार का लेखाजोखा रखने वाली पुस्तक, बादशाहनामा में किस मुमताज़ को उसी मानसिंह के भवन में दफ़नाना दर्ज है। 28. बेर्नियर नामक एक समकालीन फ्रांसीसी अभ्यागत ने टिप्पणी की है कि गैर मुस्लिम लोगों का (जब मानसिंह के भवन को शाहज़हां ने हथिया लिया था उस समय) चकाचौंध करने वाली प्रकाश वाले तहखानों के भीतर प्रवेश वर्जित था। उन्होंने चांदी के दरवाजों, सोने के खंभों, रत्नजटित जालियों और शिवलिंग के ऊपर लटकने वाली मोती के लड़ियों को स्पष्टतः संदर्भित किया है। 29. जॉन अल्बर्ट मान्डेल्सो ने (अपनी पुस्तक `Voyages and Travels to West-Indies' जो कि John Starkey and John Basset, London के द्वारा प्रकाशित की गई है) में सन् 1638 में (मुमताज़ के मौत के केवल 7 साल बाद) आगरा के जन-जीवन का विस्तृत वर्णन किया है परंतु उसमें ताजमहल के निर्माण के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि सामान्यतः दृढ़तापूर्वक यह कहा या माना जाता है कि सन् 1631 से 1653 तक ताज का निर्माण होता रहा है। संस्कृत शिलालेख द्वारा क्रम संख्‍या 30 द्वारा 30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता है। इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है (वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में संरक्षित है) में संदर्भित है, "एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।" शाहज़हां के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया। इस शिलालेख को 'बटेश्वर शिलालेख' नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर में पाया गया था। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम 'तेजोमहालय शिलालेख' होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था। शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports (1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा है, great square black balistic pillar which, with the base and capital of another pillar....now in the grounds of Agra,...it is well known, once stood in the garden of Tajmahal". थॉमस ट्विनिंग की अनुपस्थित गजप्रतिमा के सम्‍बन्‍ध में कथन (क्रम संख्‍या 31) 31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस ट्विनिंग नामक एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक "Travels in India A Hundred Years ago" के पृष्ठ 191 में) लिखता है, "सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ से मैंने पालकी ली और..... बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि गजद्वार ('COURT OF ELEPHANTS') कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।" कुरान की आयतों के पैबन्द (क्रम संख्‍या 32 व 33 द्वारा) 32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है। यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता। 33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है। कुरान के उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है। वैज्ञानिक पद्धति कार्बन 14 द्वारा जाँच 34. ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था। बनावट तथा वास्तुशास्त्रीय तथ्य द्वारा जॉच (क्रम संख्‍या 35 से 39 तक) 35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू मंदिरों जैसा भवन है। हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा मंदिर का ground plan ताज के समान है। 36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है। 37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था। ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण का भी करती थीं। हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं। 38. ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है। स्तम्भों के नींव तथा बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं। हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की सत्ता है। 39. ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं। ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक पैदा कर दिया था। जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर ताजमहल के अधिग्रहण के बाद 'अल्लाह' शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में 'अल्लाह' शब्द कहीं भी नहीं है। अन्‍य असंगतियाँ (क्रमांक 40 से 48 तक) 40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे। 41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है। 42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। 43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जा सकता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है। 44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं। ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये प्रेरित किया था। 45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की लड़ियों को देखने का जिक्र किया है। यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता। ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं। ये इस बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले स्थान पर कपट रूप से बनाया गया। 46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये। 47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका दिया है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था। 48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया जाने लगा। ताजमहल में खजाने वाला कुआँ 49. तथाकथित मस्ज़िद और नक्कारखाने के बीच एक अष्टकोणीय कुआँ है जिसमें पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह हिंदू मंदिरों का परंपरागत खजाने वाला कुआँ है। खजाने के संदूक नीचे की मंजिलों में रखे जाते थे जबकि खजाने के कर्मचारियों के कार्यालय ऊपरी मंजिलों में हुआ करता था। सीढ़ियों के वृतीय संरचना के कारण घुसपैठिये या आक्रमणकारी न तो आसानी के साथ खजाने तक पहुँच सकते थे और न ही एक बार अंदर आने के बाद आसानी के साथ भाग सकते थे, और वे पहचान लिये जाते थे। यदि कभी घेरा डाले हुये शक्तिशाली शत्रु के सामने समर्पण की स्थिति आ भी जाती थी तो खजाने के संदूकों को पानी में धकेल दिया जाता था जिससे कि वह पुनर्विजय तक सुरक्षित रूप से छुपा रहे। एक मकब़रे में इतना परिश्रम करके बहुमंजिला कुआँ बनाना बेमानी है। इतना विशाल दीर्घाकार कुआँ किसी कब्र के लिये अनावश्यक भी है। मुमताज के दफ़न की तारीख अविदित होना (क्रमांक 50 से 51 तक) 50. यदि शाहज़हां ने सचमुच ही ताजमहल जैसा आश्चर्यजनक मकब़रा होता तो उसके तामझाम का विवरण और मुमताज़ के दफ़न की तारीख इतिहास में अवश्य ही दर्ज हुई होती। परंतु दफ़न की तारीख कभी भी दर्ज नहीं की गई। इतिहास में इस तरह का ब्यौरा न होना ही ताजमहल की झूठी कहानी का पोल खोल देती है। 51. यहाँ तक कि मुमताज़ की मृत्यु किस वर्ष हुई यह भी अज्ञात है। विभिन्न लोगों ने सन् 1629,1630, 1631 या 1632 में मुमताज़ की मौत होने का अनुमान लगाया है। यदि मुमताज़ का इतना उत्कृष्ट दफ़न हुआ होता, जितना कि दावा किया जाता है, तो उसके मौत की तारीख अनुमान का विषय कदापि न होता। 5000 औरतों वाली हरम में किस औरत की मौत कब हुई इसका हिसाब रखना एक कठिन कार्य है। स्पष्टतः मुमताज़ की मौत की तारीख़ महत्वहीन थी इसीलिये उस पर ध्यान नहीं दिया गया। फिर उसके दफ़न के लिये ताज किसने बनवाया? आधारहीन प्रेमकथाएँ 52. शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल हैं। न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार है न ही उनके कल्पित प्रेम प्रसंग पर कोई पुस्तक ही लिखी गई है। ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण के बाद उसके आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया। कीमत 53. शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को बनवाया ही नहीं। इसी कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक होने का काल्पनिक अनुमान लगाया जाता है। निर्माणकाल 54. इसी प्रकार से ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान लगाया जाता है। यदि शाहज़हां ने ताजमहल को बनवाया होता तो उसके निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि उसकी प्रविष्टि शाही दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती। भवननिर्माणशास्त्री 55. ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो कि एक तुर्क था, अहमद़ मेंहदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि एक इटालियन था, या शाहज़हां स्वयं। नदारद दस्तावेज़ क्रमांक 56 से 61 56. ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20 हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया। यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा (design drawings), मजदूरों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls), दैनिक खर्च (daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी के बिल और रसीद (bills and receipts of material ordered) आदि दस्तावेज़ शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते। वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी नहीं है। 57. अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे संसार को मानने के लिये मजबूर करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है। 58. शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और बेल का जिक्र आता है। ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में होता है। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों का विशेष प्रयोग होता है। किसी कब्रगाह में केवल छायादार वृक्ष लगाये जाते हैं क्योंकि श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती। ताज के वाटिकाओं में बेल तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था। 59. हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है। 60. मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित करना चाहिये। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज़ का बताया जाता है, यह मोहम्मद पैगम्बर के निर्देश के निन्दनीय अवहेलना है। वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे। शिव मंदिर में, एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में, दो शिव लिंग स्थापित करने का हिंदुओं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर, जो कि अहिल्याबाई के द्वारा बनवाये गये हैं, में देखा जा सकता है। 61. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंदू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। क्र

Monday, 5 September 2016

श्री हनुमान चालीसा ( हिन्दी एवं अंग्रेजी में)

Hanuman Chalisa: In Hindi with meaning: Jai Hanuman Gyaan Gun Sagar
हनुमान   चालीसा
Hanuman Chalisa
श्रीगुरु चरण् सरोजरज, निजमनमुकुर सुधार ।
बरणौ रघुबर बिमल यश, जो दायक फलचार ॥
Shrii-Guru Carann Saroja-Raja, Nija-Mana-Mukura Sudhaara |
Barannau Raghu-Bara Bimala Yasha, Jo Daayaka Phala-Caara ||
Meaning:
With the Dust of the Lotus Feet of Sri Gurudeva, I Clean the Mirror of my Mind.
I Narrate the Sacred Glory of Sri Raghubar (Sri Rama Chandra), who Bestows the Four Fruits of Life (Dharma, Artha, Kama and Moksha).
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥
Buddhi-Hiina Tanu Jaanike, Sumirau Pavan Kumaar |
Bala Buddhi-Vidyaa Dehu Mohi, Harahu Kalesha Vikaar ||
Meaning:
Considering Myself as Ignorant, I Meditate on You, O Pavan Kumar (Hanuman).
Bestow on me Strength, Wisdom and Knowledge, and Remove my Afflictions and Blemishes.
- 1 -
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जै कपीस तिहुँलोक उजागर ॥
Jay Hanumaan Jnaan Gunn Saagar |
Jai Kapiis Tihu-Lok Ujaagar ||
Meaning:
Victory to You, O Hanuman, Who is the Ocean of Wisdom and Virtue,
Victory to the Lord of the Monkeys, Who is the Enlightener of the Three Worlds.
- 2 -
रामदूत अतुलित बलधामा ।
अंजनि-पुत्र पवन-सुत नामा ॥
Raama-Duut Atulit Bala-Dhaamaa |
Anjani-Putra Pavan-Sut Naamaa ||
Meaning:
You are the Messenger of Sri Rama possessing Immeasurable Strength,
You are Known as Anjani-Putra (son of Anjani) and Pavana-Suta (son of Pavana, the wind-god).
- 3 -
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
Mahaa-biir Bikrama Bajarangii |
Kumati Nivaar Sumati Ke Sangii ||
Meaning:
You are a Great Hero, extremely Valiant, and body as strong as Thunderbolt,
You are the Dispeller of Evil Thoughts and Companion of Good Sense and Wisdom.
- 4 -
कंचन बरण बिराज सुबेशा ।
कानन कुंडल कुंचित केशा ॥
Kancan Barann Biraaj Subeshaa |
Kaanan Kunddala Kuncita Keshaa ||
Meaning:
You possess a Golden Hue, and you are Neatly Dressed,
You wear Ear-Rings and have beautiful Curly Hair.
- 5 -
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
Haath Bajra Au Dhvajaa Biraajai |
Kaandhe Muuj Janeuu Saajai ||
Meaning:
You hold the Thunderbolt and the Flag in your Hands.
You wear the Sacred Thread across your Shoulder.
- 6 -
शंकर-सुवन केशरी-नन्दन ।
तेज प्रताप महा जग-वंदन ॥
Shankar-Suvan Kesharii-Nandan |
Teja Prataap Mahaa Jag-Vandan ||
Meaning:
You are the Incarnation of Lord Shiva and Son of Kesari,
You are Adored by the whole World on account of your Great Strength and Courage.
- 7 -
विद्यावान गुणी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
Vidyaavaan Gunnii Ati Caatur |
Raam Kaaj Karibe Ko Aatur ||
Meaning:
You are Learned, Virtuous and Extremely Intelligent,
You are always Eager to do the Works of Sri Rama.
- 8 -
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
रामलषण सीता मन बसिया ॥
Prabhu Caritra Sunibe Ko Rasiyaa |
Raamalassann Siitaa Man Basiyaa ||
Meaning:
You Delight in Listening to the Glories of Sri Rama,
You have Sri Rama, Sri Lakshmana and Devi Sita Dwelling in your Heart.
- 9 -
सूक्ष्म रूपधरि सियहिं दिखावा ।
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥
Suukssma Ruupadhari Siyahi Dikhaavaa |
Vikatt Ruup Dhari Lamka Jaraavaa ||
Meaning:
You Appeared before Devi Sita Assuming a Diminutive Form (in Lanka),
You Assumed an Awesome Form and Burnt Lanka.
- 10 -
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
Bhiim Ruup Dhari Asur Samhaare |
Raamacandra Ke Kaaj Samvaare ||
Meaning:
You Assumed a Gigantic Form and Destroyed the Demons,
Thereby Accomplishing the Task of Sri Rama.
- 11 -
लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
Laay Sajiivan Lakhan Jiyaaye |
Shrii Raghubiir Harassi Ur Laaye ||
Meaning:
You Brought the Sanjivana herb and Revived Sri Lakshmana.
Because of this Sri Rama Embraced You overflowing with Joy.
- 12 -
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई ।
तुम मम प्रिय भरतहिसम भाई ॥
Raghupati Kiinhii Bahut Baddaaii |
Tum Mam Priya Bharatahisam Bhaaii ||
Meaning:
Sri Rama Praised You Greatly,
And said: "You are as dear to me as my brother Bharata".
- 13 -
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
Sahas Badan Tumharo Yash Gaavai |
As Kahi Shriipati Kanntth Lagaavai ||
Meaning:
"The Thousand Headed Seshnag Sings Your Glory",
Said Sri Rama to You taking you in his Embrace.
- 14 -
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा ।
नारद शारद सहित अहीशा ॥
Sanakaadik Brahmaadi Muniishaa |
Naarad Shaarad Sahit Ahiishaa ||
Meaning:
Sanaka and other Sages, Lord Brahma and other Gods,
Narada, Devi Saraswati and Seshnag ...
- 15 -
यम कुबेर दिगपाल जहाँते ।
कवि कोविद कहि सकैं कहाँते ॥
Yam Kuber Digapaal Jahaate |
Kavi Kovid Kahi Sakai Kahaate ||
Meaning:
Yama (god of death), Kubera (god of wealth), Digpalas (the guardian deities),
Poets and Scholars have not been able to Describe Your Glories in full.
- 16 -
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥
Tum Upakaar Sugriivahi Kiinhaa |
Raam Milaay Raajapad Diinhaa ||
Meaning:
You Rendered a great Help to Sugriva.
You Introduced him to Sri Rama and thereby Gave back his Kingdom.
- 17 -
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥
Tumharo Mamtra Vibhiissann Maanaa |
Lamkeshvar Bhaye Sab Jag Jaanaa ||
Meaning:
Vibhisana Followed your Advice,
And the Whole World Knows that he became the King of Lanka.
- 18 -
युग सहस्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
Yuga Sahasra Yojana Para Bhaanuu |
Liilyo Taahi Madhura Phala Jaanuu ||
Meaning:
The Sun which was at a distance of Sixteen Thousand Miles,
You Swallowed It (the Sun) thinking it to be a Sweet Fruit.
- 19 -
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँधि गये अचरजनाहीं ॥
Prabhu Mudrikaa Meli Mukh Maahii |
Jaladhi Laadhi Gaye Acarajanaahii ||
Meaning:
Carrying Lord Sri Rama's Ring in your Mouth,
You Crossed the Ocean, no Wonder in that.
- 20 -
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
Durgam Kaaja Jagat Ke Jete |
Sugam Anugrah Tumhare Tete ||
Meaning:
All the Difficult Tasks in this World,
Are Rendered Easy by your Grace.
- 21 -
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिन पैसारे ॥
Raam Duaare Tum Rakhavaare |
Hot Na Aajnyaa Bin Paisaare ||
Meaning:
You are the Gate-Keeper of Sri Rama's Kingdom.
No one can Enter without Your Permission.
- 22 -
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥
Sab Sukha Lahai Tumhaarii Saranaa |
Tum Rakssak Kaahuu Ko Ddaranaa ||
Meaning:
Those who take Refuge in You enjoy all Happiness.
If You are the Protector, what is there to Fear?
- 23 -
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँकते काँपै ॥
Aapan Tej Samhaaro Aapai |
Tiino Lok Haakate Kaapai ||
Meaning:
You alone can Control Your Great Energy.
When you Roar, the Three Worlds Tremble.
- 24 -
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥
Bhuut Pishaaca Nikatt Nahi Aavai |
Mahaabiir Jab Naam Sunaavai ||
Meaning:
Ghosts and Evil Spirits will Not Come Near,
When one Utters the Name of Mahavir (Hanuman).
- 25 -
नाशौ रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥
Naashau Rog Harai Sab Piiraa |
Japat Nirantar Hanumat Biiraa ||
Meaning:
You Destroy Diseases and Remove all Pains,
When one Utters your Name Continuously.
- 26 -
संकट से हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
Samkatt Se Hanumaan Chuddaavai |
Man Kram Bacan Dhyaan Jo Laavai ||
Meaning:
Hanuman Frees one from Difficulties,
When one Meditates on Him with Mind, Deed and Words.
- 27 -
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
Sab Par Raam Tapasvii Raajaa |
Tinake Kaaj Sakal Tum Saajaa ||
Meaning:
Sri Rama is the King of the Tapaswis (devotees engaged in penances).
And You (Hanuman) Fulfill all Works of Sri Rama (as a caretaker).
- 28 -
और मनोरथ जो कोइ लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
Aur Manorath Jo Koi Laavai |
Soi Amit Jiivan Phal Paavai ||
Meaning:
Devotees who have any Other Desires,
Will ultimately get the Highest Fruit of Life.
- 29 -
चारों युग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
Caaro Yug Parataap Tumhaaraa |
Hai Parasiddh Jagat Ujiyaaraa ||
Meaning:
Your Glory prevails in all the Four Ages.
And your Fame Radiates throughout the World.
- 30 -
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥
Saadhu Sant Ke Tum Rakhavaare |
Asur Nikandan Raam Dulaare ||
Meaning:
You are the Saviour of the Saints and Sages.
You Destroy the Demons, O Beloved of Sri Rama.
- 31 -
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
Assttasiddhi Nava Nidhi Ke Daataa |
As Bar Diin Jaanakii Maataa ||
Meaning:
You can Give the Eight Siddhis (supernatural powers) and Nine Nidhis (types of devotions).
Mother Janaki (Devi Sita) gave this Boon to you.
- 32 -
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥
Raam Rasaayan Tumhare Paasaa |
Sadaa Raho Raghupati Ke Daasaa ||
Meaning:
You hold the Essence of Devotion to Sri Rama.
You Always Remain as the Servant of Raghupati (Sri Rama).
- 33 -
तुम्हरे भजन रामको पावै ।
जन्म जन्म के दुख बिसरावै ॥
Tumhare Bhajan Raamako Paavai |
Janma Janma Ke Dukh Bisaraavai ||
Meaning:
Through Devotion to You, one gets Sri Rama,
Thereby getting Free of the Sorrows of Life after Life.
- 34 -
अन्त काल रघुपति पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
Anta Kaal Raghupati Pur Jaaii |
Jahaa Janma Hari-Bhakta Kahaaii ||
Meaning:
At the End one Goes to the Abode of Raghupati (Sri Rama).
Where one is Known as the Devotee of Hari.
- 35 -
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥
Aur Devataa Citta Na Dharaii |
Hanumat Sei Sarva Sukh Karaii ||
Meaning:
Even without Worshipping any Other Deities,
One Gets All Happiness who Worships Sri Hanuman.
- 36 -
संकट हरै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा ॥
Sankatta Harai Mittai Sab Piiraa |
Jo Sumirai Hanumat Bala Biiraa ||
Meaning:
Difficulties Disappear and Sorrows are Removed,
For Those who Contemplate on the Powerful Sri Hanuman.
- 37 -
जै जै जै हनुमान गोसाई ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥
Jai Jai Jai Hanumaan Gosaaii |
Krpaa Karahu Gurudev Kii Naaii ||
Meaning:
Victory, Victory, Victory to You, O Hanuman,
Please Bestow your Grace as our Supreme Guru.
- 38 -
जोह शत बार पाठ कर जोई ।
छुटहि बन्दि महासुख होई ॥
Joh Shat Baar Paattha Kar Joii |
Chuttahi Bandi Mahaasukh Hoii ||
Meaning:
Those who Recite this Hanuman Chalisa one hundred times (with devotion),
Will get Freed from Worldly Bondage and get Great Happiness.
- 39 -
जो यह पढै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
Jo Yah Paddhai Hanumaan Caaliisaa |
Hoy Siddhi Saakhii Gauriisaa ||
Meaning:
Those who Read the Hanuman Chalisa (with devotion),
Will become Perfect, Lord Shiva is the Witness.
- 40 -
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥
Tulasiidaas Sadaa Hari Ceraa |
Kiijai Naatha Hrday Mah Dderaa ||
Meaning:
Tulsidas who is Always the Servant of Hari.
Prays the Lord to Reside in his Heart.
पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
रामलषन सीता सहित,
हृदय बसहु सुरभूप ॥
Pavanatanaya Samkatt Harana,
Mamgal Muurati Ruup |
Raamalassan Siitaa Sahit,
Hrday Basahu Surabhuup ||
Meaning:
Sri Hanuman, who is the Son of Pavana, who Removes Difficulties,
Who has an Auspicious Form,
With Sri Rama, Sri Lakshmana and Devi Sita,
Please Dwell in my Heart.
#HANUMAN
#TUESDAYBLESSINGS
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Thursday, 8 October 2015

माँ गंगा के भक्तों पर हुए अत्याचार

गंगा माता बिलख रही थी लाचारी के घाटों पर,
क्रूर लाठियां बरस रही थीं चन्दन लगे ललाटों पर,
खाकी,लगता थूक रही थी संतो के सम्मानों पर,
यूं लगता था मुहर लगी थी बाबर के फरमानों पर,
वर्दी वाले बर्बरता की सीमाओं को तोड़ गए,
केसरिया को नोच फाड़कर डला सड़क पर छोड़ गए,
सत्ता पट्टी बांध आँख पर बेसुध होकर सोई है,
काशी इनकी करतूतों पर फूट फूट कर रोई है,
अपनी परम्पराओं का आधार मांगने बैठे थे,
सन्त पुजारी पूजा का अधिकार मांगने बैठे थे,
ना भारत को गाली दी थी,फूंका नही तिरंगा था,
पत्थरबाजी नही हुयी थी किया न कोई दंगा था,
बलवे बाज नही थे,ना ही जेहादी नौटंकी थे,
ना दाऊद के गुर्गे थे,ना लश्कर के आतंकी थे,
धर्म सनातन की गाथा का मान मांगने बैठे थे,
वो तो गंगा माँ के प्यारे महादेव के बेटे थे,
हर हर महादेव का नारा क्यों उन्मादी लगता है?
सत्ता को हर भगवा धारी क्यों अपराधी लगता है?
सिर्फ सनातन कर्मों पर ही क्यों पाबन्दी होती है?
गणपति विसर्जनो से ही क्यों गंगा गन्दी होती है,
भजन शंख घंटे चुभते हैं बस सत्ता के कानो में,
पर्यावरण शुद्ध लगता है केवल बूचड़खानो में.
नही फड़कती कभी भुजाये,देशद्रोह के नारों पर,
वीर बहादुर मौन रहे,गौ माता के हत्यारों पर,
ये गौरव चौहान कहे ,कुछ बेडा पार नही होगा,
खून बहाकर संतो का बिलकुल उद्धार नही होगा,
घड़ा आपका भर जाएगा एक दिवस इन पापों से,
कोई नही बचा पायेगा संतों के अभिशापों से.


-मोहित गंगवार।।

Monday, 3 August 2015

जय हिन्दुस्तान

हिन्दु ही जब खतरे मे है,
हिन्दुस्तान की बात ना कर॥
 अखंड भारत का सपना सच कर,
पाकिस्तान की बात ना कर॥
 चल शुरु हो जा तलवार उठा,
अब और किसी का इन्तजार ना कर॥
 तू याद कर इन जेहादीयो की करतूत,
काश्मिर मे बली चढ गये जो पूत॥
 सरकटी लाश तेरे घर जाये ,
इसके पहले तू जग जाये॥
 हिन्दू ही वो हेमराज भी था,
जेहादीयो का यमराज भी था॥
 वो नही पूछते जात तेरी,
बस काफिर है पहचान तेरी॥
 जिस दिन हिन्दु मिट जायेगा,
मानवता भी मिट जायेगी॥
 मन्दिर सारे वो ढहा देगे,
गंगा मे तेरी लाश बहा देगे॥
 फिर कौन करेगा गोरक्षण,
भरपेट मलेच्छ करेँ भक्षण॥
 धर्म की जय फिर कहेगा कौन?
दहाड़ो शेरो अब छोड मौन॥
 चेतावनी-शेयर करो या मत करो,
हिन्दू हो तो हिन्दूओ की रक्षा करो ॥
 वन्दे मातरम्-जय श्रीराम
मित्रो , गर्व करता हूँ कि मैं एक कट्टर हिंदू हूँ ....मित्रो ....कभी कुछ बनो न बनो पर सेकुलर मत बनना .....मेरी नजर में देशद्रोह का दूसरा नाम सेकुलर है .....जय हिंदुत्व ....जय मां भारती🚩🚩🚩
जय हिन्दू राष्ट्र 🚩🚩🚩

Thursday, 4 June 2015


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।


आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
🚩यह भारत देश हमारा है यह बात बतानी पड़ती है ..🚩
🚩यह हिंदुत्व का प्यारा है यह बात जतानी पड़ती है ..🚩
दुःख होता है जब गौ हत्या पर मौन यहाँ का हिन्दू है..
दिल रोता है जब गौ हत्या पे सरकार यहाँ की सोती है..
प्रतिबन्ध लगा दो गौ हत्या पे हृदय सभी का कहता है..
प्रतिबन्ध लगा दो गौ हत्या पे हृदय सभी का कहता है ...
कहने कहने से गौ हत्या पे प्रतिबंद लग नहीं पाया है ..
उठ हिन्दू वीर तुझे अब तेरी गौ माता ने बुलाया है..
उसके हत्यारों को तुझको अब समशान पोहचाना है ..
उस माँ के दूध का हर कतरा कतरा लौटना है..
बंद करो यह गौ हत्या बस यही हमारा नारा है..
दिख जाये गौ हत्यारो को की गौ पुत्रों ने उनको ललकारा है..
हुंकार भरो हिंदुओं सभी अब यही एकमात्र चारा है..
इस हिन्द भूमि पे हमने फिर से राम राज्ये लाना है..
हर घर में हो गौ माता अब वही युग दोहराना है..
जाग हिन्दू तुझको अब गौ रक्षा का फ़र्ज़ निभाना है..
कटती गौ माता पूछ रही क्या ये हिन्दुस्तान हमारा है ???
रोती और नम आँखों से उसने बस यही पुकारा है..
हो खून अगर तुम हिन्दू का गौ हत्यारों पर वार करो..
इन दुष्ठ पापियों का बस आज यही संघार करो...
गौ हत्यारों का वध कर गौ हत्या का बहिस्कार करो ..

गौ माता की यही पुकार बंद करो गौ अत्याचार..
गौ पुत्रों की यही पुकार उठ जाने दो अब हिन्दू तलवार...
गौ पुत्रों अब दो ललकार मच जाने दो हा हा कार ...
गौ रक्षक अब हो तैयार नहीं सहेंगे अब गौ माता पर वार..
गौ रक्षक की यही पुकार नहीं सहेंगे अब गौ पर वार ....
🙏 शिवेंद्र प्रताप सिंह ⛳🙏
वंदे गौ मातरम्
जय माँ भारती
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ,

तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया कुछ बोझ अपना बँट गयl
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
 हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरुद्ध,
 इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह, किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
 रोड़ा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए, सो गिर गए
रहे हर दम, उसी की
सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।
फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूँदकर पलकें सहज
 दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिश्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।
🙏🙏😊😊🙏🙏